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डॉक्टर सुचिता बत्रा से जाने ओवेरियन सिस्ट से जुड़े कुछ मैथ्स एंड फैक्ट्स

एमेरिटस हॉस्पिटल के यूट्यूब चैनल में पोस्ट एक वीडियो में डॉक्टर सुचिता बत्रा ने यह बताया कि उनके पास आये कई महिला मरीज़ इस बात को लेकर काफी परेशानी में रहते है की क्या ओवेरियन सिस्ट के सटीक इलाज के लिए सर्जरी करवाना बेहद ज़रूरी होता है ? इसके बारे में जानने से पहले आइये जान लेते है ओवेरियन सिस्ट से जुड़े कुछ मिथ्स एंड फैक्ट्स :- 

 

ओवेरियन सिस्ट से पीड़ित महिला को यही सुझाव दया जाता है कि उन्हें ओवेरियन सिस्ट की समस्या को लेकर ज्यादा घबराना नहीं है, क्योंकि उनके पास आये कई महिला मरीज़ ओवेरियन सिस्ट की अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट को लेकर आते है और अपनी परेशानी को बताते है | आमतौर पर ओवेरियन सिस्ट 3 से 4cm तक ही होता है और वह फ्लूइड से भरा होता है, जिसे आसान भाषा में फ़क्शनल सिस्ट भी कहा जाता है | लेकिन किसी भी स्थिति को सामान्य कहने से पहले यह जान लेना बहुत ज़रूरी होता है की ओवेरियन सिस्ट से जुड़ीं कौन-कौन असामान्य स्थिति होती है और इससे पीड़ित महिला को कब इसके इलाज करवाने के लिए प्रमाणित गयनेकोलॉजिस्ट के पास जाना चाहिए | 

 

इससे जुड़ी अधिक जानकारी के लिए दिए लिंक पर क्लिक करें और इस विडियो को पूरा देखें | आप चाहे तो एमेरिटस हॉस्पिटल नामक यूट्यूब चैनल पर भी विजिट कर सकते है | यहाँ आपको इस विषय संबंधी संपूर्ण जानकारी पर वीडियो प्राप्त हो जाएगी | 

 

यदि आप में से कोई भी महिला असामान्य ओवेरियन सिस्ट की समस्या से पीड़ित है और स्थायी रूप से इलाज करवाना चाहते है तो इसके लिए आप एमेरिटस हॉस्पिटल से परामर्श कर सकते है | इस संस्था के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर सुचिता बत्रा ऑब्स्टट्रिशन गयनेकोलॉजिस्ट में स्पेशलिस्ट है, जो पिछले 8 सालों से ओवेरियन से पीड़ित महिलाओं का सटीक इलाज कर रही है | इसलिए आज ही एमेरिटस हॉस्पिटल नामक वेबसाइट पर जाएं और अपनी अप्पोइन्मनेट को बुक करें | इसके अलावा आप वेबसाइट में दिए गए नंबरों से भी सीधा संस्था से संपर्क कर सकते है |     

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Kartik Goyal

बवासीर होने के शुरुआत पर दिखते है गूदे के आस पास कुछ ऐसे लक्षण जिसे अधिकतर लोग करे है इग्नोर

बवासीर एक ऐसी समस्या है जिसमे गुदो और आंतों में सूजन आ जाती है और इसकी वजह से आस पास के कोशिकाएं भी सूज जाते है | यह समस्या अक्सर  उन  लोगों को होती है जिनके खानपान में गड़बड़ी  या फिर उन्हें काफी समय तक मल त्यागने में दिक्कत आती है | ऐसी स्थिति के शुरुआती दिनों में शरीर में कई तरह के लक्षण दिखाई देने लग जाते है | आइये जानते है ऐसे ही कुछ लक्षण के बारे में :- 

गुदो के आस पास गांठ होना 

ऐसी स्थिति में गुदो के आस-पास गांठ सी बन जाती है और मल त्यागने में काफी दर्द होता है | अगर यह लक्षण दिखाई दे रहा है तो तुरंत ही डॉक्टर के पास जाकर इलाज कराएं | 

 

गुदो के चारो ओर खुजली होना 

ऐसी स्थिति में कब्ज के साथ-साथ गुदो के चारो ओर काफी खुजली होती है | अगर आप इस लक्षण से जूझ रहे है तो  एक्सपर्ट के पास जाए | 

 

मल त्यागने दौरान दर्द होना 

अगर आपको मल त्यागने के समय काफी दर्द का सामना करना पड़ रहा है तो यह बवासीर के लक्षण हो सकता है, जिसका इलाज जितना जल्दी करवाएंगे उतना ही बेहतर रहेगा | 

 

मल के साथ खून का आना 

कई बार ऐसी स्थिति में मरीजों को मल त्यागने दौरान मल के साथ खून भी आने लगता है जो की बहुत गंभीर समस्या है, ऐसी स्थिति में बेहतर है की आप एक्सपर्ट्स के पास जाकर अच्छे से इलाज करवाएं | 

इससे जुड़ी कोई भी सलाह या फिर इलाज करवाना चाहते हो तो आप  एमेरिटस हॉस्पिटल से करवा सकते है | यहाँ के सीनियर डॉक्टर कार्तिक गोयल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी केयर में एक्सपर्ट है और उन्हें 10 सालों का तज़र्बा है |

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Health The Medical Hub

What are Gastrointestinal Issues and How to Treat Them?

Gastrointestinal issues are one of the most common problems faced by women during pregnancy. Many women deal with gastrointestinal issues after they become pregnant, for which they consult a Gynaecologist in ludhiana. The gastrointestinal tract is affected due to gastrointestinal issues that impact the esophagus, small intestine, large intestine, stomach, and rectum, but it may also impact some other digestive organs such as the liver, pancreas, and gallbladder. 

For women who are already dealing with chronic gastrointestinal issues, pregnancy leads to worsening of the condition and might need to seek help from the best gynae doctor in ludhiana. Some women may often be diagnosed before pregnancy with gastrointestinal issues such as ulcerative colitis and Crohn’s disease. There is also a possibility that they might have been showing symptoms of gastrointestinal disorder; however, the condition was not identified until pregnancy. 

Symptoms of gastrointestinal issues

The symptoms of gastrointestinal issues vary as the conditions occur in a wide range. Symptoms of some of the most common types of gastrointestinal issues are: 

  • Nausea
  • Vomiting
  • Diarrhoea
  • Constipation
  • Gallstones
  • Hyperemesis gravidarum
  • Gastroesophageal reflux disease, also known as (GERD)
  • Colitis and irritable bowel syndrome, also known as (IBS)

What are the causes of gastrointestinal issues?

You may not have dealt with any gastrointestinal issues before pregnancy despite it being very common. The causes of GI can vary as the range of the condition varies. Some of the common causes or risk factors that impact Gastrointestinal issues during pregnancy include: 

  • Hormonal changes
  • Certain medications 
  • Poor diet
  • GI motility disorders
  • Obesity
  • Thyroid disorder
  • Internal physical changes due to the growth of the uterus
  • Stress
  • Lack of exercise or physical activity
  • History of excessive use of laxatives
  • Allergy or food intolerance
  • Taking calcium or aluminium-based antacid medications
  • Viral or bacterial infection. 

What measures can you take to treat gastrointestinal issues during pregnancy?

During the phase of pregnancy, experiencing gastrointestinal issues is very common, and moreover, they do not cause any serious health issues. However, it is essential to consult a gynaecologist in ludhiana in case you experience any symptoms of GI. Consulting a doctor would help you manage and prevent the situation from worsening, and in addition to this, they might also recommend a few treatments based on the requirements as the range of gastrointestinal disorders varies, which asks for precise treatment. 

Some of the lifestyle changes can help you manage the symptoms of GI. These lifestyle changes include: 

Healthy diet

Keeping track of your diet by taking care of what you eat, when you eat, and how much you eat can help you alleviate the symptoms of GI. You may need to avoid processed or sugary food, increase the amount of fibre in your diet as well as control the intake of caffeine and dairy products, depending on the type of Gastrointestinal disorder you are experiencing. 

Increase the intake of fluids.

Drink lots of fluids every day. Increase the amount of fluids by adding them into your diet in the form of water, different types of juices and soups. Drinking lots of fluids can ensure regular movement of your GI tract and also help in digestion. Certain Gastrointestinal issues can also cause dehydration; therefore, adding lots of fluids to your diet may also prevent any other health issue that might develop due to dehydration. 

Exercise

Exercising on a daily basis helps the organs to get more oxygen as the body’s movement boosts blood circulation, which also ensures a smooth and efficient movement of the bowels. Make an aim to exercise regularly and set a target of working out for at least 2 and a half hours a week or 30 minutes per day for 5 days. Before working out, be sure to consult the best gynae doctor in ludhiana who would suggest the exercise suitable for you. 

Medication

In case your symptoms of GI do not show any relief from these lifestyle changes, your doctor may recommend some medications that may help to manage them, such as antacids, GI stimulants, digestive enzymes, antidiarrheals, antiemetics, etc. 

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लुधियाना में गैस्ट्रिक बैलून सर्जरी: मोटापे को कम करो कुछ पलों में

अगर पाना चाहते हो सुन्दर और आकर्षित शरीर तो मोटापे को कम करें अभी

क्या है गैस्ट्रिक बैलून सर्जरी ?

बता दे कि यह वो प्रक्रिया है जिससे आज के युवा काफी परेशान रहते हैं,जोकि मोटापा के नाम से विख्यात है | तो आज के इस लेखन में हम जानेगे की आखिर है क्या ये गैस्ट्रिक बैलून सर्जरी….,,

  • बता दे कि प्रिस्टीन केयर एक एल्यूरियन प्रोग्राम की पेशकश करता है, जिसमें एक ऐसी दवा का प्रयोग किया जाता है, जिसमें बिना ऑपरेशन के गैस्ट्रिक बैलून का निर्माण होता है।
  • और साथ ही इसे दुनिया की पहली और मोटापा कम कर, निगलने वाली बैलून कैप्सूल दवा के नाम से जाना जाता हैं और इस दवाई से 16 सप्ताह में औसतन 15% तक वजन कम किया जा सकता है |

प्रक्रिया क्या है इस सर्जरी की :

बता दे की इस सर्जरी को निम्नलिखित प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है जैसे……,,

  • दरअसल, इस प्रक्रिया में भूख लगने का संकेत आपके दिमाग तक नहीं पहुंचता, जिससे आपको भूख कम लगती है और मोटापे को कम किया जा सकता है |
  • और यहाँ गौरतलब करने वाली बात ये हैं कि इस प्रक्रिया में डॉक्टर आपको सेलाइन वाटर चढ़ाते हैं, ताकि आपकी भूख की क्षमता को कम किया जा सकें |
  • एक एंडोस्कोप ( पतली और लचीली ट्यूब) का उपयोग करके इस प्रक्रिया में डॉक्टर मुंह के माध्यम से और पेट में गुब्बारा विस्थापित करते है। पेट में जगह घेरने के लिए गुब्बारे को खारे पानी के घोल से भर दिया जाता है, जिससे भोजन और पेय के लिए कम जगह बचती है |

सुझाव :

 अगर आप मोटापे से है परेशान तो गैस्ट्रिक बैलून ट्रीटमेंट का करे इस्तेमाल और मोटापे से पाए निज़ात |

कौन से लोग है जो गैस्ट्रिक बैलून ट्रीटमेंट करवा सकते है :

निम्नलिखित कुछ ऐसे लोग है जो इस ट्रीटमेंट को करवा सकते है…..,,

  • पहला जिन लोगों के पेट की कोई सर्जरी न हुई हो |
  • दूसरा यदि आपका बीएमआई 27 से ऊपर है |
  • तीसरा जिन लोगों ने वजन कम करने के अनगिनत असफल प्रयास किए हो |
  • चौथा बांझपन से जूझने वाली महिलाएं।
  • पांचवा डायबिटीज वाले लोग |

गैस्ट्रिक बैलून ट्रीटमेंट करवाने के बाद किन बातों का रखे ध्यान :

निम्नलिखित कुछ बातों का ध्यान रख आप अपने आप को सुरक्षित रख सकते हैं……..

  • धूम्रपान, शराब और तंबाकू के सेवन से बचें |
  • बिना डॉक्टर के परामर्श से किसी भी दवा को शुरू या बंद न करें |
  • निर्देशित उच्च प्रोटीन वाले आहार का पालन करें |
  • चीनी, वसायुक्त और मसालेदार भोजन से बचें |
  • खूब पानी पिएं और हाइड्रेटेड रहें |

गैस्ट्रिक बैलून ट्रीटमेंट का हमारे जेब पर कितना असर पड़ सकता हैं :

 बता दे की मोटापे को कम करने के लिए हम इस ट्रीटमेंट का इस्तेमाल करते है,जिसकी लाग़त हर हॉस्पिटल में इसके उपचार की सुविधा के हिसाब से होती हैं और जिसकी लागत तक़रीबन 70,000 के आस-पास आती हैं |

क्या गैस्ट्रिक बैलून ट्रीटमेंट से हम हवा में उड़ सकते है ?

जी हां, आप पेट के इस गुब्बारे से हवा में उड़ सकते हैं क्युकि वाणिज्यिक हवाई जहाज सामान्य वायु दबाव बनाए रखते हैं, जिसका अर्थ ये है कि गैस्ट्रिक गुब्बारे के साथ उच्च ऊंचाई पर यात्रा करने में कोई समस्या नहीं है |

निष्कर्ष :

यदि आप मोटापे से अत्यधिक परेशान है तो लुधियाना में ही लुधियाना गैस्ट्रो एंड गायनी सेंटर है यहाँ आकर गैस्ट्रिक बैलून सर्जरी करवाए और मोटापे से निज़ात पाए और इसके साथ ही अगर आप, यहाँ पर आए तो एक बार गैस्ट्रिक गुब्बारा ट्रीटमेंट के स्पेस्लिस्ट डॉ. कार्तिक गोयल और डॉ. शुचिता बत्रा से इस परेशानी के बारे में जरूर सलाह ले|

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Hemorrhoids hemorrhoids treatment Kartik Goyal

You Should Know 5 Simple Ways To Prevent Piles

Hemorrhoids are swollen, inflamed veins that are situated in the anus and lowest portion of your rectal canal. They can be highly painful and bleed when inflamed when the vein walls grow, frequently as a result of increasing pressure in the lower rectum.

Hemorrhoids frequently result from straining during bowel movements, which is exacerbated worse by constipation, which makes stools that are hard and challenging to pass. Hemorrhoids can also cause or make the pain from them worse if there has been ongoing or chronic diarrhea.

Adopt lifestyle practices that relieve pressure on your lower rectum, such as softening your stools to make them easier to pass, prevent hemorrhoids and lessen the pain if you do experience a flare-up. Here are the suggestions made by Hemorrhoids Treatment in Punjab.

  1. Check your nutrition.

You should reevaluate your diet’s fiber intake if you experience formed yet soft and simple-to-pass feces. If your daily totals aren’t adequate, try increasing your intake of fruits, veggies, and foods made entirely of whole grains. Depending on your age and gender, different amounts may be advised, but an average adult diet of 2,000 calories a day allows for 25 grams of sugar daily.

And if you need any more encouragement to eat a diet high in fiber, studies have shown that diets high in oats, barley, and other whole grains can also lower cholesterol and help you lose weight.

  1. Do not forget to go to the bathroom.

For a while, your body will allow you to resist the urge to urinate, but delaying the inevitable has drawbacks. Your stool gets drier and tougher the longer it stays in your bowel. This makes it challenging to pass the stool and pushes you to strain, which can result in hemorrhoids or make them worse.

  1. Regular exercise

A sedentary lifestyle causes waste to go through your colon more slowly than it would with moderate exercise. Try exercising vigorously by riding, swimming, or practicing yoga. Regular exercise can also assist you in losing the extra pounds that can be aggravating your hemorrhoids.

Avoid exercises that increase abdominal pressure, such as weightlifting-style squats, as these can raise your overall risk of developing hemorrhoids.

  1. Stay hydrated.

Drink six to eight glasses of water daily for soft stools. Alcohol should be consumed in moderation, but too much can cause dehydration and constipation. If you increase your intake of fiber, be careful to drink the recommended quantity of water each day because fiber without liquids may create stiff stools.

  1. When you can, stand up.

Long periods of sitting, such as when using the restroom, place additional strain on your anus. If you work at a desk, take breaks to get up and move around so you don’t read all the time while sitting on the toilet.

Book an appointment with Gastro Doctors for Haemorrhoids in Punjab, who leads our team and specializes in Piles Treatment in Ludhiana, for treatment of a current hemorrhoid flare-up or additional information about preventing hemorrhoids through food and activity. Call our office or use our online form to obtain a callback.

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Endoscopy Kartik Goyal

एंडोस्कोपी (Endoscopy) क्या है, इसकी जरूरत क्यों पड़ती है और कितना खर्चा आता है?

एंडोस्कोपी (Endoscopy)  क्या है ?

एंडोस्कोपी (Endoscopy)  क्या है, इसकी जरूरत क्यों पड़ती है का वर्णन आज हम इस लेखन में करेंगे-

  • बता दे कि एंडोस्कोपी (Endoscopy) एक ऐसा मेडिकल प्रोसेस है जिसमें डॉक्टर एक मशीन की मदद से किसी व्यक्ति के शरीर में क्या चल रहा है ये देखने में समर्थ होते है। यह एक बहुत ही जटिल और गंभीर स्थिति होती है। हालांकि इसे करने में ज्यादा समय भी नहीं लगता है।
  • एंडोस्कोप एक पतली,लंबी और लचीली ट्यूब होती है, जिसके सिरे पर लाइट और एक सिरे पर कैमरा लगा होता है। इस लाइट और कैमरे की मदद से ही तस्वीरें खींची जाती है और कंप्यूटर स्क्रीन पर इसे आसानी से देख सकते है। 

एंडोस्कोप की जरूरत क्यों पड़ती है ?

  • जब किसी व्यक्ति को शरीर के अंदरूनी अंगों में किसी तरह की समस्या हो रही होती है, उस स्थिति में बीमारी का पता लगाने के लिए एंडोस्कोपी का उपयोग किया जाता है। 
  • तो वहीं जब एक्स-रे में किसी अंग की स्पष्ट रिपोर्ट नहीं आ पाती है, तब भी एंडोस्कोपी की जरूरत पड़ती है।
  •  गुदा कैंसर या बड़ी आंत की स्थिति के दौरान भी एंडोस्कोपी की जाती है, और इसमें कोलोनोस्कोपी भी की जाती है, जो एंडोस्कोपी का ही एक भाग माना जाता है।

एंडोस्कोपी (Endoscopy) के बाद क्या किया जाता है ?

एंडोस्कोपी के बाद निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखने की जरूरत पड़ सकती है –

  • एंडोस्कोपी के बाद व्यक्ति को कम से कम एक घंटे की नींद लेनी चाहिए, ताकि उसको जो दवाइयां दी गई है उसका असर उतर जाए। 
  • जरूरत पड़ने पर ही मरीज़ को दर्द निवारक दवाइयां देनी चाहिए। 
  • अगर व्यक्ति को जनरल अनेस्थेटिक की दवा दी गई है तो मरीज़ को खास निगरानी की जरूरत पड़ सकती है। 
  • सीडेटिव (दर्द निवारक दवाओं) का असर जब तक नहीं होता तब तक के लिए मरीज़ को एक व्यक्ति की निगरानी और सहायता की जरूरत पड़ सकती है।  

यदि आपको पेट के अंधरुनि दिक्तो का सामना करना पड़ रहा है तो इसके लिए आप गैस्ट्रो डॉक्टर लुधियाना से इसका इलाज करवा सकते है। 

एंडोस्कोपी (Endoscopy) की जाँच में कितना खर्चा आता है ?

एंडोस्कोपी (Endoscopy) का खर्चा हॉस्पिटल और जगह के हिसाब से आता है, जिनका वर्णन हम निम्न में प्रस्तुत कर रहें है -जैसे

  • जिस हॉस्पिटल में अच्छे उपकरण होंगे और हॉस्पिटल अगर बढ़ा होगा तो एंडोस्कोपी की जाँच का खर्चा भी उतना ही आएगा। 
  • तो वहीं निजी अस्पताल में इसका खर्चा तक़रीबन ₹5000 से ₹10000 हजार रुपए तक का आता है। बता दें कि एंडोस्कोपी जांच के माध्यम से खाने की नलकी या पेट के कैंसर का पता भी लगाया जाता है।

यदि आप एंडोस्कोपी की जाँच करवाने के बारे में सोच रहे हो तो पंजाब में एंडोस्कोपी की कीमत का पता जरूर लगाना। 

सुझाव :

यदि आप अंधरुनि समस्या के बारे में और अच्छे से जानना चाहते है तो बिना समय गवाए लुधियाना गैस्ट्रो गायने सेंटर का चयन करें क्युकि यहाँ पर एंडोस्कोपी का जाँच काफी अच्छे से और किफायती दाम पर किया जाता है। और जाँच के बाद जो बीमारी निकल कर सामने आती है उसका इलाज भी अच्छे से यहाँ के अनुभवी डॉक्टरों के द्वारा किया जाता है। 

निष्कर्ष :

यदि आपको किसी भी तरह की कोई अंधरुनि परेशानी है तो ज्यादा समय न बर्बाद करते हुए एंडोस्कोपी (Endoscopy) की जाँच करवाए ताकि असली बीमारी का पता लगाया जा सके और जड़ से उस बीमारी का खात्मा किया जाए।

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महिलाओं में बवासीर की समस्या क्या है और इस दौरान किस तरह के लक्षण नज़र आते है ?

बवासीर एक बहुत ही मुसीबत भरी बीमारी है। जिसमें व्यक्ति का उठना-बैठना तक मुश्किल हो जाता है। यह बहुत से लोगों को हो जाती है। बवासीर गुदा में अंदर की तरफ या बाहर मस्सों को पैदा कर देती है। जिसमें बहुत दर्द भी होता है और कभी तो खून भी आता है। लेकिन बवासीर का समय पर उपचार कर इससे राहत पाई जा सकती है। तो चलिए जानते है की महिलाओं में बवासीर के दौरान किस तरह के लक्षण नज़र आते है, और इस समस्या से वह कैसे खुद का बचाव आसानी से कर सकती है, इसके बारे में चर्चा करेंगे ;

बवासीर की समस्या क्या है ?

  • बवासीर को पाइल्स भी कहते है। यह एक तकलीफ से भरी बीमारी है। इसमें गुदा के अंदर की तरफ और बाहर की तरफ सूजन की समस्या आ जाती है। बवासीर गुदा नहर में एक तरह की रक्त वाहिकाएं होती है। यह फैल भी जाती है।
  • बवासीर में गुदा के अन्दर और बाहर मस्से हो जाते है। और वहीं बवासीर दो तरह की होती है। आंतरिक बवासीर और बाहरी बवासीर। 60% लोगों में यह जीवन में कभी ना कभी होती ही है।
  • बाहरी बवासीर में गुदा बाहर होती है जो त्वचा से ढकी होती है। बाहरी बवासीर को देखा जा सकता है।
  • आंतरिक बवासीर गुदा नहर के अंदर होती है। जिसे देख नहीं सकते है आंतरिक बवासीर से खून बहने की संभावना अधिक होती है। स्थिति गंभीर होने पर यह बढ़ भी जाती है।

महिलाओं में बवासीर के दौरान किस तरह के लक्षण नज़र आते है ?

  • गुदा क्षेत्र में खुजली होती है और तेज जलन भी होती है। इसके साथ ही लालीपन की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।  
  • मरीजों को शौचालय जाने के बाद भी ऐसा लगता है जैसे फिर से मल त्याग करने की आवश्यकता हो।
  • शौच करने के दौरान जलन के साथ खून का आना।
  • गुदा के आसपास दर्द का होना। और कभी-कभी यह दर्द असहनीय भी हो जाता है।
  • गुदा के आसपास सूजन का आना और सख्त गांठ का बन जाना।
  • अंडरवियर में या टॉयलेट पेपर पर गुदा को पोंछने के बाद घिनौना बलगम का जमा होना।
  • शौच करने में अत्यधिक दर्द का महसूस होना। 
  • बवासीर से पीड़ित मरीज को शौच करने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

महिलाओं में बवासीर के कारण क्या है ?

  • जो लोग गुदा मैथुन करते है उनमें पाइल्स की बीमारी देखी जाती है।
  • डिलीवरी में गुदा क्षेत्र पर दबाव पड़ने की वजह से महिलाओं को बवासीर होने का खतरा हो जाता है। इसलिए कुछ महिलाओं को प्रसव के बाद बवासीर की समस्या होती है।
  • अत्यधिक धूम्रपान और शराब शरीर के लिए हानिकारक होता है इसका ज्यादा सेवन करना बवासीर का कारण बनता है। यह शरीर में और भी बिमारियों को पैदा करने का कारण बनती है।
  • बवासीर की सबसे बड़ी वजह है कब्ज। कब्ज में मल कठोर हो जाता है। जिसकी वजह से मलत्याग करने में जोर लगाना पड़ता है और मस्से बाहर आ जाते है।
  • अधिकतर मोटी महिलाओं में भी पाइल्स होने का जोखिम रहता है। मोटापा भी इसका एक प्रमुख कारण है। मोटापे को कम करने के लिए रोज एक्सरसाइज करे।
  • महिला बवासीर का एक कारण यह भी होता है की जिन महिलाओं का काम लम्बे समय तक खड़े रहने का है उनमें भी यह समस्या पायी जाती है।
  • अक्सर भारी वजन उठाने की वजह से भी बवासीर की समस्या हो जाती है। तो अगर आप भी भारी वजन उठाने का काम करती है तो सावधानी बरते।
  • जो महिलाएं लगातार बैठी रहती है आलस करती है उनमें भी बवासीर से पीड़ित होने की संभावना ज्यादा रहती है।
  • अधिक तला एवं मसाले युक्त भोजन करने से भी बवासीर की समस्या हो जाती है।
  • भोजन का हमारे शरीर पर बहुत प्रभाव पड़ता है, अगर फाइबर युक्त भोजन नहीं किया जाये तो बवासीर की समस्या हो सकती है। इसलिए अपने खाने में फाइबर से युक्त भोजन शामिल करें।
  • गर्भावस्था के समय प्रोजेस्टेरोन हार्मोन में वृद्धि हो जाती है। यह नसों को आराम देने का काम करते है। जिससे नसों में सूजन आ जाती है। इससे प्रेग्नेंट महिला को कब्ज की समस्या हो जाती है और कब्ज की वजह से पाइल्स की समस्या उत्पन्न होती है।

अगर कब्ज की समस्या की वजह से बवासीर की समस्या का आपको सामना करना पड़ रहा है, तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

बवासीर का इलाज घर पर कैसे किया जा सकता है ?

  • कब्ज से परेशान लोगों को मल को नरम करने के लिए ओटीसी फाइबर पूरक का उपयोग करना चाहिए। साइलियम और मिथाइलसेलुलोज दो सामान्य फाइबर पूरक है इसलिए बवासीर से बचाव के लिए खूब फाइबर का सेवन करें।  
  • इसमें घरेलू उपचार भी आपकी मदद करेंगे, जैसे ;
  • रोज स्नान के दौरान गुदा स्थान को गर्म पानी से साफ करें। सिर्फ पानी से साफ़ करें साबुन का उपयोग ना करें। साबुन से बवासीर बढ़ सकता है।
  • गुदा पर ठंडे सेक का भी उपयोग करें। इससे बवासीर की सूजन कम हो जाएगी। दर्द से मुक्ति पाने के लिए इबुप्रोफेन, एस्पिरिन खा सकते है।
  • पानी खूब पिएं रोज और 10 से 12 ग्लास पानी तो जरूर से पिएं। पानी शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर कर देता है जिससे बीमारियां कम होती है।
  • विशेष रूप से योग और व्यायाम करें और एक जगह पर ज्यादा देर तक बैठे से बचे।
  • अगर दर्द ज्यादा हो रहा है तो प्रतिदिन 10 मिनट के लिए गर्म पानी के टब में बैठे। बाहरी बवासीर से राहत पाने के लिए गर्म पानी की बोतल पर बैठना भी लाभदायक होता है। यदि दर्द ज्यादा ही हो रहा है जो की असहनीय है तो ओवर-द-काउंटर सपोसिटरी का उपयोग करें। यह ऑनलाइन या फिर दुकानों में मिल जाएंगे।
  • वहीं अगर घरेलू उपचार करने पर भी आराम नहीं मिल रहा है तो डॉक्टर से इलाज करवाएं। डॉक्टर रबर बैंड बंधाव से इसका इलाज करते है। इसके अलावा इंजेक्शन थेरेपी या स्क्लेरोथेरेपी से भी इलाज किया जाता है। डॉक्टर एक रसायन को सीधे रक्त वाहिका में इंजेक्ट करते है। जिससे की बवासीर का आकार छोटा हो जाता है।

पंजाब में बवासीर का उपचार अनुभवी डॉक्टरों की मदद से आसानी से किया जा सकता है।

बवासीर के इलाज के लिए बेस्ट सेंटर !

अगर बवासीर की समस्या आपकी काफी बढ़ते जा रहीं है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। इसके अलावा महिलाओं में इस तरह की समस्या क्यों होती है इसके बारे में भी आपको हम उपरोक्त बता चुके है, तो कृपया उपरोक्त्त बातों को ध्यान में रखें अगर बवासीर की समस्या से खुद का बचाव करना चाहती है। 

निष्कर्ष :

महिलाओं में बवासीर की समस्या का होना काफी गंभीर बात है इसलिए इससे बचाव के लिए आपको जरूरी है की जितना जल्दी हो सकें इस समस्या से खुद का बचाव करें और किसी भी तरह की समस्या आने पर डॉक्टर का चयन करें।

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बवासीर को कैसे घरेलु उपायों की मदद से ठीक कर सकते है ?

बवासीर जिसे हेमरॉइड्स के नाम से भी जाना जाता है, ये गुर्दा नहर वाले हिस्से में सूजी हुई नसें होती है। अपनी सामान्य अवस्था में, वे मल के मार्ग को नियंत्रित करने के लिए आरामदायक गद्दे की तरह काम करती है। बवासीर की समस्या का सामना महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को ज्यादा करना पड़ता है। और इस समस्या को लेकर पुरुष वर्ग काफी परेशान भी रहते है क्युकी इसकी वजह से उन्हें काफी एलोपैथिक दवाइयों का सेवन करना पड़ता है। पर आज के लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे की आप कैसे घरेलु उपचार की मदद से खुद का बचाव आसानी से कर सकते है ;

बवासीर होने के कारण क्या है ? 

  • बवासीर के कारणों का पता लगाना थोड़ा मुश्किल है, क्युकि इसका कोई स्पष्ट कारण सामने प्रस्तुत नहीं है। लेकिन कई महान विशेषज्ञों का कहना है कि बवासीर होने का कारण आपके खान-पान से जुड़ा होता है। अगर आप गरिष्ठ आहार लेते है, चावल की पीठी खाते है, तीखे और तेल युक्त पदार्थ का सेवन करते है, मांस, कफ पैदा करने वाले आहार और पेट में कब्ज एवं जलन पैदा करने वाले खाद्य का सेवन करते है, तो आपको बवासीर होने का खतरा हमेशा बना रहता है।  
  • इसके अलावा और भी कई भौतिक कारण है जो बवासीर के लिए जिम्मेदार माने जाते है। जैसे की गुदा क्षेत्र पर दबाव का बनना या लगातार एक ही जगह लंबे समय तक बैठे या खड़े रहना। 
  • वहीं बवासीर को पूर्ण रूप से सही करने के लिए आपको अपने खान-पान में बहुत ज्यादा सकारात्मक बदलाव लाना चाहिए।

बवासीर किसी न किसी आंतरिक समस्या के कारण होता है, इसलिए जरूरी है की अपनी समस्या के बारे में जानने के लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

बवासीर के प्रकार क्या है ?

बवासीर मुख्यतः दो प्रकार के होते है, और इन प्रकारों के आधार पर आप जान सकते है की किस तरह के बवासीर का खतरा सबसे ज्यादा होता है ;

  • खूनी बवासीर :

इस प्रकार के बवासीर में गुदा मार्ग में मस्से आ जाते है जो रक्त और म्यूक्स से भरे होते है। मल त्याग करते समय इनसे खून टपकता है। और कई बार जब मस्से बाहर आ जाते है तो इन्हें दबाने के बावजूद भी यह अंदर नहीं जाते है। जिससे व्यक्ति की परेशानी और बढ़ जाती है।

  • बादी बवासीर :

यह पूरी तरह से दर्द का स्रोत माना जाता है, इस प्रकार के बवासीर में मरीज को बार-बार खुजली और जलन की समस्या महसूस होती है। कब्ज होने पर या अन्य पेट संबंधी समस्या होने पर यह कष्टदायक हो जाते है, और चलने-फिरने या उठने बैठने में पीड़ा का सामना करना पड़ता है।

बवासीर के दौरान दिखने वाले लक्षण किस तरह के होते है ?

  • गुदा वाले हिस्से में खुजली की समस्या का सामना करना। 
  • गुदा वाले हिस्से में दर्द, खासकर लंबे समय तक बैठे रहने पर। 
  • आपके गुदा वाले हिस्से के पास एक या ज़्यादा सख्त, कोमल गांठ का निकलना। 
  • आपके मलाशय से खून का रिसना। यह शौच के बाद मल, टॉयलेट पेपर या टॉयलेट बाउल में चमकीले लाल खून के धब्बों का दिखाई देना। 
  • मल त्याग करते समय दर्द और परेशानी का बढ़ना।

बवासीर के लक्षण दिखने पर आपको पंजाब में बवासीर का उपचार करवा लेना चाहिए। 

बवासीर के लिए कौन-से घरेलु उपचार है सहायक ?

सिट्ज बाथ: 

गर्म पानी से नहाना, बवासीर के कारण होने वाली जलन को शांत करता है। वहीं बवासीर में आपको सिटज़ बाथ इस्तेमाल करना चाहिए। क्युकि सिट्ज़ बाथ एक ऐसी विधि है, जिसमें एक छोटे प्लास्टिक के टब का उपयोग किया जाता है जो टॉयलेट सीट पर फिट हो जाता है ताकि आप प्रभावित हिस्से को बस उसमें डुबो सकें। इस पानी में बीटाडीन का घोल या डॉक्टर द्वारा सुझाए गए अन्य एंटीसेप्टिक घोल का उपयोग किया जा सकता है। 

आइस पैक को लगाना: 

एक बार में कम से कम 15 मिनट तक सूजन से राहत पाने के लिए गुदा वाले हिस्से पर आइस पैक या कोल्ड कंप्रेस लगाएं। बड़े, दर्द करने वाले बवासीर के लिए ये कोल्ड कंप्रेस दर्द से निपटने का एक बेहद असरदार उपाय है।

नारियल का तेल: 

नारियल के तेल में मज़बूत एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते है जो त्वचा लाल होने और सूजन को कम कर सकते है। इसमें एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) गुण होते है, जो बवासीर के कारण होने वाली परेशानी को कम करने में मदद कर सकते है। इसमें एंटीबैक्टीरियल (जीवाणु को मारने वाले) गुण भी होते है, जो बवासीर के लक्षणों को कम करने में मदद करते है।

व्यायाम: 

बवासीर के लक्षणों को असरदार तरीके से प्रबंधित करने के लिए घर पर व्यायाम करना एक शानदार उपाय हो सकता है। नियमित पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज़ करना बवासीर के लिए एक बेहतरीन उपाय है। अपनी पेल्विक फ्लोर की माँसपेशियों को मज़बूत करने से, बिना ज़्यादा दबाव डाले अपनी आंत को खाली करने में आपकी मदद मिल सकती है।

तनाव प्रबंधन करना और अच्छी नींद लेना: 

आराम करने और तनाव को असरदार तरीके से प्रबंधित करने के लिए एक कड़ा प्रयास करने से आंतों को अच्छी आदतें अपनाने में मदद मिलती है। रात में भरपूर नींद लेने से भी पाचन स्वास्थ्य अच्छा बनाए रखने में मदद मिलती है। ऐसा होने पर, आँतों से मल भी आसानी से होकर जा पाता है।

हाइड्रेशन: 

भरपूर पानी और फलों के रस जैसे अन्य स्वस्थ तरल पीने से आपकी आंत कम शुष्क होती है। जब आपका शरीर अच्छी तरह से हाइड्रेटेड होता है, तो आपका पाचन स्वास्थ्य बेहतर होने लगता है, जिससे आपको मल त्याग के दौरान दबाव कम डालना पड़ता है।

ज़्यादा फाइबर वालें आहार: 

भरपूर मात्रा में अघुलनशील और साथ ही घुलनशील फाइबर वाला संतुलित आहार लेने से आपको नियमित रूप से मलत्याग करने में मदद मिलेगी। अघुलनशील फाइबर आपके मल का वज़न बढ़ाते है, जिससे आपको मल त्यागने के दौरान ज़ोर कम लगाना पड़ता है। फाइबर को आंतों को स्वस्थ रखने में मदद करने के लिए भी जाना जाता है।

लहसुन का उपयोग :

  • लहसुन में पाए जाने वाले एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुण बवासीर के चलते होने वाले दर्द को और सूजन को कम करते है। इसे इस्तेमाल करना बेहद आसान है और इसे दो तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर बवासीर गुदा मार्ग के बाहर है तो आप लहसुन की चार कलियों को कूटकर एक गिलास पानी में मिलाएं, अब इस पानी को आप गैस पर तब तक उबालें जब तक पानी का रंग पूरी तरह से बदल न जाए। 
  • फिर अब आप एक सूती कपड़े को इस पानी में भिगो दें और उस कपड़े को अपने मस्से वाले स्थान पर 15 मिनट के लिए लगाकर छोड़ दें, ऐसा दिन में आप दो बार कर सकते है।
  • वहीं अगर बवासीर गुदा मार्ग के भीतर या गुदा मार्ग में ही है, तो आपको लहसुन की कुछ कलियों से ज्यूस निकालना है और उस ज्यूस को गुदा मार्ग के भीतर सोने से पहले डालना है। ऐसा करने से दर्द और सूजन काफी हद तक कम हो जाते है।

बवासीर के इलाज के लिए बेस्ट सेंटर !

आप अगर चाहते है की आपको बवासीर का इलाज मिल सके तो इसके लिए आपको लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। पर साथ ही आपको क्यों इस सेंटर का चयन करना चाहिए, इसके बारे में जानना भी जरूरी है, जैसे ;

अनुभवी डॉक्टर :

जी हां इस सेंटर में मरीजों का इलाज अनुभवी डॉक्टरों के द्वारा किया जाता है, जिससे मरीज को अपनी समस्या का समाधान भी आसानी से मिल जाता है। 

आधुनिक उपकरण का चयन करना :

इस सेंटर में मरीजों की जाँच या फिर उनके इलाज के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरण बिलकुल सही और सुचारु रूप से कार्य करते है। 

दवाई में छूट का मिलना :

जी हां, अगर आप इस सेंटर से अपना इलाज करवाते है, तो आपको 30 प्रतिशत तक की छूट भी मिलती है अपने इलाज को लेकर। 

निष्कर्ष :

बवासीर का इलाज करने के लिए कई घरेलू इलाज मौजूद है। वहीं मरीज बिना किसी हिचकिचाहट के इनका इस्तेमाल कर सकते है, लेकिन इस्तेमाल करने से पहले उन्हें अपने डॉक्टर या वैद्य से इस बारे में अवश्य परामर्श लेना चाहिए। क्युकी अपने मन मुताबिक किसी भी घरेलू उपाय का इस्तेमाल करना खतरनाक साबित हो सकता है।

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पुरुषों में बवासीर के क्या है – लक्षण, कारण, इलाज और बचाव के तरीके ?

बवासीर जिसे पाइल्स भी कहा जाता है, जोकि गुदा या नीचे मलाशय में सूजी हुई नसें होती है, जो असुविधा और दर्द का कारण बन सकती है। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में बवासीर होने की संभावना अधिक होती है, विशेष रूप से 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में। तो आज के लेख में जानेंगे की बवासीर की समस्या से हम कैसे खुद का बचाव कर सकते है, इसके लक्षण क्या है, किन कारणों से ये समस्या होती है और कैसे इससे खुद का बचाव कर सकते है ;

पुरुषों में बवासीर की समस्या क्या है ?

  • पाइल्स, जिसे बवासीर के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी स्थिति है जो गुदा और निचले मलाशय में नसों को प्रभावित करते है। वे मल त्याग के दौरान असुविधा, दर्द और रक्तस्राव का कारण बन सकते है। पुरुषों में पाइल्स एक आम स्थिति है, जो खासकर 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में पाई जाती है।
  • वहीं समय पर अगर इसका इलाज न किया गया तो हालात और बिगड़ सकते है और प्रभावित हिस्से से खून भी बह सकता है। आंतरिक और बाहरी दो प्रकार के बवासीर होते है, जो पुरुषों को प्रभावित कर सकते है।
  • आंतरिक बवासीर जो मलाशय के अंदर होता है और बिना दर्द के रक्तस्राव को उत्पन्न करता है। वे मल त्याग के दौरान जुड़े गुर्दे से बाहर निकल सकते है और असुविधा या जलन पैदा कर सकते है।
  • दूसरी ओर बाहरी बवासीर, गुदा के बाहर विकसित होते है और गंभीर दर्द, खुजली और परेशानी पैदा कर सकते है। वे मल त्याग के दौरान रक्तस्राव भी कर सकते है।
  • एक आदमी के लिए एक ही समय में आंतरिक और बाहरी दोनों बवासीर होना भी संभव है। यदि आप बवासीर के किसी भी लक्षण का अनुभव करते है, तो चिकित्सकीय ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि विभिन्न उपचार विकल्पों के साथ उनका प्रभावी ढंग से इलाज किया जाना जरूरी है।

पुरुषों में बवासीर के कारण क्या है ?

पुरुषों में पाइल्स की समस्या होने का कोई सटीक कारण बताना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन गुदा में मौजूद रक्त वाहिकाओं और ऊतकों के ऊपर बढ़ते दबाव से बवसीर होने की संभावना बढ़ जाती है। वहीं इसके कुछ निम्निलिखित कारण है जिसके कारण बवासीर की समस्या उत्पन्न होती है :

  • यदि आपके द्वारा कम फाइबर वाले आहार का सेवन किया जाता है, तो इससे ये समस्या उत्पन्न होती है, क्युकी फाइबर का सीमित सेवन आपके मल को सख्त बना देते है, जिससे मल त्याग के दौरान अधिक तनाव की समस्या उत्पन्न होती है। इससे मलाशय और गुर्दे की नसों पर दबाव बढ़ जाता है।
  • पुरुषों में बवासीर के सबसे सामान्य कारणों में से एक कारण ये भी है की मल त्याग के दौरान बहुत अधिक जोर लगाना है। इसकी संभावना तब ज़्यादा होती है जब कब्ज या दस्त हो।
  • जो पुरुष लंबे समय तक बैठे रहते है, जैसे ट्रक ड्राइवर या ऑफिस वर्कर, उनमें बवासीर होने की संभावना अधिक होती है। लंबे समय तक बैठने से गुदा क्षेत्र में नसों पर दबाव पड़ता है, जिससे उनमें सूजन आ जाती है।
  • जो पुरुष नियमित रूप से भारी सामान उठाते है, उन्हें भी बवासीर होने का खतरा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सामान उठाने के कारण गुर्दे की नसों में सूजन आ सकती है।
  • पुरुषों की उम्र बढ़ने के साथ बवासीर अधिक आम हो जाती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि गुदा क्षेत्र में ऊतक उम्र के साथ कमजोर हो जाते है, जिससे उनमें सूजन होने की संभावना हो जाती है।

अगर आप बवासीर की समस्या से बहुत परेशान है, तो पंजाब में बवासीर का उपचार मिलना आसान है, इसलिए इसका इलाज यहाँ से जरूर करवाए।

बवासीर में पुरुषों को किस तरह के खाने की चीजों का सेवन करना चाहिए !

  • उच्च फाइबर वाले खाद्य प्रदार्थो का सेवन पुरुषों को बवासीर में करना चाहिए, क्युकि इस तरह का भोजन मल को नरम करने और कब्ज को कम करने में मददगार साबित होता है, जो बवासीर को बढ़ा सकता है। इन खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज, फलियाँ, फल, सब्जियाँ, मेवे, बीज और चोकर शामिल है।
  • अगर आप बवासीर की समस्या को कम करना चाहते है, तो इसके लिए विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थ का सेवन करना चाहिए, विटामिन-सी वाले खाद्य प्रदार्थ जैसे – खट्टे फल, शिमला मिर्च और ब्रोकली, अपने आहार में शामिल करने के लिए अच्छे विकल्प है।
  • भोजन में पौधों के यौगिक फ्लेवोनोइड्स होते है, जो सूजन को कम कर सकते है और बवासीर के लक्षणों को कम कर सकते है। खट्टे फल, जामुन और डार्क चॉकलेट ऐसे खाद्य पदार्थों के उदाहरण है।
  • बवासीर की समस्या से छुटकारा पाने के लिए आपको अपने आहार में दही को शामिल करना चाहिए। इसमें अच्छे बैक्टीरिया होते है, जो आंत के स्वास्थ्य में सुधार कर सकते है और मल त्याग को नियंत्रित कर सकते है, अंततः कब्ज और बवासीर के लक्षणों के विकास की संभावना को कम कर सकते है।  
  • अगर आप आंत, फेफड़े या पेट संबंधित समस्या से छुटकारा पाना चाहते है, तो इसके लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

पुरुषों में बवासीर का पता किससे लगाया जा सकता है ?

  • डिजिटल रेक्टल एग्जामिनेशन, की मदद से पुरुष बवासीर का पता लगाना। 
  • एनोस्कोपी, की मदद से बवासीर के ग्रेड की जांच की जाती है।
  • कोलोनोस्कोपी, की मदद से डॉक्टर आपके संपूर्ण आंत की जाँच करते है, जिससे बवासीर की समस्या का पता लगाया जा सकता है।
  • बवासीर की समस्या होने पर मलाशय के निचले हिस्से की जांच को ‘सिग्मायोडोस्कोपी’ की मदद से आसानी से किया जा सकता है, जिससे बवासीर का पता आसानी से लगाया जा सकता है।

 

पुरुषों में बवासीर के दौरान किस तरह के लक्षण नज़र आते है ?

  • बवासीर में गुदा और मलाशय की नसों में सूजन के कारण मल त्यागते समय तेज दर्द का होना।
  • सूजन वाली नसों की उपस्थिति के कारण गुदा क्षेत्र में खुजली या जलन की समस्या का उत्पन्न होना।
  • बवासीर में सूजी हुई नसों के फटने से मल त्याग के दौरान या बाद में रक्तस्राव का होना।
  • पाइल्स में नसों के बाहर निकलने के कारण गुदा के आसपास गांठ या सूजन हो सकती है।
  • बवासीर आपके अंदर अधूरे मल त्याग की भावना पैदा कर सकते है, जो मल के सामान्य मार्ग को बाधित करता है।
  • गुर्दे और मलाशय में सूजी हुई नसों पर दबाव पड़ने पर बैठने में असुविधा का सामना करना।

बवासीर की समस्या होने पर किस तरह से खुद का बचाव करें ? 

  • स्वस्थ और फाइबर से भरपूर भोजन मल त्याग को नियंत्रित करने और कब्ज को रोकने में मदद करते है, जो गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव डाल सकता है, जिससे बवासीर का निर्माण होता है।
  • आहार और व्यायाम के माध्यम से स्वस्थ वजन बनाए रखने से गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव कम करने और बवासीर के विकास के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • नियमित व्यायाम भी कब्ज को रोकने और रक्त प्रवाह में सुधार करने में मदद कर सकता है, जिससे बवासीर के खतरे को कम किया जा सकता है।
  • मल त्याग के दौरान जोर लगाने से गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव पड़ सकता है, जिससे बवासीर हो सकता है। इसे रोकने के लिए, समय निकालना महत्वपूर्ण है और बाथरूम का उपयोग करते समय कृपया जल्दबाजी न करें।
  • भारी सामान उठाने से जितना हो सकें बचें, क्युकि भारी सामान आपके गुर्दे और मलाशय की नसों पर दबाव डाल सकते है, जिससे बवासीर की समस्या उत्पन्न होती है। 

पुरुषों में बवासीर का इलाज कैसे किया जाता है ?

बवासीर का शुरू में पता लगने पर इसका इलाज आप कुछ रोकथाम करके कर सकते है, लेकिन जब इसकी स्थिति गंभीर हो जाए तो इसके लिए आपको सर्जरी का सहारा लेना पड़ सकता है, जैसे ;

हेमोराहाइडेक्टोमी : 

यह आपके अंदर उत्पन्न आंतरिक या बाहरी बवासीर को हटा देता है, जो आगे बढ़ गया है।

स्टेपल्ड हेमोराहाइडेक्टोमी : 

एक स्टेपलिंग उपकरण आंतरिक बवासीर को गुदा में वापस खींचता है या उन्हें पूरी तरह से हटा देता है।

पाइल्स के लिए लेजर सर्जरी : 

एक सर्जन बवासीर में रक्त की आपूर्ति को काटने के लिए लेजर का उपयोग करते है, जिससे बवासीर सिकुड़ जाती है। और व्यक्ति को बवासीर की समस्या से निजात आसानी से मिल जाता है।

ध्यान रखें :

बवासीर की समस्या पुरुषों में काफी गंभीर समस्या है, इसलिए इससे बचाव करना बहुत जरूरी है। वहीं इसकी स्थिति गंभीर होने पर आपको सर्जरी का सहारा लेना चाहिए और आप चाहें तो इस सर्जरी को लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से भी करवा सकते है। 

निष्कर्ष :

पुरुषों में बवासीर की समस्या एक गंभीर बीमारियों में से एक है, जो उनके जीवन शैली पर काफी गहरा गलत छाप छोड़ती है। बवासीर की समस्या से बचाव करना बहुत जरूरी है, इसलिए आप इस समस्या से बचाव के लिए किसी बेहतरीन हॉस्पिटल, सेंटर या डॉक्टर का चयन करें जो आपको आपकी समस्या से आसानी से छुटकारा दिला सकें।

 

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Exploring the Necessity of Ovarian Cyst Removal: Debunking Myths

If you are suffering from cysts in your ovaries, you need to do proper research on many important areas before you decide to get them removed via operation. A good majority of cysts that grow on the human body are not malignant. You do not need to get surgery to discard them. They dissolve on their own. These cysts greatly vary in size. You must discuss the following factors with your doctor before deciding on a treatment plan.

Cyst Type: Not all ovarian cysts need to be removed. Cysts are a common occurrence in women, and many of these are functioning cysts that resolve on their own. Others, including dermoid or endometriomas, would need to be removed because of the difficulties they could cause.

Size and Growth: The size of the cyst is important. Larger cysts may require removal since they are more prone to produce symptoms. Cysts that are expanding quickly may also be alarming and need medical treatment.

Symptoms- Cysts that provide pain, discomfort, or additional symptoms including irregular periods, pelvic pain, or pressure should frequently be treated. Removal or symptom-relieving medicines are possible treatments.

Risk of problems: Some cysts are more likely to burst or torsion (twist), which are problems. Removal is typically advised in these situations to avoid major health problems.

malignancy Risk: Although benign ovarian cysts constitute the majority, a small chance of malignancy does exist. If your doctor has concerns about malignancy, they might advise removal and more testing.

Fertility Issues: A cyst may need to be removed if it interferes with fertility or causes issues during pregnancy. However, not every cyst affects fertility, thus each case must be examined individually.

Monitoring- You must wait and watch in some circumstances, particularly if the cyst is small and doesn’t exhibit any alarming characteristics. Imaging surveillance on a regular basis can help identify when removal is required.

This operation has both possible advantages and disadvantages. The ultimate objective is to guarantee the optimal outcome while minimising any pointless interventions. If you want to know whether surgically removing an ovarian cyst is required, you should speak with a reputable healthcare professional and take these facts into account.

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10 Symptoms You Shouldn’t Ignore if You Have Fibroids

Fibroids are non-cancerous growths in or on the wall of the uterus. Fibroids are quite common, especially in women of childbearing age. 

Here are 10 symptoms associated with fibroids you should never ignore;

Heavy menstrual bleeding

Excessive bleeding during your period can be a sign of fibroids, leading to anemia if left untreated. 

Pelvic pain

Persistent pelvic pain or discomfort, especially during menstruation, should be investigated.

Frequent urination

Fibroids pressing against the bladder can cause a frequent need to urinate.

Painful periods

Several menstrual cramps, lower back pain, or pelvic pressure may indicate the presence of fibroids.

Constipation or bloating

Large fibroids can cause digestive issues like constipation or bloating.

Painful intercourse

Fibroids may contribute to painful intercourse.

Enlarged abdomen

An increase in the size of your lower abdomen may be due to growing fibroids.

Backache

Lower back pain unrelated to other issues can sometimes be attributed to fibroids.

Leg  or swelling

Rarely, fibroids can press nerves, causing leg pain or swelling.

Infertility or recurrent miscarriages

Fibroids can cause fertility or may increase miscarriage chances.

If these symptoms occur, it is crucial to schedule a consultation at Ludhiana Gastro & Gynae Centre. Early detection and timely management can help alleviate discomfort and prevent potential complications associated with fibroids.

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10 high-risk factors that can decrease success your of vitro fertilization (IVF)

1. *Advanced Maternal Age:*

Women over the age of 35 have a higher risk of complications during pregnancy and lower IVF success rates.

2. *Diminished Ovarian Reserve:*

A decreased number of eggs or poor egg quality can reduce the chances of successful IVF.

3. *Polycystic Ovary Syndrome (PCOS):*

PCOS can affect hormone levels and ovulation, making IVF more challenging.

4. *Endometriosis:*

This condition can lead to pelvic scarring and affect the function of the fallopian tubes, potentially reducing IVF success.

5. *Uterine Fibroids:*

Large or multiple fibroids in the uterus can interfere with embryo implantation.

6. *Tubal Factor Infertility:*

Damaged or blocked fallopian tubes can necessitate IVF but may also increase the risk of ectopic pregnancies.

7. *Male Factor Infertility:*

Male infertility issues, such as low sperm count or poor sperm quality, can affect IVF success rates.

8. *Obesity:*

Excess body weight can lead to hormonal imbalances and interfere with fertility treatments, including IVF.

9. *Multiple Failed IVF Cycles:*

Repeated unsuccessful IVF attempts may indicate underlying fertility issues that can be high-risk.

10. *Pre-existing Medical Conditions:*

Conditions like diabetes, hypertension, or autoimmune disorders can complicate IVF treatment and pregnancy.

It’s essential to consult with a reproductive specialist who can assess your individual risk factors and develop a personalized treatment plan that takes these factors into account. While these conditions may increase the risk associated with IVF, advances in fertility medicine have improved the chances of successful outcomes even in high-risk cases.

If you are not able to conceive and need medical help regarding it, click here –> to book your appointment ( for a customised treatment plan) with our fertility expert Dr. Shuchita Batra.

REVIEWS

1. Gursharan Kaur

Dr. Shuchita Batra Goyal mam is the best gynaecologist I have ever met. I am having PCOD since 2017 due to which I was facing issues in conceiving. I consulted with her and she started the treatment, and within one month I took the pregnancy test and got positive results. I am extremely happy and grateful. A huge thanks to her and her team.

2. Sona Bharadwaj

I was struggling to conceive, tried various treatments and was emotionally and physically drained than i came across shuchita mam
We are so grateful for her knowledge and expertise in fertility. She is always approachable for her patients.
Now thanks to her we are thrilled to be expecting.

3. Manisha Verma –

Highly recommended for the infertility treatment. In my case, Doctor given me a few medicines and within a month got the desired results. I really liked the way, she listens to the problem and understand. Thanks a lot…🙏

4. Jasvir Kaur-

Dr. Shuchita is very humble and supporting. Her attitude towards everyone is very friendly. With her guidance and medication, i got conceived after 9 years. I really thankful to her, she is the best gyne doctor. I recommend every girl to visit Dr. Shuchita who have complications or any type of doubt.
Thanku so much mam

CASES:

1. A 27 yr female with known case of PCOS for past 3 years, had periods only after medications. She came to India for fertility treatment for 2 months. She and her husband were put on supplement medications while in canada, and lifestyle modifications advised (Low sugar and fat diet, with daily intensive exercise). ovulation induction started once they reached India. No egg (ovum ) seen on ultrasound, so the gonadotropins were started. Ovulation occurred on day 18, IUI was done, and progesterone started. She conceived in 1 st cycle of treatment.

2. A 36 years female, married for 7 year, had decrease in periods flow. She had decreased AMH suggesting low ovarian reserve. She was started on fertility supplements and DHEA to improve her ovum quality. Ovulation induction done with oral tablets followed by Gonadotropins. She conceived by IUI in 2 nd cycle.

3. A couple, Female age 32 yrs with decreased ovarian reserve, Male 34 yrs with decreased sperm counts. Both started on gamete improving medicines. Ovulation induction done and they conceived in 4th cycle by IUI.

4. A couple with 2 years infertility, with female having PCOS and obesity. She was motivated to lose weight and then ovulation induction started after 2 months. Couple conceived in 2 nd cycle with oral ovulogens and insulin sensitizers.

Google link – Dr. Shuchita Batra Best Gynecologist in Ludhiana – Gastro & Gynae Centre https://g.co/kgs/yayJJu

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Here are 10 high-risk pregnancy conditions that can increase the likelihood of a Caesarean section (C-section)

1. *Multiple Pregnancies:*

Women carrying twins, triplets, or more are at a higher risk of requiring a C-section due to the increased complexity of multiple births.

2. *Breech Presentation:*

When the baby is positioned feet or buttocks first instead of headfirst in the womb (breech presentation), a C-section may be recommended to avoid complications during delivery.

3. *Placenta Previa:*

This condition occurs when the placenta partially or completely covers the cervix, which can lead to severe bleeding during vaginal delivery, necessitating a C-section.

4. *Preeclampsia:*

Women with severe preeclampsia, a condition characterized by high blood pressure and organ damage, may require a C-section to protect both the mother and baby.

5. *Gestational Diabetes:*

Poorly controlled gestational diabetes can lead to large fetal size (macrosomia), which may increase the likelihood of a C-section due to potential delivery complications.

6. *Maternal Health Conditions:*

Certain maternal health issues, such as heart disease or chronic hypertension, can make vaginal delivery riskier, leading to a C-section recommendation.

7. *Previous C-section:*

Women who have had a previous C-section may be at risk of requiring another C-section in subsequent pregnancies, depending on the type of uterine incision from the previous surgery.

8. *Fetal Distress:*

Signs of fetal distress, such as abnormal heart rate patterns or a lack of oxygen, may necessitate a C-section for a quicker and safer delivery.

9. *Fetal Abnormalities:*

In cases where the fetus has congenital anomalies or developmental issues that could affect vaginal delivery, a C-section may be recommended.

10. *Obstructed Labor:*

If the baby’s head is too large to pass through the mother’s pelvis (cephalopelvic disproportion), or if labor has stalled (prolonged labor), a C-section may be necessary.

It’s important to note that while these conditions can increase the risk of a C-section, the decision to perform a C-section is made by healthcare providers based on the specific circumstances and the best interests of both the mother and the baby’s health. Each pregnancy is unique, and medical professionals carefully evaluate the situation to ensure the safest delivery method.

If you are pregnant with any of the above high risk factors, you may need medical help regarding it, click here –> to book your appointment ( for a customised treatment plan) with our high risk pregnancy expert Dr. Shuchita Batra (Ex. SR, AIIMS, Jdh)

REVIEWS

1. Dr Shuchita is the best Gynaecologist in Ludhiana as I have ever experienced. Before meeting her I had consulted few doctors but the response and attention which a patient is looking specifically from her gynae was not satisfactory but after meeting her, she heard the concerns with very patiently and provides the best suited treatment/guidence, Also throughout my whole pregnancy journey she managed very calmly and provided all the support which made this journey very beautiful leading to a delivery of a healthy baby, Also not even in pregnancy but during postpartum her guidance and support is commendable. I really appreciate and recommend Dr Shuchita Batra as the best Gynaecologist.
– Himani Chabbra
2. Hello Mam, This is Heena. First of all, I would like to thank you for all the help and support during my pregnancy. Now I would like to share my entire experience.

During the incredible journey of pregnancy, my partner and I had the privilege of being under the expert care of Dr. Shuchita as our gynecologist. From the very first visit to the post-delivery follow-ups, Dr. Shuchita’s guidance, compassion, and exceptional care made the entire experience as smooth and positive as it could possibly be.

Dr. Shuchita’s knowledge and expertise in the field of gynecology and obstetrics were evident in every interaction we had with her. She patiently explained each step of the pregnancy journey, addressing our concerns and doubts with clarity. Her comprehensive approach ensured that we were well-informed about the progress of the pregnancy, potential challenges, and available options. This level of transparency and education empowered us to make informed decisions regarding our care and the health of our baby.

– Dixit Sharma
3. Dr suchita goyal, she is not a doctor to us , she is god to us ,, i am a first time mom and i was alwys having an phobia of pregnancy , that how i become a mother how i cope up with the delivery process nd many more things,, but when i meet suchita mam, she inspire me to do this thing , she alwys inspire me to do better in every opd, she filled me with confidence and in the end i deliver a healthy baby via normal delivery, these words are very less for her kindness towwards every patient ,,,i have visited many gynaes but no one is like her ,,, she listen each and every problem ,, i think everyone should visit her once i guarantee that u will never look back for another one in town ,,,, pritika saini

CASES

1. Pre eclampsia (gestational hypertension) with growth restriction:

A 2 nd gravida patient with history of severe hypertension in previous pregnancy with preterm delivery at 8 months, previous baby weight 950 gms. She was started on antihypertensives and blood thinners along with progesterone since the beginning. During this pregnancy, she delivered a healthy baby of 1.9 kg at 35 weeks in this pregnancy.

2. Previous 3 abortions

A female who had conceived 4 th time but was afraid as she already had 3 missed abortions. She was LA positive ( autoimmune disorder), hence started on low molecular weight heparin injections and this pregnancy continued. She delivered a healthy baby vaginally at 37 weeks by normal delivery.

4. Cholestasis of pregnancy

A 29 years female, 2 nd Gravida with history of severe jaundice in previous pregnancy (hepatitis and cholestasis), she had severe post partum hemorrhage and received blood and FFP. During this pregnancy, early liver function tests monitoring done, and she was started on ursodeoxycholic acid at the 6 th month once cholestasis started developing again. SHe delivered a healthy baby at 9 months pregnancy with no complications during hospital stay, discharged on 3 rd day of delivery.
Google link – Dr. Shuchita Batra Best Gynecologist in Ludhiana – Gastro & Gynae Centre https://g.co/kgs/yayJJu
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पेट में जलन और सूजन की समस्या को नज़रअन्दाज़ करना जानिए कितना खतरनाक हो सकता है !

गैस्ट्राइटिस आजकल एक काफ़ी आम प्रॉब्लम बनती जा रही है, वहीं लोग इसे महज़ एसिडिटी समझकर इसे नज़रअंदाज़ करते है, और जब दिक्कत बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है तो इसको जल्दी से ठीक नहीं किया जा सकता है, जिससे लोगों की दिक्कतें और बढ़ जाती है। पर आज के लेख के माध्यम से हम जानेगे की हम कैसे पेट में ही रहें जलन और सूजन की समस्या से खुद का बचाव कर सकते है ;

पेट में गैस्ट्राइटिस या सूजन की समस्या क्या है ?

  • गैस्ट्राइटिस का मतलब होता है पेट में सूजन का आना है और ये समस्या का एक ऐसा समूह है जिसमें पेट के अंदर की परत कमज़ोर होने लगती है। 
  • वहीं परत कमज़ोर होने के कारण पेट में जो एसिड और अन्य पदार्थ बनते है, उनसे पेट में सूजन और जलन की समस्या उत्पन्न हो जाती है। 
  • इसके अलावा ये आजकल एक बहुत आम समस्या है, तो वहीं अगर गैस्ट्राइटिस का सही समय पर इलाज न किया जाए तो इससे आगे जाकर पेट में छाले, ज़ख्म या कुछ मामलों में कैंसर की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।

पेट में किसी भी तरह की समस्या होने पर आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

पेट में जलन और सूजन के क्या कारण है ?

  • सबसे पहला कारण है, खाने-पीने का ध्यान न रखना, जिसकी वजह से आपको पेट से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 
  • वहीं बहुत ज्यादा तली या तीखी चीज़ें खाने से आपको गैस्ट्राइटिस की शिकायत हो सकती है। और तो और जंक फ़ूड से तो ये दिक्कत और बढ़ जाती है। 
  • फिजिकल एक्टिविटी की कमी और स्ट्रेस भी कारण हो सकते है, पेट में जलन और सूजन के कारण।  
  • बहुत ज्यादा स्मोकिंग, और शराब पीने से गैस्ट्राइटिस की समस्या हो सकती है। 
  • बहुत ज़्यादा पेन किलर या एंटीबायोटिक खाने से भी पेट में सूजन हो सकती है। 
  • कुछ बीमारियों के कारण भी ऐसा होता है, जैसे – HIV और ऑटोइम्यून गैस्ट्राइटिस, वहीं आपको बता दें की इस बीमारी में शरीर पेट के अंदर की परत को ख़ुद नुकसान पहुंचाने लगता है।

पेट की अंधरुनि समस्या को जानने के लिए आपको डॉक्टर के सलाह पर लुधियाना में कोलोनोस्कोपी से इसकी जाँच को करवाना चाहिए।

पेट में जलन और सूजन के दौरान कौन-से लक्षण नज़र आते है ?

  • इसके लक्षणों में आपको पेट के ऊपरी हिस्से या लेफ्ट साइड में दर्द हो सकता है।
  • ये दर्द पीछे कमर में भी आपको महसूस हो सकता है। 
  • पेट में जलन का महसूस होना। 
  • पेट का फूला हुआ या टाइट महसूस होना। 
  • पेट का भरा-भरा लगना। 
  • बिना ज्यादा खाए डकार का आना। 
  • उल्टी जैसा महसूस होना। 
  • एसिड ऊपर आने के कारण सीने में जलन का महसूस होना। 
  • भूख में कमी का आना।  
  • अगर पेट में अल्सर (छाले) या कैंसर हो गया है तो काफ़ी ज़्यादा दर्द आपको महसूस हो सकता है। 
  • भूख का न लगना और वज़न का बहुत ज़्यादा कम हो जाना। 
  • उल्टी की समस्या और मल में खून का आना।

पेट में जलन की समस्या से कैसे करें खुद का बचाव ?

  • अगर आप पेट में जलन की समस्या से खुद का बचाव करना चाहते तो इससे बचाव के लिए आपको खाना-खाने के बाद तुरंत नहीं लेटना चाहिए, क्युकी खाने के बाद तुरंत लेटने से एसिड रिफ्लक्स जैसी पाचन संबंधी दिक्कतें सामने आने लगती है। 
  • खाना-खाने के बाद कम से कम आपको 1000 स्टैप्स चलना चाहिए, ऐसा करने से डाइजेस्टिव सिस्टम, ब्लड शुगर लेवल और आपकी सेहत अच्छी रहती है।

पेट में जलन और सूजन की समस्या का इलाज क्या है ?

  • गैस्ट्राइटिस से निपटने के लिए कई दवाइयां उपलब्ध है, ये दवाइयां एसिड को बनाना बंद कर देती है, इससे पेट की परत काफ़ी हद तक ठीक हो जाती है। 
  • हिस्टामिन ब्लॉकर भी एसिड को कम करने में काफी मदद करते है, लिक्विड एंटासिड अंदर के बने एसिड को न्यूट्रलाइज करते है, इसके बाद भी समस्या ठीक नहीं होती तो डॉक्टर से सलाह आपको लेनी चाहिए। 
  • गैस्ट्राइटिस का इलाज अगर सही समय पर न किया जाए तो अल्सर और कैंसर तक की समस्या का आपको सामना करना पड़ सकता है। इसलिए अगर उपरोक्त बताए गए लक्षण आपको महसूस हो रहे है, तो केवल एसिडिटी की दवा न लें, बल्कि डॉक्टर को ज़रूर दिखाएं। 

सुझाव :

पेट की समस्या को नजरअंदाज करना मतलब मौत के मुँह में खेलने के सामान है। इसलिए जरूरी है की अगर आप पेट से जुडी किसी भी तरह की समस्या का सामना कर रहें, तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। 

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What Are the Major Causes Which Lead To Abdominal Pain, and How Is It Treated?

The abdominal area holds a significant place in performing regular activities every day. But sometimes, due to various reasons, Pain occurs in the abdomen. That can be a sign which indicates a serious disease. Sometimes it is a minor pain, but in some cases, it needs surgery to cure it.

Here are some reasons that lead to abdominal Pain:

Infection in the urinary tract.

Experienced Pain in the lower abdomen while urinating or bloating, which causes pressure and Pain in the bladder as the bacteria that cause infections attack the bladder the most, sometimes resulting in cloudy urine.

Maybe you are facing a chronic condition.

A chronic condition like Gastroesophageal reflux disease can be caused by Pain in the upper abdomen as it causes reflux, an acid in which the substance in your stomach gets back to the esophagus, leading to cramps that cause chronic abdominal Pain. To correct this condition, you need the assistance of the Best Urologist , who can quickly cure the situation and help you get back to normal activities.

Stomach flu can be the reason.

In clinical words, it is known as Gastroenteritis, caused by eating spoiled food. Nausea, Abdominal cramping, Vomiting, Bloating, and it also causes Pain in the center of the abdomen are some of the symptoms of stomach flu. Minor medications are required in extreme cases; otherwise, they resolve independently.

The most common one is Food intolerance.

It happens when the food is not adequately digested and gets built up then it causes bloating, which results in abdominal Pain. Some people experience it after consuming coffee, as it is also the reason for the discomfort in the stomach.

Excessive alcohol can be the cause of Gastritis

Excessiveness of anything can be dangerous. This fact is intact with the situation of Gastritis. It is caused due to overdose of alcohol as it results in bloating, abdominal Pain, and a painful gnawing feeling in the stomach which can turn to be chronic over time if you do not immediately control your alcohol consumption.

Another common reason is constipation.

According to an American study, this is the most common digestive issue individuals repeatedly face when they do not have enough fiber in their diet, as that can cause the build-up of waste in the bowels that leads to Pain in the abdomen. These are some of the common ways advised to you by the Best Urologist to get rid of abdominal Pain. Firstly, they will recommend you stay hydrated and not unnecessarily consume food that disturbs your stomach.

  • To give you relief from indigestion, they suggest you take antacids; also, they help in coping with the situation of reflux or GERD. 
  •  Antibiotics are suggested, To correct infections due to bacteria, 
  • Painkillers are advised to reduce the intensity of the Pain in the abdomen. 
  • Doctors advise you to perform daily exercises and help you make a diet plan which reduces the chances of abdominal Pain.
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प्रेगनेंसी के दौरान पीलिया के लक्षण दिखने पर कैसे करें इसका इलाज ?

प्रेगनेंसी एक ऐसा स्टेज है, महिलाओं की ज़िन्दगी में की इस अवस्था में उन्हे अपना खास ध्यान रखना चाहिए, लेकिन कई बार ध्यान रखने के बाद भी अगर महिलाओं को पीलिया की परेशानी हो जाए तो ऐसे में वो कैसे खुद का बचाव कर सकती है इसके बारे में आज के लेख में चर्चा करेंगे

प्रेगनेंसी के दौरान पीलिया की समस्या क्या है ?

  • प्रेगनेंसी में पीलिया लिवर की समस्या की वजह से होता है। प्रेगनेंसी में लिवर संबंधी विकार बेहद ही कम होता है, लेकिन इसके होने की वजह से बच्चे और मां दोनों को कई अन्य रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। 
  • प्रेगनेंसी में लगभग तीन प्रतिशत महिलाओं को ये समस्या गंभीर रूप से परेशान कर सकती है। पीलिया होने पर महिलाओं की आंखों का रंग पीला हो जाता है। दरअसल जब लिवर में बिलीरुबिन बनने की प्रक्रिया बढ़ जाती है, तो ये रोग हो जाता है। 
  • प्रेगनेंसी में महिलाओं को पित्त की पथरी, कोलेस्टेसिस, हाई बीपी होने की वजह से लिवर का कार्य प्रभावित हो जाता है, इसकी वजह से भी पीलिया होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • अगर आप भी प्रेगनेंसी के दौरान पीलिया की समस्या का सामना कर रहीं है तो इससे बचाव के लिए आपको गायनोलॉजिस्ट डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

प्रेगनेंसी के दौरान पीलिया में कौन-से लक्षण नज़र आते है ?

  • जी मिचलाना व उल्टी आने की समस्या का सामना करना। 
  • पीले रंग के पेशाब का आना। 
  • आंखों के रंग का पीला होना। 
  • कमजोरी महसूस होना। 
  • बुखार की समस्या का सामन करना। 
  • वहीं इसके अन्य लक्षणों में ;
  • वजन का तेजी से कम होना।   
  • भूख का न लगना। 
  • पेट में दर्द का होना। 
  • हल्के रंग के मल का आना।  
  • कब्ज की शिकायत होना, आदि।  
  • अगर आपमें पीलिया के ऐसे लक्षण नज़र आ रहें है, तो डिलीवरी के दौरान पेनलेस नार्मल डिलीवरी होने की संभावना बहुत कम रह जाती है। इसलिए पीलिया के लक्षण नज़र आने पर जल्द डॉक्टर का चयन करें।

प्रेगनेंसी के दौरान पीलिया का इलाज कैसे किया जाता है ?   

  • प्रेगनेंसी में एनीमिया की वजह से होने वाले पीलिया का इलाज आयरन युक्त आहार से किया जा सकता है। इसके अलावा पीलिया के मुख्य कारण के आधार पर ही उसका इलाज किया जाता है। इसकी पहचान होने के बाद डॉक्टर इलाज शुरु कर देते है।  
  • हेपेटाइटिस की वजह से होने वाले पीलिया में डॉक्टर मरीज को स्टेरॉयड की दवाएं देते है, ताकि मरीज़ को जल्दी फ़ायदा मिल सकें।  
  • कई बार कुछ दवाओं के इस्तेमाल से भी व्यक्ति को पीलिया हो सकती है, ऐसे में डॉक्टर सबसे पहले उन दवाओं के सेवन को बंद कर देते है।  
  • पीलिया के संक्रमण से जुड़ी समस्याओं के लिए डॉक्टर कई बार एंटी बायोटिक्स दवाएं देते है। जिसका किसी भी तरह का कोई नुकसान व्यक्ति को नहीं होता है।  

इसके अलावा आप चाहें तो गर्भवती महिला के पीलिया का इलाज लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से भी करवा सकते है।

पीलिया में गर्भवती महिलाएं किन खाने की चीजों का रखें खास ध्यान !

  • गन्ने का जूस पिएं ताकि पीलिया की समस्या से बचाव हो सकें। 
  • ऐसी अवस्था में पीलिया होने पर जितना हो सके व्यक्ति को अपने शरीर को हाइड्रेट रखना चाहिए। 
  • जितना हो सकें पीलिया के मरीज को छाछ या फिर दही का सेवन करना चाहिए।
  • मूली के रस को पिएं। 
  • नीम की पत्तियों का सेवन करें आदि।

पीलिया होने पर गर्भवती महिलाएं किन चीजों का करें परहेज ?

  • डॉक्टर के द्वारा हमेशा पीलिया के मरीजों को मसालेदार चीजों का सेवन न करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा, जंक फूड से भी परहेज करना चाहिए। क्युकि इनमें मसालों का अधिक इस्तेमाल किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसान भी साबित होता है, खास करके गर्भवती महिलाओं के लिए।
  • फिर चाय और कॉफी का सेवन भी नहीं करना चाहिए। 
  • पीलिया के मरीजों को अचार का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा नमक से भी परहेज करना चाहिए। तो वहीं मीट, चिकन और अंडे का सेवन भी नहीं करना चाहिए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न !

गर्भावस्था के दौरान पीलिया होने के क्या कारण है ?

प्रेग्नेंसी के दौरान इंफ़ेक्शन या वायरल हेपेटाइटिस, पीलिया की सबसे आम वजह में शामिल है। हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी, या ई इन सभी वायरस से वायरल हेपेटाइटिस जैसा गंभीर इंफ़ेक्शन हो सकता है। 

अगर गर्भवती महिला को पीलिया हो जाए तो क्या होगा ?

प्रेगनेंसी के दौरान लिवर से जुड़ी कई बीमारियों का जोखिम रहता है। जिसमें पीलिया मतली उल्टी और पेट में दर्द शामिल है। गर्भावस्था के दौरान लिवर से जुड़ी बीमारी न सिर्फ मां बल्कि बच्चे की जान के लिए भी ख़तरनाक साबित हो सकती है।

कौन-से फल पीलिया को कम करते है ?

गाजर और चुकंदर का जूस पीलिया के मरीजों के लिए रामबाण इलाज है। अगर नियमित रूप से इन दोनों फलों का सेवन इनके द्वारा किया जाता है, तो पीलिया की समस्या से ये छुटकारा पा सकते है।  

क्या पीलिया में खरबूजा खा सकते है ?

बिलकुल खा सकते है, इसके अलावा पपीता भी पीलिया से राहत देने में मदद करते है।

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जानिए एक्सपर्ट की जुबानी की क्या, एसिडिटी बन सकता है तेज सिर दर्द का कारण ?

बहुत से लोगों को एसिडिटी की समस्या होती है, जोकि कोई बड़ी बात नहीं है आज के समय में प्रदूषित खान-पान को लेकर। वहीं इसकी वजह से हमारा असामयिक और अस्वस्थ्य खानपान और दिनचर्या भी काफी प्रभावित होती है। लेकिन कई लोगों को एसिडिटी के चलते अन्य परेशानिया भी होने लगती है, जैसे एस‍िड‍िटी होने पर स‍िर में तेज दर्द का उठना भी आपस में सम्बन्धित है ;

क्या वाकई एस‍िड‍िटी के कारण स‍िर दर्द होता है ?

  • एसिडिटी आमतौर पर सिरदर्द और माइग्रेन से जुड़ी होती है। यह आंत-मस्तिष्क अक्ष के कारण होता है। आंत और मस्तिष्क के बीच एक संबंध होता है। कई अध्ययनों ने गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स रोग और सिरदर्द के बीच एक मजबूत कड़ी की पहचान भी की है।
  • वहीं एसिड रिफ्लक्स तब होता है जब पेट का एसिड अन्नप्रणाली में वापस चला जाता है, इसके बाद सीने में जलन होती है। यह एक क्षणिक या लगातार स्थिति हो सकती है। एसिड रिफ्लक्स के साथ सिरदर्द या माइग्रेन का संबंध हो सकता है। एक अध्ययन के अनुसार, जो लोग माइग्रेन से पीड़ित होते है उन्हें एसिड रिफ्लक्स होने का खतरा अधिक होता है। 
  • इसके अलावा, जो लोग लगातार सिरदर्द का अनुभव करते है, उनमें एसिड रिफ्लक्स की चिंता उन लोगों की तुलना में अधिक देखी जाती है, जिन्हें कम सिरदर्द होता है।
  • कुछ अनुभवी एक्सपर्ट के मुताबिक सिरदर्द की गोलियां, नॉन-स्टेरायडल, एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं या पेन किलर्स जैसी दवाएं वास्तव में एसिडिटी बढ़ा सकती है। सिरदर्द एसिडिटी का कारण बन सकता है और इसके विपरीत और माइग्रेन इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) जैसी अन्य स्थितियों से भी जुड़ा हुआ हो सकता है।

एसिडिटी के कारण सिर दर्द होता है या नहीं इसके बारे में जानने के लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए। 

एसिडिटी को किस तरीके से ठीक किया जा सकता है ?

  • एसिडिटी  को ठीक करने के लिए आपको विशेष रूप से रात में मसालेदार, फैटी या फिर भारी भोजन करने से बचना चाहिए।
  • किसी भी ऐसे भोजन को आहार से हटा दें जो ऐसिडिटी को बढ़ाता है और जिसके परिणामस्वरूप सिरदर्द होता है।
  • धूम्रपान और शराब का सेवन कम करें या फिर बंद ही कर दें तो ही अच्छा है।
  • रात का खाना जल्दी खा लें, शाम 7-8 बजे तक, जिससे रात के खाने और सोने के बीच कम से कम दो से तीन घंटे का समय मिल जाए। यह लेटने के कारण होने वाले एसिड रिफ्लक्स को कम करने और सिरदर्द को कम करने में मदद करेगा।
  • अतिरिक्त किलो वजन कम करने से एसिडिटी और सिरदर्द से संबंधित समस्याओं को दूर करने में भी मदद मिलती है।
  • अगर किसी दवाई के कारण आपको एसिडिटी की समस्या बढ़े तो इससे बचाव के लिए आपको एक बार डॉक्टर से जरूर सलाह लेना चाहिए। 

एसिडिटी की समस्या किसके कारण बढ़ती है !

  • पेट में एस‍िड‍िटी होने पर आपको अनहेल्‍दी फैटी फूड का सेवन नहीं करना चाह‍िए। क्युकी फैटी फूड में नमक, म‍िर्च, मसाला ज्‍यादा होता है, ज‍िससे स‍िर और पेट दोनों में दर्द हो सकता है।
  • अपनी डाइट को हल्‍का रखें। आपको पानी का सेवन ज्‍यादा से ज्‍यादा करना है, क्युकी पानी पीने से एस‍िड‍िटी तो दूर होगी ही साथ ही ब्रेन में ऑक्‍सीजन पहुंचने से स‍िर का दर्द भी ठीक हो जाएगा।
  • आपको तंबाकू का सेवन भी कम से कम करना चाह‍िए बल्‍क‍ि न ही करें तो बेहतर है, तंबाकू कई तरह से आपकी सेहत के ल‍िए हान‍िकारक है इसल‍िए इससे बचें। 
  • ज‍िन लोगों का वजन ज्‍यादा होता है उन्‍हें भी एस‍िड र‍िफ्लक्‍स की समस्‍या होती है, इसलि‍ए आपको वजन कम करने के उपाय जानकर उन्‍हें अपनाना चाहि‍ए।

अगर आपकी एसिडिटी की समस्या बार-बार बढ़ते जा रही है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में कोलोनोस्कोपी से अपने पेट की जाँच को जरूर करवाना चाहिए।

निष्कर्ष :

पेट व दिमाग दोनों का हमारे शरीर में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, इसलिए जरूरी है की इनमे किसी भी तरह की समस्या आने पर आपको जल्द डॉक्टर के संपर्क में आना चाहिए और साथ ही उपरोक्त बातों का भी आपको खास ध्यान रखना चाहिए।

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गर्भवती महिलाओं को टाइप 1 डायबिटीज में किस तरह की सावधानियों को बरतना चाहिए !

गर्भावस्था एक ऐसा पड़ाव है हर महिला की ज़िन्दगी में की इस पड़ाव से तो हर महिला होकर गुजरती ही है, पर गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई तरह की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है, तो वहीं गर्भावस्था में कई महिलाएं टाइप 1 डायबिटीज की समस्या का भी सामना करती है, तो चलिए जानते है की इस तरह की समस्या से कैसे वो खुद का बचाव कर सकती है, और साथ ही किन बातों का उन्हे इस दौरान खास ध्यान रखना चाहिए;

महिलाओं में डायबिटीज की समस्या क्या है ?

  • डायबिटीज लंबे समय तक चलने वाली एक गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या है। वहीं इस बीमारी को ठीक करना मुश्किल है, लेकिन इसके लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है। वहीं महिलाओं में डायबिटीज का असर प्रेग्‍नेंसी पर भी देखने को मिलता है। 
  • इसके अलावा अगर माँ डायबिटीज की बीमारी से परेशान है, तो इसका नुकसान उनके बच्‍चे को भी उठाना पड़ सकता है।

गर्भवती महिलाओं में टाइप 1 डायबिटीज के क्या लक्षणा नज़र आते है ?

  • असामान्य प्यास का लगना। 
  • लगातार पेशाब का आना। 
  • पेशाब में शुगर की मात्रा का बढ़ना। 
  • थकान या उल्टी की समस्या। 
  • धुंधली दृष्टि की समस्या।
  • योनि में संक्रमण का भय। 
  • मूत्राशय और त्वचा में संक्रमण की समस्या का सामना करना।

अगर आपमें भी गर्भावस्था के दौरान टाइप 1 डायबिटीज के इस तरह के लक्षण नज़र आए या किसी भी तरह की समस्या नज़र आए तो इससे बचाव के लिए आपको बेस्ट गायनोलॉजिस्ट के संपर्क में आना चाहिए। 

प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज से ग्रस्त महिलाएं किन बातों का रखें ध्यान !

  • अगर ​डायबिटीज से ग्रस्त महिलाओं की डिलीवरी होती है, तो उन्हे जन्‍म के समय बच्चे के अधिक वजन के होने पर खास ध्यान रखना चाहिए। 
  • टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्‍त मांओं के बच्‍चों में जन्‍मजात बीमारियां या विकार होने का खतरा ज्‍यादा रहता है। हार्ट डिजीज, हाथ-पैरों में विकलांगता और रीढ़ की हड्डी में कोई विकार हो सकता है। इसके अतिरिक्‍त शिशु के विकास और नसों से संबंधित कई समस्‍या भी आ सकती है।
  • डायबिटीक मां के शिशु में हाइपोग्लाइसीमिया या लो ब्‍लड ग्‍लूकोज भी हो सकता है। जन्‍म से पहले ब्‍लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए प्रयास करने की वजह से ऐसा हो सकता है। इसमें बच्‍चे का ब्‍लड शुगर तेजी से घटता है और ब्रेन डैमेज होने जैसी जटिलताएं आ सकती है।
  • डायबिटीज से ग्रस्‍त मां के नवजात शिशु में ‘रेस्पिरेट्री डिस्‍ट्रस सिंड्रोम’ (सांस लेने में तकलीफ का सामना करना) की समस्या हो सकती है। डायबिटीज भ्रूण के फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है और फेफड़ों के विकास को धीमा कर सकता है। इससे शिशु को रेस्पिरेट्री डिस्‍ट्रेस सिंड्रोम हो सकता है। 

अगर आप अपनी गर्भावस्था की अवधि पूरी करने के बाद पेनलेस नार्मल डिलीवरी की चाहत रखती है तो इसके लिए आपको डायबिटीज के शुरुआती लक्षणों को जानकर इसका इलाज जरूर करवाना चाहिए।

टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्त महिलाएं कैसे रखें अपने खाने का खास ध्यान ?

  • हर दिन लगातार मात्रा में भोजन करने और निर्देशानुसार इंसुलिन लेने से रक्त शर्करा के स्तर में काफी सुधार हो सकता है। यह मधुमेह से संबंधित जटिलताओं, जैसे कोरोनरी धमनी रोग, गुर्दे और नेत्र रोग, और तंत्रिका क्षति के जोखिम को भी कम कर सकता है। 
  • इसके अलावा, ये उपाय शरीर के वजन प्रबंधन पर भी प्रभाव डालते है।
  • हाई शुगर और तली भुनी चीजों का सेवन करने से आपको बचना चाहिए। 
  • प्रयाप्त मात्रा में आपको सब्जियों और फलों का सेवन करना चाहिए।

सुझाव :

टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्त गर्भवती महिलाओं को लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। और इस दौरान उन्हें हर तरह की समस्या से बचाव के लिए डॉक्टर के संपर्क में आना चाहिए।

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जीईआरडी (GERD) के क्या है लक्षण: कारण, उपचार और परहेज ?

GERD जिसे, ‘गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स रोग’ के नाम से जाना जाता है और ये रोग तब होता है जब पेट का एसिड बार-बार आपके मुंह और पेट (ग्रासनली) को जोड़ने वाली नली में वापस बहता है। यह बैकवाश आपके अन्नप्रणाली के अस्तर को परेशान कर सकता है। बहुत से लोग समय-समय पर एसिड रिफ्लक्स का अनुभव करते है। तो चलिए जानते है आज के लेख के माध्यम से की क्या है जीईआरडी (GERD) से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी ;

जीईआरडी (GERD) के कारण क्या है ?

  • अधिक वजन या मोटापा होना। 
  • धूम्रपान  अत्यधिक सेवन करना। 
  • गर्भावस्था। 
  • बेंजोडायजेपाइन, कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स, अस्थमा की दवाएं, एनएसएआईडी और ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट जैसी कुछ दवाएं जीईआरडी का कारण बन सकती हैं या जीईआरडी के लक्षणों को बढ़ा सकती है।
  • हायटल हर्निया से जीईआरडी विकसित होने या जीईआरडी के लक्षण खराब होने की संभावना भी बढ़ सकती है।

इसके कारणों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए आप लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन कर सकते है।

क्या है जीईआरडी (GERD) ?

  • बहुत से लोग समय-समय पर एसिड रिफ्लक्स का अनुभव करते है। हालांकि, जब एसिड रिफ्लक्स समय के साथ बार-बार होता है, तो यह जीईआरडी का कारण बन सकता है। 
  • अधिकांश लोग जीवनशैली में बदलाव और दवाओं के साथ जीईआरडी की परेशानी का प्रबंधन करने में सक्षम है।
  • यदि आपके पेट में किसी भी तरह की परेशानी नज़र आए तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में कोलोनोस्कोपी जांच का चयन करना चाहिए, लेकिन ध्यान रहें आपके पेट में कोई भी समस्या काफी पुरानी हो तब ही इसका चयन करें। 

जीईआरडी (GERD) के लक्षण क्या है ?

  • सीने में जलन जोकि खाने के बाद अक्सर होती है। 
  • एसिड रिफ्लक्स जब पेट का एसिड आपके मुंह में लौट आता है, जिससे अप्रिय, खट्टा स्वाद का अनुभव आपको होता है। 
  • बीमार महसूस करना या होना। 
  • लगातार खांसी की समस्या। 
  • छाती में दर्द का बने रहना। 
  • जी मिचलाने की समस्या का सामना करना। 
  • निगलते समय दर्द का अनुभव करना। 
  • भूख में कमी का सामना करना। 
  • लगातार उल्टी की समस्या का बने रहना। 
  • पाचन तंत्र में रक्तस्राव, जैसे उल्टी जिसमें खून होता है और साथ ही मल जिसमें खून दिखाई देता है। 
  • अस्पष्टीकृत वजन का घटना भी इसमें शामिल है।

जीईआरडी (GERD) रोग में खाने में क्या परहेज करना चाहिए !

  • परहेज करने योग्य खाद्य पदार्थ की बात करें तो इसमें आपको लाल मांस, पूर्ण वसा वाले डेयरी उत्पादों और अंडे की जर्दी से आने वाली संतृप्त वसा जीईआरडी को बढ़ा सकती है और इससे बचना ही बेहतर है। यदि आप इन खाद्य पदार्थों से पूरी तरह परहेज नहीं कर सकते, तो इन्हें कम मात्रा में या केवल दोपहर के भोजन के लिए खाएं ताकि जीईआरडी के लक्षण आपको रात में जगाए न रखें। 
  • जीईआरडी में मैदा जैसे परिष्कृत अनाज से बचना चाहिए क्योंकि वे पाचन तंत्र में जलन पैदा कर सकते है और जीईआरडी के लक्षण पैदा कर सकते है।
  • जीईआरडी मरीज में किसी में जीईआरडी के लक्षण दिख रहे हों तो संतरे और नींबू जैसे खट्टे फल और टमाटर, प्याज और लहसुन जैसी सब्जियों से किसी भी रूप में परहेज करना चाहिए।
  • काली मिर्च या मिर्च जीईआरडी के लक्षणों को बढ़ाती है इसलिए इनसे बचना चाहिए। जीईआरडी के लक्षण होने पर बिना मिर्च वाला फीका खाना खाएं।

जीईआरडी (GERD) के उपचार में क्या शामिल है ?

  • सबसे पहले इसके उपचार में डॉक्टर के कहेनुसार दवाएं को शामिल करना चाहिए। 
  • फंडोप्लीकेशन सर्जरी, जीईआरडी के लिए सबसे आम सर्जरी है। इस सर्जरी के दौरान, एक सर्जन निचले एसोफेजियल स्फिंक्टर पर दबाव डालने और रिफ्लक्स को रोकने के लिए आपके पेट के ऊपरी हिस्से को ग्रासनली के अंत के आसपास सिल देता है। यह सर्जरी लेप्रोस्कोपिक या ओपन तकनीक का उपयोग करके की जा सकती है।
  • बेरिएट्रिक सर्जरी, में यदि आपको जीईआरडी और मोटापा है, तो वजन घटाने वाली सर्जरी की सिफारिश की जा सकती है। गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी जीईआरडी के लिए वजन घटाने वाली सर्जरी का सबसे आम प्रकार है।
  • एंडोस्कोपी का चयन डॉक्टर कुछ मामलों में करते है।

सुझाव :

आप चाहे तो इन सब तरह की सर्जरी को लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से भी करवा सकते है। 

निष्कर्ष :

पेट में किसी भी तरह की समस्या अगर आपको नज़र आए तो इससे बचाव के लिए आपको जल्द डॉक्टर के सम्पर्क में आना चाहिए और किसी भी तरह के इलाज को अपनाने से पहले एक बार डॉक्टर से जरूर सलाह लें। 

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गर्भवती महिला के लिए कैसे जरूरी है डबल मार्कर टेस्ट (Double Marker Test), जानिए क्या है इसकी प्रक्रिया, परिणाम व लागत

गर्भावस्था के दौरान मां और बच्चे के बेहतर भविष्य और स्वास्थ्य को देखते हुए कई प्रकार के मेडिकल टेस्ट का सहारा लिया जाता है। वहीं इन मेडिकल टेस्ट को दो वर्गों में बांटा जाता है। पहले वर्ग में वो सभी टेस्ट आते है, जो जच्चे और बच्चे की सेहत के लिहाज से बेहद जरूरी माने गए है। 

वहीं, दूसरे वर्ग में उन टेस्ट को शामिल किया गया है, जिन्हें डॉक्टर भविष्य में आने वाली किसी परेशानी की आशंका के मद्देनजर कराने की सलाह देते है और डबल मार्कर टेस्ट भी इसी लिए ही करवाए जाते है, तो आज के लेख में भी हम इस टेस्ट के बारे में तमाम जानकारी आपके साथ सांझी करेंगे ;

क्या है डबल मार्कर टेस्ट (Double Marker Test) ?

  • डबल मार्कर टेस्ट की बात करें, तो यह गर्भधारण की पहली तिमाही पर किया जाने वाला रक्त परीक्षण है। खास यह है कि डबल मार्कर टेस्ट नॉन-इनवेसिव स्क्रीनिंग यानि की बिना किसी कट मार्क के किया जाने वाला परीक्षण है। 
  • वहीं इस टेस्ट के जरिए डाउनग्रेड सिंड्रोम, एडवर्ड सिंड्रोम और पटाउ सिंड्रोम जैसे क्रोमोसोम (गुणसूत्र) का पता लगाया जाता है। क्रोमोसोम में किसी प्रकार की कमी होने पर भ्रूण के विकास में बाधा आ सकती है या फिर जन्म के बाद भविष्य में शिशु को किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 
  • वहीं कई सारे जीन के समावेश को क्रोमोसोम यानी गुणसूत्र के नाम से भी जाना जाता है।

यदि आप डबल मार्कर टेस्ट करवाने के बारे में और विस्तार से जानना चाहते है तो इसके लिए आपको बेस्ट गायनोलॉजिस्ट डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

किन्हे होती है डबल मार्कर टेस्ट की जरूरत ?

  • गर्भवती महिलाएं जो एक विशेष प्रकार के खतरे के अंतर्गत आती है, उन्हें पहले ट्राइमेस्टर में प्रेग्नेंसी डबल मार्कर टेस्ट से होकर गुजरना पड़ सकता है। 
  • इसके अलावा जिन महिलाओं में निम्न बातें नज़र आए उसके लिए उन्हें डबल मार्कर टेस्ट को जरूर कराना चाहिए, जैसे –
  • अगर कोई महिला 35 वर्ष या इससे अधिक उम्र के बाद गर्भवती हुई है, तो उन्हे इस टेस्ट का चयन करना चाहिए। 
  • पिछला शिशु जो गुणसूत्रीय समस्या के साथ पैदा हुआ हो। 
  • अनुवांशिक दोष भी आपको इस टेस्ट को करवाने की तरफ लें जा सकते है।  
  • टाइप-1 डायबिटीज से संबंधित इंसुलिन की समस्या का सामना कर रहीं महिलाएं को भी इस टेस्ट का चयन करना चाहिए।
  • बहुत सी महिलाओं के मन में ये बात बैठी हुई है की डबल मार्कर टेस्ट में काफी पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है जिसके चलते वो इस टेस्ट को करवाने से मना कर देती है लेकिन आपको बता दें की ये टेस्ट पेनलेस टेस्ट की कैटेगरी में शामिल है।

डबल मार्कर टेस्ट की प्रक्रिया क्या है ?

  • यह एक ऐसा ब्लड टेस्ट है, जिसे गर्भावस्था के दौरान होने वाले अल्ट्रासाउंड के साथ किया जाता है। 
  • इस टेस्ट की सहायता से चिकित्सक गर्भवती महिला के खून की जांच करके उसमें उपस्थित हार्मोन और प्रोटीन की जांच करते है। 
  • बता दें कि इस जांच में जिस हार्मोन की जांच की जाती है, उसे फ्री बीटा एचसीजी के नाम से संबोधित किया जाता है। 
  • वहीं, जांच में शामिल किए जाने वाले प्रोटीन की बात की जाए, तो इस टेस्ट के दौरान ग्लाइकोप्रोटीन और पीएपीपी-ए (प्रेगनेंसी एसोसिएटेड प्लाज्मा प्रोटीन) का परीक्षण किया जाता है।

डबल मार्कर टेस्ट की लागत क्या है ?

  • इसकी शुरुआती लागत की बात करें तो ये 2,500 से लेकर 3,500 के आस-पास आती है। 
  • वहीं इसकी लागत इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप कहाँ रहते है और कौन-से हॉस्पिटल का चयन करते है।

डबल मार्कर टेस्ट के क्या परिणाम है ?

  • डबल मार्कर टेस्ट के परिणाम भविष्य में होने वाले डाउन सिंड्रोम से संबंधित गंभीर जोखिमों को दर्शाते है। इन्हें कुछ इस तरह से समझा जा सकता है, जैसे अगर की गई जांच में फ्री बीटा एचसीजी की मात्रा सामान्य सीमा से अधिक पाई जाती है, तो इसे पॉजिटिव मार्कर माना जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि गर्भवती में डाउन सिंड्रोम होने की आशंका अधिक हैं। 
  • वहीं, दूसरी स्थिति में पीएपीपी-ए की मात्रा सामान्य से कम मापी जाती है, तो यह स्थिति भी डाउन सिंड्रोम के लिए पॉजिटिव परिणाम के तौर पर देखी जाती है।

सुझाव :

आप चाहे तो डबल मार्कर टेस्ट की जाँच को लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से भी करवा सकते है। 

निष्कर्ष :

डबल मार्कर टेस्ट को करवाना हर गर्भवती महिला के लिए बहुत जरूरी है, वहीं इस जाँच को डॉक्टर के सलाह पर ही करवाए, और खुद की मर्ज़ी से ऐसी अवस्था में इस जाँच का चयन आपको नहीं करना चाहिए।

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What is lactose intolerance? Types, causes, and symptoms.

Lactose intolerance occurs when your small intestine cannot make a digestive lactose enzyme called lactase. Lactase helps to break down lactose in food after your body can absorb nutrients and protein. Lactose intolerance happens when your body can’t break down sugar lactose. It is mainly shown in dairy products and milk when consumed. These symptoms show when you suffer lactose intolerance, such as gas, belly pain, and diarrhea. If you are allergic to regular cow milk, choose A2 milk , which is completely free from A1 beta-casein and does not cause digestive issues.

Type of lactose intolerance

Primary lactose intolerance 

When a baby is born, he needs a lactase enzyme for digestion. Most people are born with enough enzymes. In these conditions, our body is unable to make lactose. Then lactase level decreases, you can not take a milk product, and when you take milk, you feel sick such as nausea, vomiting, stomach pain, etc. 

Secondary lactose intolerance

injury, surgery, and intestine disease can be causes lactose intolerance 

Developmental lactose intolerance

This type of lactose shows in premature babies. Because premature babies do not make enough lactose, they suffer from digestive lactase. After 34 weeks, he showed less symptoms.  

Causes 

  • Premature babies are not able to make proper lactose. Then they suffer from digestive problems.
  • After injuries and infection, or small intestine stops making a lactose
  • People born with the inability then suffer from making lactose. That case rarely shows in people. 

Symptoms 

If you have lactose intolerance, you cannot digest milk. If you take dairy milk products, then you suffer from 

  • Gas
  • Abnormal cramps 
  • Nausea 
  • Diarrhea 
  • Bloating 

How to diagnose 

You’re suffering from nausea, diarrhea, and abnormal pain when you drink and eat milk products. You can check with your doctor. Your healthcare reviews your past medical history. After symptoms and diagnosis. They find lactose intolerance through some tests, such as 

  • Lactose tolerant test
  • Hydrogen breath test 
  • Stool acidity test 

Lactose tolerant test 

This test is like a blood test measuring your body’s reaction after taking a liquid. Because it contains a high level of lactose intolerance 

Hydrogen breath test

Hydrogen breath test in which the doctor measures the hydrogen in your breath when you consume a high quantity of liquid in lactose. Your body is unable to digest the lactose. Or high levels of hydrogen in your breath mean you have a lactose intolerance. 

Stool acidity test 

The stool acidity test is in which the doctor measures the amount of acid in the stool. Mainly this test applies to children. When he does not digest lactose, their stool will have lactose acid, glucose, and other acids. 

Treatment 

In this treatment, your healthcare suggests avoiding milk products in your diet. It helps to decrease the level of lactose intolerance. And also recommend trying other dairy products if they show fewer symptoms than if you take a small quantity of milk. You can buy Cow milk because cow milk is full of nutrients, protein, and minerals essential to our body. After taking milk to show those symptoms, you can take calcium, vitamin D, protein, and riboflavin supplements. Those supplements help to get enough calcium.   

Tips for managing lactose in your diet 

  • You can start by taking a small quantity of milk product into your diet after measuring your body’s reaction. 
  • You can take a milk or milk product with your meal, showing fewer symptoms. 
  • You can ask your doctor about lactose. They provide some pills then you relive those symptoms after taking a milk product. 
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एंडोस्कोपी कराने के क्या है – कारण, तरीके, फायदे और नुकसान ?

एंडोस्कोपी आपके शरीर के आंतरिक अंगों की अच्छे से जाँच करके आपकी बीमारी के बारे में पता करती है और साथ ही आपके परेशानी का हल भी करती है पर क्या है आप जानते है की एंडोस्कोपी के फायदे के साथ इसके कुछ नुकसान भी है। इसके अलावा एंडोस्कोपी को किन कारणों से करवाया जाता है, इसके बारे में चर्चा करेंगे ;

क्या है एंडोस्कोपी ?

  • एंडोस्कोपी जिसका खासतौर पर अर्थ होता है चिकित्सीय कारण और एंडोस्कोप की मदद से शरीर के अन्दर देखना। एंडोस्कोप एक ऐसा उपकरण है, जिसका प्रयोग शरीर के खोखले अंग अथवा छिद्रों के अन्दर जाँच करने के लिए किया जाता है।
  • शरीर के आंतरिक अंगों और उतकों को विस्तार से देखने के लिए शरीर में एक लंबा और पतला ट्यूब सीधे प्रवेश कराया जाता है, इस प्रक्रिया को एंडोस्कोपी कहते है। इस प्रक्रिया से शरीर में चीरा लगाए बिना शरीर के अंगों में उत्पन्न हो रही बीमारियों और समस्याओं का पता लगाया जाता है। 
  • एंडोस्कोपी एक पतला और लचीला ट्यूब होता है जिसके ऊपर कैमरा लगा होता है। 
  • इस उपकरण को मरीज के मुंह और गले से गुजारकर भोजन नली में प्रवेश कराया जाता है। 

अगर आपको अपने शरीर के आंतरिक अंगों की जाँच को करवाना है तो इसके लिए आप लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन भी कर सकते है।

एंडोस्कोपी का चयन क्यों किया जाता है ?

  • पेट दर्द के कारणों का पता लगाने के लिए।
  • अल्सर, गैस्ट्रिटिस और कुछ निगलने में कठिनाई होने पर।
  • पाचन तंत्र में ब्लीडिंग होने पर।
  • गंभीर रूप से डायरिया और कब्ज होने पर।
  • कोलन में पॉलिप्स या उभार हो जाने पर।
  • पेट के अल्सर, पित्ताशय की पथरी और ट्यूमर को निकालने के लिए।
  • पैन्क्रियाटिटिस और पेट में सूजन होने पर।
  • अल्सरेटिव कोलाइटिस के निदान के लिए।
  • योनि से असामान्य रूप से ब्लीडिंग होने पर।
  • पेशाब में खून आने पर।
  • पाचन तंत्र से जुड़ी बीमारियां होने पर।
  • हार्निया के निदान के लिए।
  • संक्रमण होने पर।

एंडोस्कोपी किन तरीकों से किया जाता है !

  • डॉक्टर उस मॉनीटर पर मरीज के सांस की गति, ब्लड प्रेशर और ह्रदय गति की निगरानी करते है। इसके बाद डॉक्टर मरीज को दवा देते है। 
  • यह दवा बांह की नस में दी जाती है जो एंडोस्कोपी के दौरान मरीज को दर्द से राहत दिलवाती है।
  • इसके बाद डॉक्टर मरीज के मुंह में एनेस्थेटिक स्प्रे छिड़कते हैं। यह दवा गले को सुन्न कर देती है और इससे लंबे समय तक एक लचीला ट्यूब या एंडोस्कोप गले में प्रवेश कराये रखने में मदद मिलती है। 
  • मुंह को खुला रखने के लिए मरीज के मुंह में एक प्लास्टिक माउथ गार्ड पहना दिया जाता है। इसके बाद एंडोस्कोप को गले के अंदर डाला जाता है और डॉक्टर मरीज को गले के नीचे एंडोस्कोप को खिसकाने के लिए कहते है। इस दौरान मरीज को गले में हल्का दबाव महसूस होता है लेकिन उसे दर्द नहीं होता है।

यदि आपको बड़ी आंत में किसी तरह की परेशानी है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में कोलोनोस्कोपी का चयन करना चाहिए।

एंडोस्कोपी के क्या फायदे है ?

  • एंडोस्कोपी कराने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अन्य टेस्ट के बजाय यह कम आक्रामक होता है।
  • यह टेस्ट कराने के लिए कम से कम तैयारी की जरूरत पड़ती है और समय भी कम लगता है।
  • हालांकि इस एंडोस्कोपी टेस्ट कराने के अंतिम रात के बाद कुछ खाना मना होता है जिससे पेट खाली रहता है और रोग का पता सही तरीके से चल पाता है।

एंडोस्कोपी टेस्ट के नुकसान क्या है ?

  • एंडोस्कोपी के बाद मरीज के शरीर में ऐंठन और शरीर में सूजन हो सकती है।
  • एनेस्थेसिया दिए जाने के कारण मरीज का गला कई घंटों तक सुन्न रह सकता है।
  • परीक्षण वाले स्थान पर संक्रमण होने का खतरा बना रहता है।
  • जिस जगह पर एंडोस्कोपी की जाती है वहां लगातार दर्द बना रह सकता है।
  • एंडोस्कोपी कराने के बाद मरीज को आंतरिक ब्लीडिंग भी हो सकती है।
  • मरीज के मल का रंग अधिक गहरा हो सकता है आदि।

एंडोस्कोपी की जाँच के लिए बेस्ट सेंटर !

आप चाहे तो एंडोस्कोपी की जाँच लुधियाना गैस्ट्रो एवं गयने सेंटर से भी करवा सकते है।

निष्कर्ष :

शरीर की आंतरिक समस्या के बारे में जानने के लिए आप समय-समय पर एंडोस्कोपी की जाँच को करवाते रहें ताकि आपको किसी भी तरह की समस्या का सामना न करने पड़े।

 

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पेट, या लीवर रोग में कैसे सहायक होंगे गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डॉक्टर !

पेट, या लीवर रोग की समस्या का सामना करना कोई बड़ी बात नहीं है, इस प्रदूषण भरे वातावरण में और लोगों के द्वारा बरती गई लापरवाही की वजह से। वहीं पेट या लिवर संबंधी समस्या क्या है, और इसके लिए मरीज़ को किस तरह के हॉस्पिटल या सेंटर का चयन करना चाहिए और पेट संबंधी समस्या को ठीक करने में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी का क्या सहयोग है इसके बारे में हम निम्न में चर्चा करेंगे ;

कौन होते है गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डॉक्टर ?

  • गैस्ट्रोएंटरोलॉजी चिकित्सा का एक क्षेत्र है जो पाचन तंत्र, या जठरांत्र संबंधी मार्ग और यकृत के स्वास्थ्य पर केंद्रित है। गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम से लेकर हेपेटाइटिस-सी तक हर चीज का इलाज कर सकते है।
  • गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट भी एक डॉक्टर होते है। इनमें पेट, आंतों, कोलोन, अग्न्याशय, अन्नप्रणाली, पित्ताशय, पित्त नलिकाओं और लिवर के विकार शामिल होते है। यद्यपि गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल अंगों से संबंधित अधिकांश समस्याओं का इलाज करने के लिए उपयुक्त माने जाते है।

यदि आपको पाचन तंत्र, या जठरांत्र संबंधी समस्याओं का इलाज करवाना है, तो इसके लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डॉक्टर का काम क्या-क्या है ?

  • डॉक्टर चाहे किसी भी बीमारी से जुड़े हुए क्यों न हो उनका पहला काम अपने मरीजों से मिलना और उनका आकलन करना होता है।
  • कोलोन और पाचन तंत्र के भीतर देखने के लिए कॉलोनोस्कोपी और एंडोस्कोपी करना भी उनका एक काम है।
  • एक्स-रे, एमआरआई, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके परीक्षण करना।
  • सर्जरी के लिए मरीजों को रेफर करना और सर्जरी के बाद उनका इलाज जारी रखना।
  • इरिटेबल आंत्र सिंड्रोम, कोलाइटिस, गैस्ट्रिटिस, बवासीर, क्रोहन रोग, लैक्टोज इनटोलरेंस, हार्टबर्न, गैस्ट्रोएसोफेजियल रिफ्लक्स डिसीज, अल्सर, सीलिएक डिसीज, पित्ताशय की बीमारी और कुछ कैंसर जैसी स्थितियों के लिए रोगियों का इलाज इनके द्वारा किया जाता है।
  • चिकित्सा कर्मचारियों के साथ बैठक करना और व्यावसायिक निर्णयों में योगदान देना आदि सब इनके कार्यो में शामिल है।

अगर पेट से जुडी आंतरिक समस्याओं से आप भी ग्रस्त है, तो इसके लिए आपको लुधियाना में कोलोनोस्कोपी से अपनी जाँच को करवाना चाहिए।

पेट या लिवर संबंधी रोग कौन-से है ?

  • पेट में संबंधित रोग की बात करें तो इसमें सिरदर्द, बुखार, एसिडिटी, बदहजमी, चक्कर आना व उल्टी-दस्त आदि से लेकर पीलिया हेपेटाइटस, फैटी लीवर आदि शामिल है। 
  • लिवर संबंधित रोगों की बात करें तो इसमें हेपेटाइटिस-ए, हेपेटाइटिस-बी, हेपेटाइटिस-सी शामिल है। 
  • इसके अलावा लंबे समय तक शराबबंदी के कारण लिवर का ख़राब होना, जिगर में वसा का निर्माण, पहले चरण के स्क्लेरोजिंग चोलैंगाइटिस, लिवर ट्यूमर, पित्त की नली का कैंसर आदि लिवर रोग है।

पेट और लिवर रोग के इलाज के लिए बेस्ट सेंटर !

  • अगर आप पेट या लिवर संबंधित समस्याओं का सामना कर रहें है, तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना गैट्रो एवं गयने सेंटर के अनुभवी डॉक्टर, “डॉ कार्तिक गोयल” से जरूर मुलाकात करनी चाहिए। और लिवर के गंभीर रोग से निजात पाने के लिए अपने डॉक्टर को अपनी जाँच की रिपोर्ट जरूर दिखाए ताकि वो आपके बीमारी को जानकर आपका इलाज अच्छे से कर सकें।
  • वहीं खास बात इस सेंटर की ये है, की यहाँ पर मरीज का इलाज आधुनिक उपकरणों की मदद से किया जाता है, और इन उपकरणों से इलाज अनुभवी डॉक्टर ही करते है।

सुझाव :

  • यदि आप पेट या लिवर संबंधी समस्या का सामना कर रहें है तो इसके लिए आपको उपरोक्त सेंटर का चयन करना चाहिए और साथ ही आपको अपने खान-पान का भी खास ध्यान रखना चाहिए, जैसे पेट से जुड़े विकार में आपको तली, भुनी, ज्यादा चटपटी चीजे और खास कर बाहर की चीजों को खाने से परहेज करना चाहिए। 
  • वहीं लिवर के विकार में आपको शराब या अन्य ऐसी नशीली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए जिससे आपका लिवर ख़राब हो।
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डिलीवरी के बाद कैसी डाइट लेने से जच्चे और बच्चे में आएगी तंदरुस्ती ?

अकसर डिलीवरी के बाद हर महिला का एक सवाल होता है की वो ऐसा क्या खाएं की उनके साथ उनका बच्चा भी सेहतमंद रहें, तो अगर आपका भी इसी से मिलता जुलता सवाल है तो इस सवाल का जवाब हम आज के लेख में प्रस्तुत करेंगे ;

डिलीवरी के बाद कैसे रखें खुद का और बच्चे का ध्यान ?

  • डिलीवरी के कुछ दिन बाद आपको अपने बच्चे को बदलते मौसम से बचाना चाहिए और बच्चा अगर ठंड के मौसम में हुआ है, तो उसको अच्छे से गर्म कपडे डाले और गर्मी के रुत में हुए बच्चे को लू से बचाकर रखना चाहिए। 
  • बच्चे को बेवक़्त न नहलाए बल्कि बच्चा जबतक एक महीने का न हो जाए, तब तक उसे नेहलाने की बजाए हल्के गर्म पानी में सूती के कपडे को भिगोकर उसका मुँह हाथ अच्छे से साफ़ करें और खुद भी बेवक़्त नहाने से बचें। 

डिलीवरी के बाद जच्चे और बच्चे को और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इसके बारे में जानने के लिए आप गायनोलॉजिस्ट डॉक्टर का चयन जरूर करें।

डिलीवरी के बाद जच्चे की डाइट में किन चीजों को करें शामिल ?

  • डिलीवरी के बाद एक महिला या बच्चे की माँ को अपनी डाइट में लहसुन, हरी पत्तेदार सब्जियां, दलिया जरूर खाना चाहिए। क्युकि इससे ब्रेस्‍ट मिल्‍क ज्‍यादा बनने में सहायता मिलती है।
  • आप दिन में एक बार हरी पत्तेदार सब्‍जी और एक बार दलिया खाएं। इसके अलावा गाजर, ब्राउन राइस, तिल और तुलसी भी लें और हल्‍का भोजन करें। भारी भोजन करने से बचें और दूध, दही और सब्जियां सही मात्रा में लें।
  • डिलीवरी के बाद आपको अंडे का भी सेवन करना चाहिए, क्युकी अंडे में बहुत ज्यादा प्रोटीन होता है जो आपके मांसपेशियों में हो रहें दर्द को कम करने में काफी सहायक माना जाता है। वहीं अगर आप शाकाहारी है तो ऐसे में आप दूध से बने प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल भी कर सकती है। 
  • मेथीदाना भी डिलीवरी के बाद इस्तेमाल करने से काफी फ़ायदा मिलता है, क्युकि इसमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, आयरन, विटामिन और मिनरल्स मौजूद होते है, जो आपके ब्रेस्ट मिल्क को बढ़ाते है और आपकी सेहत का भी काफी अच्छे से ध्यान रखते है, अगर आप चाहे तो मेथी के लड्डू बनाकर डिलीवरी के बाद कुछ दिन तक खाएं इससे आपको फ़ायदा मिलेगा। 
  • बादाम, ओट्स, घी, खजूर का सेवन भी आप कर सकती है, जिससे डिलीवरी के बाद आई आपके अंदर कमजोरी को ठीक किया जा सकता है।

डिलीवरी के बाद महिलाओं को क्या नहीं खाना चाहिए ?

  • वैसे पेनलेस नार्मल डिलीवरी होने पर महिलाओं को खानपान में ज्‍यादा परहेज बरतने की जरूरत तो नहीं होती है। लेकिन फिर भी आपको मसालेदार चीजें कम खाना है और साथ ही कब्‍ज एवं खांसी पैदा करने वाले पदार्थों से भी दूर रहें।
  • वहीं अगर आपकी डिलीवरी सी-सेक्‍शन से हुई है, तो डॉक्‍टर आपको शुरुआती दिनों में हल्‍का भोजन करने की सलाह दे सकती है। 
  • और आप इस समय कब्‍ज और खांसी करने वाली चीजें तो बिलकुल न खाएं। ऐसा कोई काम न करें जिससे आंखों पर प्रेशर पड़ता हो। अगर आपको सिजेरियन डिलीवरी के बाद कब्‍ज है या आपको अक्‍सर कब्‍ज रहती है, तो पपीता और दूध लें। 
  • खट्टी चीजें न खाएं और हेल्‍दी चीजों को भी सीमित मात्रा में ही खाएं। 
  • कोई भी चीज न तो बहुत ज्‍यादा खाएं और न ही बहुत कम।

सुझाव :

  • यदि आप और विस्तार से जानना चाहती है की आपको डिलीवरी के बाद और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए तो इसके लिए आप लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर के अनुभवी डॉक्टर के सम्पर्क में आ सकते है। 

निष्कर्ष :

उम्मीद करते है की आपको पता चल गया होगा की डिलीवरी के बाद आपको कैसे अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, तो अगर आप खुद के और अपने बच्चे के अच्छी सेहत के लिए चिंतित है तो इसके लिए उपरोक्त बातों का अच्छे से ध्यान रखें।

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यदि नार्मल डिलीवरी की है चाहत तो इन बातों का रखें ध्यान !

गर्भावस्था एक ऐसी स्टेज होती है जिसमे महिलाएं अपने संतान की प्राप्ति के लिए काफी खुश होती है। इसके अलावा डिलीवरी को लेकर महिलाओं के द्वारा बहुत से सवाल पूछे जाते है, जिनमे से सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न नार्मल डिलीवरी को लेकर होता है, इसलिए आज के लेख में हम गर्भावस्था के दौरान संतान की प्राप्ति नार्मल डिलीवरी से कैसे कर सकते है इसके बारे में बात करेंगे ;

क्या है नार्मल डिलीवरी ?

  • पेनलेस नार्मल डिलीवरी एक वह प्रक्रिया है जिसमें शिशु का जन्म प्राकृतिक तरीके से महिला के वजाइना से होता है। इसमें किसी तरह की कोई चीरफाड़ की जरूरत नहीं पड़ती है। प्रेगनेंसी के दौरान किसी तरह की परेशानी न होने पर महिला को नार्मल डिलीवरी होती है। यह शिशु के जन्म का सबसे आम तरीका है।
  • नाॅर्मल डिलीवरी के दौरान आपकी ग्रीवा पतली होकर खुलती है। आपका गर्भाशय संकुचित होता है, ताकि शिशु प्रसव नलिका में नीचे खिसक सके और योनि के जरिये जन्म ले सके।
  • शिशु का जन्म नाॅर्मल डिलीवरी से ही कराया जाता है, मगर यदि आपकी गर्भावस्था या प्रसव के दौरान जटिलताएं हो तो सिजेरियन डिलीवरी करवाने की जरुरत पड़ सकती है।

नार्मल डिलीवरी करवाने के लिए किन बातों का ध्यान रखें ?

  • डिलीवरी से पहले अच्छी देखभाल रखें और ऐसी डाॅक्टर का चयन करें, जिनके साथ आप सहज महसूस कर सके।
  • पौष्टिक (हरी सब्जियां, अंडा, जूस) आहार खाने पर खास ध्यान रखें और गैर सेहतमंद भोजनों से बचें साथ ही कैफीन के सेवन को कम करें।
  • गर्भावस्था में कोशिश करें कि आपका वजन स्वस्थ रहें।
  • सक्रिय एवं क्रियाशील रहें, उचित व्यायाम से अपनी ताकत बढ़ाएं। श्रोणि क्षेत्र की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए व्यायाम करें।
  • सुनिश्चित करें कि आप पर्याप्त नींद लें और आराम करें। आप योग स्ट्रेचिंग और गहन श्वसन व्यायाम भी आजमा सकती है।
  • डिलीवरी के समय परिवार के साथ जरूर रहें। 
  • तनाव से दूर रहें। 
  • उठते और बैठते समय आपको खास ध्यान रखना चाहिए। 
  • किसी भी तरह की बात का चिंतन न करें।
  • शरीर के निचले हिस्से की मालिश करें। 
  • पेरेनियल मालिश करें और इसमें आप बादाम या नारियल का तेल ले सकती है मालिश करने के लिए। 

नार्मल डिलीवरी के लिए और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए इसके बारे में जानने के लिए आपको बेस्ट गायनोलॉजिस्ट डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

नार्मल डिलीवरी के लिए किन चीजों का सेवन न करें !

कच्चे अंडे, कच्चा पपीता, कच्ची अंकुरित चीजे, शराब, सिगरेट, कैफीन, मछली, कच्चा मांस, घर पर बनी आइसक्रीम, जंक फ़ूड, फ़ास्ट फ़ूड, ज्यादा तेल व मसालेदार आदि चीजों से आपको परहेज करना चाहिए।

नार्मल डिलीवरी होने के संकेत क्या नज़र आते है ! 

  • इसमें आपको पहला संकेत तो ये नज़र आएगा जैसे आपका बच्चा नीचे की तरफ़ आ रहा हो। 
  • बार-बार बाथरूम जाने की ज़रूरत भी आपको महसूस हो सकती है। 
  • जैसे ही आपका बच्चा नीचे की तरफ आएगा वैसे ही आपको लोअर बैक में पैन होना शुरू हो जाएगा। 
  • बच्चे के सिर की वजह से वेजाइनल पर प्रेशर पड़ने लगता है और इससे म्यूकस प्लग निकल जाता है, जिससे भारी मात्रा में वेजाइनल डिस्चार्ज होने लगता है, ऐसा होने का मतलब बिल्कुल साफ़ है की आपके डिलीवरी का समय आ चुका है, वहीं इस डिस्चार्ज की बात करें तो यह पिंक, सफ़ेद या फिर थोड़ा-सा खून से सना हो सकता है। 
  • वॉटर ब्रेक होना मतलब लेबर आने और नार्मल डिलीवरी होने का साइन है, वॉटर बैग का ब्रेक होना मतलब एम्नियोटिक झिल्ली का फट जाना, जिसका मतलब साफ़ है कि अब लेबर शुरू हो चुका है। और नार्मल डिलीवरी किसी भी समय हो सकती है।

नार्मल डिलीवरी के लिए बेस्ट हॉस्पिटल या सेंटर !

यदि आप नार्मल डिलीवरी करवाना चाहते है, तो इसके लिए आप लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से जरूर संपर्क करें।

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पेट का अच्छे से ध्यान रख कर कैसे बच सकते है, पेट की बीमारियों से ?

एक अच्छी पाचन क्रिया व स्वास्थ्य पेट का होना आज के समय में मुश्किल होता जा रहा है क्युकी लोगों के द्वारा स्वास्थ्य खान-पान पर ध्यान नहीं दिया जाता जिस वजह से उनके पेट में कई सारी परेशानियां जन्म ले लेती है, और पेट की अच्छी तरीके से सफाई न करने की वजह से व्यक्ति को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है, इसके अलावा पेट में जमी गंदगी की वजह से किस तरह की बीमारी उत्पन्न होती है और इन बीमारियों से कैसे हम खुद का बचाव कर सकते है इसके बारे में हम आज के लेख में बात करेंगे ;

पेट में जमी गंदगी क्या है ?

  • हमारे द्वारा जो खाना-खाया जाता है, और जब ये खाना हमारे मलाशय से नहीं निकल पाता, तो कोलोन में ही जमा हो जाता है।
  • कोलन, जिसे बड़ी आंत के रूप में भी जाना जाता है, वही कोलन पाचन तंत्र का एक हिस्सा है। 
  • आप जो भोजन खाते है वह पेट और छोटी आंत में अवशोषित होता है। कोलन शरीर के पानी को पुनः प्राप्त करने और बचे हुए भोजन में पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है। 
  • वही यदि आपका पेट ठीक प्रकार से साफ नहीं होता तो, आपको कोलोन इंफेक्शन होने का भी खतरा हो सकता है। 
  • इसके अलावा यह वेस्‍ट मटीरियल यदि लंबे समय तक पेट में पड़ा रहे तो टॉक्‍सिक हो सकता है और आपकी हेल्‍थ को नुकसान पहुंचा सकता है।

आपके पेट में गंदगी के कारण कई तरह की बीमारियां उत्पन्न हुई है या नहीं के बारे में जानने के लिए आपको लुधियाना में कोलोनोस्कोपी से अपनी जाँच जरूर करवानी चाहिए।

कोलन या बड़ी आंत साफ़ रहने के फायदे !

  • आपके समग्र मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार आता है।
  • प्रतिरक्षा प्रणाली के कामकाज में सुधार का आना।
  • पेट के कैंसर के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है।

किन तरीको को अपनाकर पेट की गन्दगी को बाहर निकाला जा सकता है ?

  • एल्कोहल, धूम्रपान और कैफीन लेने से बचें।
  • पानी अधिक मात्रा में पिएं। इससे बॉडी हाइड्रेट रहेगी और पेट भी आसानी से साफ होगा।
  • खाना खाने के बाद वॉक जरूर करें।
  • खाना खाते ही लेटने या बैठने से बचे। 
  • रोज सुबह खाली पेट गुनगुना पानी से गंदगी को साफ किया जा सकता है।
  • सेब का जूस पिए। 
  • लेमन को एक ग्लास हल्के गर्म पानी में गर्म करें और उसमे एक चम्मच शहद और एक चम्मच नींबू का रस डाल कर पीने से पेट की समस्या से आराम मिलेगा।
  • दही का सेवन करने से भी पाचन की समस्‍या दुरुस्‍त होती है।

उपरोक्त तरीकों को अपनाने के बाद भी अगर आपके पेट में किसी न किसी तरह की परेशानी ने जन्म ले लिया है तो इससे बचाव के लिए आपको गैस्ट्रो डॉक्टर लुधियाना का चयन करना चाहिए।

पेट की समस्या से निजात पाने के लिए बेस्ट हॉस्पिटल या सेंटर ?

  • अगर आपके पेट की सामान्य समस्या ने किसी भयंकर रोग का रूप धारण कर लिया है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना गेस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। क्युकी इस हॉस्पिटल में अनुभवी डॉक्टरों के द्वारा आधुनिक उपकरणों की मदद से मरीजों का इलाज किया जाता है। 

निष्कर्ष :

पेट व पाचन क्रिया का हमारे शरीर में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है क्युकि इनके साथ ही हमारे शरीर का पूरा सिस्टम चलता है इसलिए अगर इनमे किसी भी तरह की परेशानी आ जाए तो समय रहते आपको किसी बेहतरीन डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

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डिलीवरी के बाद बढ़े हुए वजन को कैसे किया जा सकता है कम ?

डिलीवरी के बाद कैसे वजन को घटाएं इसको लेकर हर महिला के मन में ये सवाल गूंजता रहता है। इसके अलावा अक्सर आपने देखा होगा की जिन महिलाओं की डिलीवरी होती है उनके पेट का निचला हिस्सा लटक जाता है जिसके कारण उन्हें कई बार काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है

तो वही कुछ महिलाएं इस समस्या से निपटने के लिए मालिश का सहारा लेती है, तो कोई डाइटिंग करके अपने आप को इस समस्या से छुटकारा दिलवाना चाहती है पर अब आपको तरह-तरह के उपायों को करने की जरूरत नहीं है बल्कि आपको हम कुछ उपाय बताएंगे जिसका सहारा लेकर आप इस समस्या से खुद का बचाव कर सकती है, तो चलते है और वजन कम करने के आर्टिकल की शुरुआत करते है ;

डिलीवरी के बाद बढ़े हुए वजन को कैसे करें कम ?

  • डिलीवरी के बाद महिलाओं को भूख अधिक लगती है जिस वजह से वह कुछ भी खाना शुरू कर देती हैं। ऐसे में जरूरी है कि भूख लगने पर केवल हेल्दी खाने को प्राथमिकता दे साथ ही क्रैश डाइट का सहारा न लें। वही अगर आप हेल्दी चीजे खाते है तो आप दिन की केवल 500 कैलोरी कम करके एक हफ्ते में आधा किलोग्राम वजन कम कर सकती है।
  • आजकल ज्यादातर महिलाएं आत्म निर्भर (सेल्फ डिपेंडेंट) होने की वजह से वह आफिस के काम में व्यस्त रहती हैं। जिस कारण उन्हें थोड़ी-थोड़ी देर में बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने का समय नहीं मिल पाता, जिसका नतीजा वेट गेन या ब्रेस्ट प्रॉब्लम हो सकती है। इसलिए जो महिलाएं डिलीवरी के बाद अपना वेट कम करना चाहती हैं तो उन्हें अपने बच्चे को ब्रेस्टफीड कराना चाहिए। 
  • डिलीवरी के बाद आपको ध्यान रखना है कि आप अधिक कैलोरी वाला भोजन न करें। 
  • दिनभर डिलीवरी के बाद महिलाओं को एक्टिव रहना चाहिए और एक्टिव रहने के लिए आप दिनभर में जितना काम खुद से कर पाएं उतना करें। डिलीवरी के बाद शरीर कमजोर हो जाता है इसलिए आपके शरीर में जितना बल है उसके हिसाब से आप रोजाना 10 से 15 मिनट का वॉक जरूर करें। वही अगर आपको नहीं पता चल रहा है कि वजन कम करने के लिए किन बातो का ध्यान रखना चाहिए तो इसके लिए आपको लुधियाना में गायनेकोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

डिलीवरी के बाद किन बातों का रखें ध्यान ?

  • आमतौर पर डिलीवरी के बाद वजन कम करने के लिए खाने के साथ-साथ हेल्दी स्नैक्स को लेते रहें।
  • दिनभर पर्याप्त मात्रा में पानी जरूर पिएं। 
  • अपने खानपान में एडेड शुगर और सोडा कम ले। 
  • फलों के जूस पीने के बजाय सादे फल (Fruits) खाने की कोशिश करें। 
  • तला-भुना खाने से बिल्कुल परहेज करें। तो वही तला-भुना खाने से अगर आपके पेट में दिक्कत हो जाती है तो इसके लिए आपको गैस्ट्रो डॉक्टर लुधियाना से मिलना चाहिए।

सुझाव :

अगर डिलीवरी के बाद आपका वजन भी बहुत ज्यादा बढ़ गया है तो इससे निजात पाने के लिए आपको उपरोक्त बातों को ध्यान में रखना है और इसके लिए आप लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से सम्पर्क करें और यहाँ के डॉक्टरों के द्वारा बताए गए वजन कम करने वाले नियमों के बारें में अच्छे से जानकारी हासिल करें।  

 

निष्कर्ष :

उम्मीद करते है कि आपको पता चल गया होगा की कैसे डिलीवरी के बाद आप अपने वजन को कम कर सकते है पर इन उपायों या किसी भी तरह की दवाइयों को प्रयोग में लाने से पहले डॉक्टर से जरूर सलाह ले।

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Pregnancy Shuchita Batra

नॉर्मल डिलीवरी के बाद टांके लगाने की क्या है पूरी प्रक्रिया ?

अकसर आपने सुना ही होगा या गर्भवती महिलाएं तो इससे गुजर चुकी है। तो वही डॉक्टर अकसर महिलाओं की डिलीवरी के बाद उनके योनि में टांके जरूर से लगाते है, फिर चाहे वो टांके गहराई से लगे हो या ऊपरी तौर पर लगें हो।

पर सोचने वाली बात है की जब डिलीवरी नार्मल हो जाती है फिर भी टांके क्यों लगाए जाते है, और इन टांको को लगाने की जरूरत कब पड़ती है इसके बारे में बात करेंगे इसलिए इसके बारे में जानने के लिए आर्टिकल को अंत तक जरूर से पढ़े ; 

डिलीवरी के बाद महिलाओं को टांकों की जरुरत क्यों पड़ती है ?

  • यदि आपके पेरिनियम क्षेत्र की त्वचा या चीरा बहुत ज्यादा फट जाए तो उत्तकों और त्वचा को ठीक करने के लिए टांकों की जरुरत होगी। 
  • वही पेनलेस नॉर्मल डिलीवरी के दौरान आपकी योनि और गुदा के बीच के मांसपे​शीय क्षेत्र (पेरिनियम) में बहुत ज्यादा खिंचाव होता है।
  • अक्सर यह खिंचाव इतना ज्यादा होता है कि त्वचा फट जाती है। इसलिए भारत में अधिकांश डॉक्टर जब पेरिनियम क्षेत्र में खिंचाव होने लगता है तो वहां स्वयं शल्य चीरा लगा देती हैं। 
  • यदि आपके पेरिनियम क्षेत्र की त्वचा या चीरा बहुत ज्यादा फट जाए तो उत्तकों और त्वचा को ठीक होने में मदद के लिए टांकों की जरुरत होगी।

नॉर्मल डिलीवरी के बाद टांके खुलने पर क्या होता है ?

  • नया ऊतक विकसित होगा और यह धीरे-धीरे उस जगह को भर देगा जहां टांके लगे थे। यह प्रक्रिया हर महिलाओं में अलग-अलग होती है और यह इस बात पर निर्भर करती है कि घाव कहां है, गैप कितना गहरा था और कोई संक्रमण कितने समय से मौजूद था। तो वही टांके खुलने पर नया ऊतक लाल दिख सकता है और इसमें थोड़ा खून भी बह सकता है।

यदि किसी कारवश आपके टांके खुल जाए या उनमे गंभीर दर्द हो तो इससे बचाव के लिए महिलाओं को गायनोलॉजिस्ट के पास जाना चाहिए।

डिलीवरी के बाद लगे टांकों को ठीक होने में कितना समय लगता है ?

  • आमतौर पर टांके डिलीवरी के दो हफ्तों के अंदर अपने आप गल जाते हैं, मगर चीरे की जगह को पूरी तरह ठीक होने में और ज्यादा समय लगता है।
    चीरे का घाव कितनी जल्दी ठीक होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी त्वचा कितनी गहरी फटी है या चीरा कितना गहराई से लगा है।

डिलीवरी के बाद लगे टांके में महिलाओं को अपना ध्यान कैसे रखना चाहिए ?

  • यदि डिलीवरी के बाद आपको टांके लगे हों तो अस्पताल से घर आने के बाद कोशिश करें कि आप ज्यादा देर तक न बैठे, खासतौर पर शुरुआती कुछ दिनों तक। क्युकि बैठने से आपके शरीर का वजन श्रोणि क्षेत्र पर पड़ता है। इसलिए आप बैठने की बजाय खड़े रहने या अर्धलेटी अवस्था में बैठने की कोशिश करें।
  • वही डिलीवरी के बाद डॉक्टर आपको जो एंटिबायोटिक दवाएं दें उनका कोर्स पूरा करें और दवाएं समय पर लें। 

सुझाव :

यदि डिलीवरी के दौरान आपको टांके लगे हो और उन टांकों में किसी भी तरह की समस्या आए तो इसके लिए आप लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन जरूर से करें।

निष्कर्ष :

डिलीवरी के दौरान टांके अगर आपको लग गए है तो घबराने की जरूरत नहीं है बल्कि उन टांकों को ठीक करने के लिए डॉक्टर ने जो दवाई आपको बोली है उसे समय-समय पर लेते रहे। और किसी भी तरह की समस्या आने पर डॉक्टर का जरूर से चयन करें।

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पैप स्मीयर टेस्ट की लागत और कैसे ये गर्भाशय कैंसर को जानने में है मददगार!

माँ बनना हर महिला के जीवन में काफी ख़ुशी का मंजर होता है। पर जरा सोचो किसी कारणवश आपके गर्भाशय में कैंसर की समस्या उत्पन हो जाए और आपको इस बात का पता ही न हो तो।

पर आपको अब घबराने की जरूरत नहीं है बल्कि आपके गर्भावस्था के दौरान आपको कोई भी परेशानी है तो उसको बहुत ही सरल तरीके से पैप स्मीयर टेस्ट का प्रयोग करके आपको गर्भाशय के अंधरुनि बातो को अच्छे से जानना है और खुद का बचाव करना है, तो चलिए शुरुआत करते है आर्टिकल की ;

पैप स्मीयर टेस्ट क्या है ?

पैप स्मीयर टेस्ट गर्भाशय से जुड़ा हुआ एक टेस्ट है जिसके बारे में हम निम्न में बात करेंगे ;

  • यह गर्भाशय ग्रीवा में कैंसर के शुरूआती लक्षणों की जांच करने का एक टेस्ट है। सर्विक्स, महिलाओं के प्रजनन तंत्र का एक हिस्सा माना जाता है जहां गर्भाशय योनि से मिलता है। 
  • सर्वाइकल कैंसर के अलावा एचपीवी संक्रमण की जांच के लिए भी पैप स्मीयर टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। सही समय पर पैप स्मीयर जांच करवाने से सर्वाइकल कैंसर का पहले ही पता लगाया जा सकता है। यह गर्भाशय में उन कोशिकाओं का पता लगाती हैं जो कैंसर ग्रस्त हैं।

पैप स्मीयर टेस्ट कितनी बार करवाना चाहिए ?

  • पैप स्मीयर टेस्ट की बात करे तो डॉक्टर आमतौर पर 21 से 65 वर्ष की महिलाओं के लिए हर तीन साल में पैप परीक्षण दोहराने की सलाह देते हैं।
  • 30 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाएं हर पांच साल में पैप परीक्षण पर विचार कर सकती हैं यदि प्रक्रिया को एचपीवी के परीक्षण के साथ जोड़ दिया जाए। या वे पैप परीक्षण के बजाय एचपीवी परीक्षण पर विचार कर सकते हैं।

यदि आप जानना चाहती है की आपके गर्भाशय में कैंसर है या नहीं तो इसके आप बेस्ट गायनोलॉजिस्ट का चयन जरूर से करे।

क्या महिलाओं के लिए पैप स्मीयर टेस्ट करवाना जरूरी है ?

  • इस टेस्ट के लिए महिलाओं को सेक्सुअली एक्टिव रहने की जरूरत नहीं है बल्कि 21 वर्ष की उम्र के बाद हर महिला को एक नियमित अंतराल के बाद पैप स्मीयर टेस्ट को जरूर कराना चाहिए।
  • इस टेस्ट का चयन करके आप खुद का और अपनी आने वाली संतान की रक्षा अच्छे से कर सकेगी। इसके अलावा यदि आप चाहते है की आपकी पेनलेस नार्मल डिलीवरी हो तो जरूर से इस टेस्ट को करवाए।

पैप स्मीयर टेस्ट की लागत क्या है ?

  • पैप स्मीयर टेस्ट की लागत क्या है इसके बारे में अधिकांश महिलायें जानना चाहती हैं। 
  • तो वही आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आमतौर पर पैप स्मीयर टेस्ट की लागत 200 से 2000 रूपए तक के बीच हो सकती है लेकिन यह काफी हद तक आपके डॉक्टर, क्लिनिक और आपकी एरिया पर भी निर्भर करती है।

क्या पैप स्मीयर टेस्ट के लिए महिलाओं को कोई तैयारी करने की जरूरत पड़ती है ?

  • नहीं, आपको  इस टेस्ट के लिए किसी भी तरह की विशेष तैयारी नहीं करनी है। पर हां आपको ये टेस्ट पीरियड होने पर नहीं करना चाहिए, बल्कि इन दिनों आप टेस्ट को आगे भी बड़ा सकती है। 

यदि आप चाहती है की आपके गर्भाशाह में किसी भी तरह की कोई परेशानी न हो तो इसके लिए आप लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से पैप स्मीयर टेस्ट को जरूर से करवाए।

निष्कर्ष :

पैप स्मीयर टेस्ट को समय पर करवा के आप गर्भाशय कैंसर से जुडी समस्या से हमेशा के लिए निजात पा सकते है।

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Bariatric Surgery Kartik Goyal

बैरिटायट्रिक एंडोस्कोपी: मोटापे को कम करने के तरीके!

मोटापा आज के समय में काफी गंभीर समस्या बनी हुई है व्यक्ति में। मोटापे की बात करे तो ये चाहे बजुर्ग हो या नौजवान सबको ये अपनी गिरफ्त में लेते जा रहे है। इसलिए आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे की कैसे हम मोटापे से खुद का बचाव कर सकते है। इसलिए आप भी अगर पतले होना चाहते है तो ब्लॉग को अंत तक जरूर से पढ़े ;

क्या एंडोस्कोपी मोटापे को कम कर सकती है ?

बिना सर्जरी के एंडोस्कोपी की मदद से बहुत से लोग मोटापा कम करने में कारगर सिद्ध हुए है, जैसे ;

  • बात करे एंडोस्कोपिक की तो ये स्लीव गैस्ट्रोप्लास्टी एक न्यूनतम इनवेसिव वजन घटाने की प्रक्रिया है जो पेट के आकार और मात्रा को लगभग 70% कम करने के लिए एंडोस्कोपिक सूचरिंग (सिलाई) उपकरण का उपयोग करती है। 
  • जब आपका पेट कम मात्रा में होता है, तो आप कम भोजन से भरा हुआ महसूस कर सकते हैं, कम कैलोरी को अवशोषित कर सकते हैं और समय के साथ वजन कम कर सकते हैं।
  • इसके अलावा बहुत से लोग मोटापे की वजह से परेशान होते है तो वह बैरिटायट्रिक सर्जरी का इस्तेमाल करते है। तो इसके विपरीत ही कई बार सर्जरी का काफी नुकसान भी हो जाता है। 
  • वही अगर बात करे एंडोस्कोपी की तो इसमें किसी भी तरह की सर्जरी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसमें बिना सर्जरी के मोटापे को कम किया जाता है। 

मोटापे को कम करने के बारे में यदि आप सोच रहे है तो गैस्ट्रो डॉक्टर लुधियाना से संपर्क करे।

बैरिटायट्रिक एंडोस्कोपी में मोटापे को कम करने के तरीके क्या है ?

मोटापे को कम करने के लिए बिना सर्जरी की मदद से आप निम्न बातो का ध्यान रख सकते है ;

  • बेरियाट्रिक एंडोस्कोपी की बात करे तो ये मोटापा कम करने का एक बेहतरीन विकल्प है इसमें करना ये होता है की जो डॉक्टर होते है वो मुँह के रास्ते से सिलिकॉन बैलून को पेट के अंदर रख देते है।
  • इसके अलावा कुछ अनुभवी डॉक्टरों का कहना है जब गुब्बारे को पेट के अंदर रख दिया जाता है तो वो खाना खाने वाली कुछ हद तक की जगह को बैलून ही कवर कर लेता है, जिससे व्यक्ति को कम भूख लगती है। 
  • जब बैलून को पेट में रखा जाता है तो उसका कोई भी नुकसान नहीं होता व्यक्ति को। इसके अलावा इस बैलून को मोटे लोगो के पेट में 1 साल तक रखा जाता है और जब व्यक्ति का मोटापा कम होता है तो बैलून को पंचर करके मल के रास्ते से बाहर निकाल लिया जाता है।

एंडोस्कोपी में कौन-सी बीमारी का पता लगाया जाता है ?

एंडोस्कोपी की मदद से निम्न तरह की बीमारी का पता लगा के हम खुद को सुरक्षित रख सकते है, जैसे ;

  • सोफेगस, गले, हार्ट, पेट, कोलन, कान, ज्वॉइंट्स, नाक, दिल, यूरिनरी ट्रेक्ट।

एंडोस्कोपी की मदद से जहा हम बीमारियों का पता लगाते है वही आप पंजाब में एंडोस्कोपी की कीमत के बारे में भी पता लगा सकते है।

सुझाव :

यदि आप मोटापा कम करने के बारे में सोच रहे है तो लुधियाना गेस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से जरूर मुलाकात करे अपनी परेशानी को कम करने के लिए।

निष्कर्ष :

एंडोस्कोपी बैरिटायट्रिक बैलून जो प्रक्रिया है हम इसकी मदद से मोटापे को काफी हद तक कम कर सकते है। इसके अलावा हमने उपरोक्त एंडोस्कोपी बैरिटायट्रिक बैलून के बारे में ही बात की है तो उपरोक्त बातो को जरूर ध्यान से पढ़े।

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Gastroenterology intestinal diseases Kartik Goyal

आंत की बीमारी को जानने में कैसे मददगार होंगे इसके लक्षण !

आंत की बीमारी भी व्यक्ति को काफी हद तक परेशान करती है। इसलिए इस बीमारी के बारे में अगर समय पर ही जान लिया जाए तो इस समस्या से हम काफी हद तक निजात पा सकते है। इसके अलावा हम आज के इस आर्टिकल में भी इसके बारे में बात करेंगे की कैसे इसके लक्षणों की मदद से हम आंत की बीमारी से निजात पा सकते है ;

 छोटी बड़ी आंत की बीमारी के लक्षण क्या है ?

 इसकी बीमारी के लक्षण निम्न प्रस्तुत है

  • पेट में सूजन का बनना।
  • पेट में दर्द का बने रहना।
  • मितली और उलटी आने की समस्या का बने रहना।
  • लूज मोशन का आना।
  • मूड खराब रहना।
  • बहुत अधिक गुस्सा आना आदि।

तो वही “बड़ी आंत” के लक्षण की बात करे तो बार-बार मल त्यागने के लिए तेज प्रेशर का फील होना।

  • भूख में कमी होना या बिल्कुल भूख ना लगना।
  • मल त्याग के समय गुदा मार्ग से ब्लीडिंग का होना।
  • लगातार वजन का घटना आदि।

आंत की बीमारी का पता कैसे लगाएं ?

 इसकी जांच क्लोनोस्कोपी से की जा सकती है, तो वही बात करे क्लोनोस्कोपी की तो इसमें शौच के रास्ते से बड़ी आंत में दूरबीन को दाखिल कर बीमारी की पहचान की जाती है।

  • तो वही हैरानी की बात तो यह है कि आईबीडी (पाचन से संबंधित बीमारी) के लक्षण बवासीर, आंतों की टीबी से मिलते-जुलते होते हैं। जिसकी वजह से इसकी पहचान और इलाज में मुश्किल का सामना करना पड़ता है।

छोटी बड़ी आंत की बीमारियां क्या है ?   

छोटी व बड़ी आंत की बीमारी की समस्या काफी गंभीर है, जिसके बारे में हम निम्न में बात करेंगे ;

  • बड़ी आंत की बीमारी की बात करे तो इसमें कोलन में अतिरिक्त ऊतक का बढ़ना, जो बाद में कैंसर बन सकता है।
  • इसके अलावा अल्सरेटिव कोलाइटिस, बृहदान्त्र और मलाशय के अल्सर।
  • डायवर्टीकुलिटिस बृहदान्त्र में पाउच की सूजन या संक्रमण। चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम, पेट में ऐंठन।
  • तो वही छोटी आंत के बीमारी की बात करे तो इसमें पेट में सूजन आना पेट में दर्द रहना, पेट का फूलना, और लूज मोशन बहुत सख्त आना आदि।

गैस्ट्रो डॉक्टर लुधियाना से जानें की कौन सा ट्रीटमेंट आंत की बीमारी के लिए सहायक होगा।

आंत की बीमारी क्यों होती है ?

आंत की बीमारी हमारे द्वारा लापरवाही बरतने की वजह से होती है, जैसे ;

  • अगर व्यक्ति के आंतों में कमजोरी आ जाती है तो पाचन संबंधी समस्याएं पैदा होने लगती हैं। इसलिए आंतों का मजबूत होना अच्छी सेहत के लिए बहुत जरूरी है।
  • हालांकि भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों की अनियमित खानपान की आदतें और खराब जीवनशैली पाचन तंत्र को कमजोर कर देती हैं, जिससे आंतों में गड़बड़ी की समस्या उत्पन हो जाती है।

पंजाब में एंडोस्कोपी की कीमत को जान कर अपनी सेहत की जांच अच्छे से करवाए।

सुझाव :

यदि आपके आंतों में उपरोक्त समस्याएं मौजूद है और इन समस्याओं से आप निजात पाना चाहते है। तो इन्हे और खतरनाक बनने से पहले लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से सम्पर्क करे और अपनी परेशानी का हल पाए।

निष्कर्ष :

उपरोक्त बातो का ध्यान रखते हुए वक़्त रहते किसी अच्छे डॉक्टर का चयन अपनी बीमारी से निजात पाने के लिए करे। क्युकि आंत की बीमारी की समस्या व्यक्ति की ज़िन्दगी में कई समस्याएं लेकर आ सकती है।

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Fibroids Shuchita Batra

बच्‍चेदानी में रसौली होने पर कैसे बने माँ ?

बच्‍चेदानी में रसौली की समस्या काफी गंभीर है अगर ये महिलाओं के गर्भ में बन जाए तो उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है, संतान उत्पति के दौरान। बच्‍चेदानी में रसौली से जुड़े जितने भी प्रश्न है उसको हम आज के इस लेख में प्रस्तुत करेंगे इसलिए आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े ;

बच्‍चेदानी में रसौली क्यों बनती है ? 

इसके बारे में हम निम्न में बात करेंगे ;

  • गर्भाशय में रसौली अर्थात् गर्भाशय फाइब्रॉइड की समस्या, आनुवांशिक भी हो सकती है। अगर परिवार में किसी महिला को ये बीमारी है तो ये पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ सकती है। या फिर ये हार्मोन के स्त्राव में आए उतार-चढ़ाव की वजह से भी हो सकता है। बढ़ती उम्र, प्रेग्नेंसी, मोटापा भी इसका एक कारण हो सकते हैं।

बच्‍चेदानी में रसौली बनने के बाद संतान प्राप्ति में अगर ज्यादा दर्द का सामना करना पड़े तो आपको पेनलेस नार्मल डिलीवरी का चयन डॉक्टर के परामर्श पर कर लेना चाहिए।

बच्‍चेदानी में रसौली का बनना क्या है ?

  • बच्‍चेदानी में रसौली एक गैर-कैंसरकारी ट्यूमर होता है। इसका असर फर्टिलिटी और कंसीव करने की संभावना पर भी पड़ सकता है। गर्भाशय में रसौली को यूट्राइन फाइब्रॉएड कहा जाता है।
  • अगर बच्‍चेदानी में रसौली बन जाती है तो अंदर बन रहे बच्चे के लिए काफी परेशानी खड़ी हो जाती है।

बच्‍चेदानी में रसौली क्यों बनती है इसके बारे में जानने के लिए आप बेस्ट गायनोलॉजिस्ट से जरूर संपर्क करे।

क्या बच्‍चेदानी में रसौली के बाद महिलाएं प्रेग्नेंट हो सकती है ?

बच्‍चेदानी में रसौली होने पर भी महिलाएं नैचुरली कंसीव (प्रेग्नेंट) कर सकती हैं। तो वहीं हो सकता है कि इसमें कंसीव करने के लिए किसी ट्रीटमेंट की जरूरत न पड़े। कुछ मामलों में रसौली फर्टिलिटी को प्रभावित कर सकती है, जैसे कि सबम्‍यूकोसल फाइब्रॉएड। ये एक प्रकार की रसौली है जो यूट्राइन कैविटी के अंदर बढ़ती और फैलती है।

बच्‍चेदानी में रसौली के लक्षण क्या है ?

इसके लक्षण निम्न है ;

पेट के निचले हिस्से में बहुत अधिक दर्द होना और ब्लीडिंग अधिक होना। पेट के निचले हिस्से में भारीपन का लगना और इंटरकोर्स के वक्त दर्द होना। बार-बार यूरिन पास होना और वजाइना से बदबूदार डिस्चार्ज होना। हर समय वीकनेस रहना, पैरों में दर्द होना का बने रहना इसके प्रमुख लक्षणों में शामिल है।

बच्‍चेदानी में रसौली को ठीक करने का इलाज क्या है ?

इसके इलाज तो कुछ ज्यादा नहीं है पर जो भी है वो आपके सामने प्रस्तुत है;

  • यदि घरेलु उपायों को इसके इलाज में आजमाना चाहते है तो आंवले का जूस रसौली दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है. आंवला में एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। इसलिए  रोजाना सुबह एक चम्मच आंवला के जूस में शहद डालकर खाली पेट पीने से आपको काफी फर्क नजर आएगा। 
  • अगर आप प्रेगनेंसी में बच्‍चेदानी में रसौली का इलाज बाहरी उपकरणों से करवाती है तो ये काफी सीमित है क्‍योंकि इससे भ्रूण को जोखिम रहता है। बच्‍चेदानी में रसौली के लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए आराम, पानी पीने और हल्‍की दर्द निवारक दवाओं का सेवन करने की सलाह दी जा सकती है।
  • बच्‍चेदानी में रसौली का कोई ज्यादा इलाज तो नहीं है क्युकि इस प्रक्रिया में ज्यादा ट्रीटमेंट का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसलिए आपको इससे संबंधी कोई भी जानकारी हासिल करनी है तो लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चुनाव जरूर से करें। 

निष्कर्ष :

बच्‍चेदानी में रसौली की समस्या होने पर डॉक्टर के संपर्क में जरूर से जाए।

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Gastroenterologist Kartik Goyal

Exploring the Surgical Dilemma and Potential Solutions

Surgeons face a surgical dilemma when it comes to addressing gallbladder disease in high-risk patients, such as those with cirrhosis. The choice between a cholecystectomy (surgical removal of the gallbladder) and a less invasive cholecystostomy (gallbladder depletion) requires careful deliberation. In this blog article, we will delve into the surgical quandary that surrounds cholecystectomy or cholecystostomy in high-risk patients, evaluating potential solutions and considerations from many angles.

Understanding the Surgical Dilemma

Cholecystectomy and cholecystostomy are two distinct techniques for managing gallbladder disease. Cholecystectomy is the surgical removal of the gallbladder, whereas cholecystostomy is the creation of a temporary drainage tube to relieve the gallbladder of excess fluids. The decision gets more complicated in high-risk cirrhotic patients due to a variety of reasons such as increased risk of bleeding, impaired liver function, and complications associated with sedation.

The Importance of an Individualized Approach

Adopting an individualised strategy when faced with the surgical problem of cholecystectomy is critical. Each patient’s condition, severity of symptoms, and overall health should be thoroughly evaluated. Collaboration among the patient, gastroenterologists, hepatologists, and surgeons is critical to achieving the best possible outcome.

Potential Solutions and Considerations:

  1. Preoperative Optimization: Preoperative optimisation is critical in cases when cholecystectomy is judged feasible. This may entail monitoring cirrhosis-related problems such as portal hypertension, coagulopathy, and hepatic encephalopathy through medication modifications, nutritional assistance, and other therapeutic measures.
  2. Minimally Invasive Techniques: Surgeons can study the use of minimally invasive methods, such as laparoscopic cholecystectomy, in carefully selected cirrhotic patients to reduce the risks associated with surgery. Laparoscopic techniques provide advantages such as reduced blood loss, smaller incisions, and faster recovery compared to customary open surgery.
  3. Cholecystostomy as a Bridge: In certain high-risk cases where cholecystectomy isn’t practical, cholecystostomy can act as a bridge to manage acute symptoms. It gives temporary help by draining the gallbladder and can be followed by an additional evaluation to decide the requirement for conclusive treatment.
  4. Close Postoperative Monitoring: Regardless of the selected approach, close postoperative monitoring is important. High-risk patients with cirrhosis require careful perception of complications such as infection, bleeding, or worsening liver function. Regular follow-up consultation and communication between the patient, healthcare suppliers, and surgical team are important for ideal intercession if any issues emerge.
  5. Shared Decision-Making: Shared decision-making among patients and healthcare providers is essential in exploring the surgical dilemma. Giving patients comprehensive information about the risks, advantages, and potential outcomes of cholecystectomy enables them to actively participate in the decision-making process in view of their qualities, preferences, and overall health objectives.

Conclusion

The surgical dilemma encompassing cholecystectomy in high-risk patients with cirrhosis requires careful consideration of individual factors, potential solutions, and shared decision-making. A patient-centered approach, taking into account the patient’s overall health, symptoms, and objectives, is crucial. At GastroGynae, we comprehend the complexities of managing gallbladder illness in high-risk patients. Our group of experienced gastro doctor in Ludhiana and surgeons is dedicated to giving individualized care and investigating the most ideal choices for each patient. If you or a friend or family member is facing the surgical dilemma of cholecystectomy, we are here to help you all through the decision-making process and give comprehensive care.

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Pregnancy Shuchita Batra

Understanding the Risks and Promoting a Healthy Pregnancy: Pregnancy and Obesity

Obesity is a global issue that affects both an individual’s general health and the health of a developing foetus during pregnancy. Understanding the dangers of pregnancy and obesity is crucial since more than 50% of women of reproductive age are overweight or obese. This article will go through the appropriate weight increase, the risks of having a high body mass index (BMI) during pregnancy, and how to have a healthy pregnancy and why should you connect with a Gynaecologist in Ludhiana and a Gastro Doctor in Ludhiana

 

What constitutes obesity when pregnant?

When a person’s BMI is 30 or over, they are regarded as obese. Multiplying your weight in pounds by your height in inches squared by 703 yields your BMI. Alternately, multiply your height in metres squared by your weight in kilogrammes. Pregnancy difficulties resulting from a high BMI might have an impact on both the mother and the foetus.

 

How can a high BMI affect pregnancy?

A high BMI during pregnancy raises the risk of a number of pregnancy problems, including:

 

  • Miscarriage, 
  • Stillbirth
  • recurrent miscarriage
  • Gestational diabetes
  • Preeclampsia
  • Heart problems
  • Sleep apnea

 

The need for a cesarean section and the risk of complications such as wound infections

Furthermore, having a high BMI during pregnancy has been related to an increased risk of a variety of health issues for the infant, including:

 

  • Congenital conditions
  • Being much larger at birth than the average (fetal macrosomia)
  • Growth issues
  • Asthma as a child
  • Obesity in children is a growing problem.
  • Cognitive difficulties and developmental delays

 

Understanding the possible complications with the help of a Gynaecologist in Ludhiana or a Gastro Doctor in Ludhiana can help one take the necessary steps to promote a healthy pregnancy.

 

How much weight should a pregnant woman put on?

 

The pre-pregnancy weight and BMI are key factors to take into account when figuring out how much weight to acquire throughout pregnancy. A healthcare professional may assist in figuring out what’s ideal for a certain person and managing their weight throughout pregnancy. A Gynecologist in Ludhiana could advise concentrating on preventing excessive weight gain during pregnancy rather than advising a certain quantity of weight growth.

 

If you have a BMI of 30 or above and are carrying one baby, the ideal weight gain for a single pregnancy is 11 to 20 pounds (approximately 5 to 9 kilogrammes). If a woman has a BMI of 30 or above and is carrying twins or multiples, the recommended weight gain is 25 to 42 pounds (11 to 19 kilograms).

 

Will one need specialized care during pregnancy?

 

If an individual has a BMI of 30 or higher, their healthcare provider will closely monitor their pregnancy. They might recommend early testing for gestational diabetes, fetal ultrasound changes, and obstructive sleep apnea screening. Regular prenatal visits can help healthcare providers monitor the mother’s and baby’s health.

 

What steps can one take to promote a healthy pregnancy?

 

One can limit the impact of having a high BMI on their health and their baby’s health by:

 

Scheduling a preconception appointment: If an individual has a BMI of 30 or higher and is considering getting pregnant, talking to their healthcare provider can help. The provider might recommend a daily prenatal vitamin and refer to other health care providers, such as a registered dietitian, who can help reach a healthy weight before conception.

Seeking regular prenatal care: Prenatal visits can help monitor the mother’s and baby’s health. Informing the provider about any medical conditions they have and discussing how to manage them is crucial.

 

Eating a healthy diet: Working with a health care provider or a registered dietitian to maintain a healthy diet and avoid excessive weight gain is important to maintaining good health. A healthy diet can help prevent chronic conditions like heart disease, type 2 diabetes, and cancer. It can also help manage health conditions such as high blood pressure and cholesterol.

Working with a healthcare provider or a registered dietitian can help you develop a personalized nutrition plan tailored to your unique needs, preferences, and health goals. They can help you identify foods that are nutrient-rich and low in calories while also helping you avoid foods high in saturated and trans fats, added sugars, and sodium.

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Health Kartik Goyal

Myths And Facts: 4 Things You Should Need To Know About Cirrhosis

The liver is one of the primary internal organs in the human body and the primary blood filter that narcotics and detoxifies alcohol and other potentially dangerous combinations. It is an essential element of the digestive system because it generates bile, which aids in breaking fatty foods. It is also a crucial part of the immune system since it helps to remove germs and viruses from the blood. But many people live very unhealthy lives, exacerbating liver diseases like cirrhosis and requiring liver transplant surgery. Additionally, most people have yet to discover many cirrhosis myths and realities. If you fall into that category, you should read this blog.

  1. Myth: No symptoms mean that the person does not have cirrhosis. A person may suffer from liver cirrhosis without any prior symptoms. The liver performs adequately to maintain the human body’s daily functioning despite many people having liver cirrhosis. In such conditions, fatigue is an easy and significant symptom of cirrhosis. When the liver becomes dysfunctional, a person experiences other severe symptoms like swelling of the legs, bleeding, confusion, fluid build-up in the body, and more.
  2. Myth: Cirrhosis does not impact those who do not consume alcohol. Though alcoholism is a potent reason that causes liver cirrhosis, it is not the only reason. Extreme scarring of the liver can be caused by different injuries made to the liver. Inappropriate diet, congenital infections, iron or copper overload, hepatitis B or C, jaundice, and other prevalent causes of liver cirrhosis. They can affect a person who does not even take alcohol.
  3. Myth: The liver will regenerate itself after cirrhosis. The liver is a highly regenerative organ but can only regenerate itself when the scar tissue is not extensive. Also, the liver has to be always healthy to perform well and recover from the severity of the disorder. Once the liver is affected by cirrhosis, the regeneration process of the liver becomes entirely restricted. Therefore, in most conditions, cirrhosis cannot be changed. However, maintaining proper precautions and a healthy diet can improve your situation.
  4. Myth: Gaining weight during cirrhosis is good. A person with cirrhosis might gain weight owing to fluid retention in the body, which is a reason to worry about. Similarly, if the person eats too many calories, it leads to depositions of fat on the liver and can further injure the liver. Both signs and situations testify that gaining weight during cirrhosis is not good.

 Staying under a good liver surgeon, maintaining a proper medical check-up, and dietary measures will help the person avoid the disease’s severity. At Ludhiana Gastro & Gynae Centre, Liver Cirrhosis is conducted by the most efficient and skilled doctors. Here, we have a team of the best medical staff who will assist you from the time of your diagnosis till you have entirely recovered

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Endoscopy Gastroenterology Hindi Kartik Goyal

गैस्ट्रिक समस्या से आप भी है परेशान तो आजमाए इसके सहायक प्रक्रिया व उपचार ?

एक मनुष्य का पूरा शरीर उसके सही पाचन क्रिया पर निर्भर करता है। अगर सोचो पेट या पाचन क्रिया ही न सही हो व्यक्ति की, और उसको गैस्ट्रो, अपच जैसी परेशानी का सामना करना पड़ जाए तो। साथ में ही हम आज के इस लेख में इसी के बारे में जानकारी आपके सामने प्रस्तुत करेंगे की कैसे गैस्ट्रो की समस्या उत्पन होने पर हम इससे कैसे निजात पा सकते है।

गैस्ट्रो की समस्या क्या है ?

गैस्ट्रो की समस्या के बारे में हम निम्न में बात करेंगे ;

गैस्ट्रिक की समस्या आपके ऊपरी पेट में जलन या दर्द से शुरू होता है और कभी-कभी अन्नप्रणाली में भी होता है, जो खाने से या तो खराब या बेहतर हो सकता है। मतली, उल्टी, या खाने के बाद आपके पेट के ऊपरी हिस्से में भरा हुआ महसूस होना, पेट में भारीपन या थकान का होना गैस्ट्रिक दर्द के साथ ही शामिल हैं।

गैस्ट्रिक की समस्या पैदा होने पर कौन-सी बीमारी उत्पन होती है ?

इस समस्या के उत्पन होने पर निम्नलिखित समस्या उत्पन हो सकती है, जैसे;

  • कुछ एक्सपर्ट्स का मानना हैं कि गैस की समस्या बनने पर बहुत सी बीमारियां उत्पन होती है जैसे, बवासीर, वजन का कम होना, कब्ज की समस्या का उत्पन होना, डायरिया और उल्टी या मतली जैसी गंभीर समस्याओं के कुछ कारण बन सकते है इस बीमारी के।

गैस्ट्रो के दौरान यदि बीमारियां उत्पन हो जाए, तो आपको गैस्ट्रो डॉक्टर लुधियाना के संपर्क में आना चाहिए।

गैस्ट्रो की समस्या के क्या कारण है ?

इसके कारणों को जान कर आप इस समस्या का अंदाजा लगा सकते है, जैसे ;

  • अगर आप कुछ भी पीते और चबाते है, तो उस समय हवा को साथ में निगल जाना।
  • गैस बनाने वाले पदार्थों का सेवन करना।
  • आंतों में संक्रमण जैसे पाचन संबंधी समस्याएं।
  • कुछ दवाएं भी गैस्ट्रो के कारण को दर्शाती है।
  • बैक्टीरियल या वायरस संक्रमण।

गैस्ट्रिक समस्याओं की कैसे करे पहचान ?

निम्न तरह के टेस्ट करवा कर ;

  • इमेजिंग परीक्षण करवाना।
  • एंडोस्कोपी से जांच करवाना।
  • रक्त परीक्षण को करवाना।
  • श्वास टेस्ट को करवाना।

यदि आप गैस्ट्रो समस्या की जाँच करवाना चाहती है, वो भी एंडोस्कोपी से तो पंजाब में एंडोस्कोपी की कीमत के बारे में एक बार जरूर से जानना।

उपचार क्या है गैस्ट्रिक बीमारी से निजात पाने का ?

इसका उपचार डॉक्टर मरीज़ के हिसाब से करता है, जिसको हम निम्न में प्रस्तुत कर रहे है ;

  • आंतों की गैस के लिए उपचार की पहली पंक्ति दर्द से राहत देना है। आपका स्वास्थ्य सेवा प्रदाता किसी भी उपचार की पेशकश करने से पहले आपके स्वास्थ्य का विश्लेषण करेगा और आपकी समग्र स्थिति की जांच अच्छे से करेगा।
  • आपका डॉक्टर गैस समस्या के मूल कारण का इलाज करने के लिए एक व्यक्तिगत उपचार योजना तैयार करेगा। जिनमे से पहला है-
  • दवाई का उपयोग करना।
  • अंतर्निहित पाचन समस्या का उपचार करना।
  • जीवनशैली में बदलाव का आना।
  • इसके इलावा यदि उपचार बीच में छोड़ दिया जाए, तो आंतों में गैस की जटिलताओं के कई कारण बन सकते है। इनमें सीने में दर्द, हृदय संबंधी समस्याओं का जोखिम बढ़ना और अपच संबंधी समस्याओं का जोखिम बढ़ना शामिल है।

आप भी अगर पेट के अंदरूनी समस्या से परेशान है, तो इसका उपचार लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से जरूर से शुरू करवाए।

निष्कर्ष :

पेट की समस्या कोई मामूली समस्या नहीं है। इसलिए कोई भी परेशानी यदि आपको उपरोक्त में से आपमें नज़र आए तो कृपया इसे नज़रअंदाज़ न करे।

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Hindi Premature Birth Shuchita Batra

Premature Birth: समय से पहले प्रीमैच्‍योर डिलीवरी को रोकने में जाने कैसे सहायक हैं इसके इलाज

Premature Birth: प्रीमैच्‍योर लेबर डिलीवरी क्या हैं ?

  • कुछ महिलाएं 9 महीने या प्रेग्‍नेंसी के 37वें हफ्ते से पहले ही बच्‍चे को जन्‍म दे देती हैं। इस स्थिति को प्रीमैच्योर लेबर (Premature Labor) कहा जाता है। यानि की डिलीवरी डेट से 3 हफ्ते पहले प्रसव होने को प्रीमैच्‍योर लेबर कहते हैं।
  • तो वहीं जब बच्चा बहुत जल्दी पैदा होता है, यानि गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले। जितनी जल्दी बच्चा पैदा होता है, मृत्यु या गंभीर विकलांगता का जोखिम ऐसे बच्चे में ज्यादा पाया जाता है। 

कारण क्या है प्रीमैच्‍योर लेबर डिलीवरी के ?

प्रीमैच्‍योर डिलीवरी के कई कारण हो सकते हैं, जिनका प्रस्तुतिकरण हम निम्न में करेंगे..,

  • 18 से कम या 35 वर्ष से ज्यादा उम्र के बाद की गर्भावस्था का होना। 
  • पिछली गर्भावस्था में प्रीमैच्योर डिलीवरी का होना। 
  • गर्भ में जुड़वां या उससे ज्यादा भ्रूण का बनना। 
  • मधुमेह की समस्या। 
  • उच्च रक्तचाप। 
  • पोषक तत्वों में कमी। 
  • किसी प्रकार का संक्रमण जैसे यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन। 
  • आनुवंशिक प्रभाव भी इसका एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता हैं। 

कारण जानने के बाद यदि आपको समय से पहले प्रसव होने वाला हैं, तो पेनलेस नार्मल डिलीवरी आपके लिए ऐसी अवस्था में सहायक सिद्ध हो सकती हैं। 

प्रीमैच्‍योर लेबर डिलीवरी के संकेत क्या हैं ?

इसके बहुत से संकेत हैं, जिनमे से कुछ को हम निम्न में प्रस्तुत कर रहें हैं..,

  • अचानक से पानी की थैली का फटना। 
  • वेजाइनल डिस्चार्ज। 
  • पेट के निचले हिस्से में ऐंठन। 
  • मतली और उल्टी। 
  • पेट में संकुचन। 
  • पीठ में दर्द। 
  • डायरिया या फिर उसके बिना भी पेट में तेज दर्द का होना।

यदि आपको प्रेगनेंसी के दौरान उपरोक्त संकेत दिखाई दे तो किसी अच्छे गायनोलॉजिस्ट का बिना समय बर्बाद किए चुनाव करें।

इलाज क्या हैं समय से पहले प्रसव या प्रीमैच्‍योर डिलीवरी को रोकने का ?

इसके कई इलाज हैं, जिससे की प्रीमैच्‍योर डिलीवरी को रोकने में हम सहायक सिद्ध हो सकते हैं, जैसे..,

  • यदि आपमें प्रीमैच्‍योर डिलीवरी का खतरा बनता हैं तो डॉक्टर इलाज के दौरान आपको हॉर्मोन ट्रीटमेंट देते हैं। जिससे की गर्भावस्था के 16वें से 37वें हफ्ते तक महिला के शरीर में प्रोजेस्ट्रोन नाम का हॉर्मोन स्थापित होता है।
  • जिन महिलाओं का गर्भाशय ग्रीवा कमजोर होने लगता है, उन्हें सर्वाइकल सेरेक्लेज ट्रीटमेंट दिया जाता हैं। 
  • समय से पहले प्रसव किसी संक्रमण की वजह से भी हो सकता है। तो ऐसे में डॉक्टर आपको एंटीबायोटिक लेने की सलाह भी दे सकते हैं।
  • स्टेरॉयड का इलाज गर्भाशय में डॉक्टर इसलिए करते है ताकि समय से पहले जन्म लेना वाला बच्चा सुरक्षित रह सकें। 
  • कुछ अनुभवियों का कहना हैं कि टोकोलाइसिस की दवाई के सेवन से प्रीमैच्‍योर डिलीवरी के खतरे को कुछ समय के लिए टाला जा सकता हैं। पर इस पर रिसर्च अभी चल ही रही हैं।

यदि आप समय से पहले प्रीमैच्‍योर की समस्या से निजात पाना चाहते हैं। तो आप किसी अच्छे गायनी हॉस्पिटल का चुनाव करें। इसके इलावा आप लुधियाना गैस्ट्रो गायनी सेंटर का चुनाव भी कर सकते हैं और इस समस्या के बारे में यहाँ के अनुभवी डॉक्टर कार्तिक गोयल और डॉक्टर शुचिता बत्रा से भी सलाह ले सकते हैं।

निष्कर्ष :

यदि आप समय से पहले होने वाले प्रीमैच्‍योर लेबर के संकेतो के बारे में जान चुके हैं। तो बिना समय गवाए किसी अच्छे डॉक्टर का चुनाव करके इस परेशानी से हल पाए और अपनी डिलीवरी को समय पर करवाए। बस इसमें आपको थोड़ी सी सतर्कता बरतने की जरूरत हैं ताकि बाद में आपको किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े। 

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intragastric balloon for weight loss Kartik Goyal Weight Loss

Everything You Need To Know About Gastric Balloon: Is It For You?

No matter how simple or complex the treatment you are moving forward, ensure that you are well aware of the treatment procedure, as it will help you during the treatment. Several people visit the gastro doctor in Ludhiana, so they don’t have to know or worry about the treatment procedures.

But there are better approaches than this.

In this blog, we will discuss everything about an intragastric balloon for weight loss in Ludhiana and its associated procedure.

If you plan to go for gastric balloon treatment soon, this is a must-read blog.

How to know if a Gastric Balloon is for you?

 Gastric Balloon is one of the best and most reliable non-surgical procedures for inserting a deflated balloon into your stomach. The overall procedure of this gastric balloon treatment is simple. It will help you reduce the amount of food that you can consume. In this way, you will automatically consume fewer calories, which will help you reduce your weight easily.

If you are considering a gastric balloon, you must speak with your doctor or a qualified healthcare professional to determine if it is suitable. They will assess your medical history, current health status, and weight loss goals to decide whether or not you are a good candidate for the procedure.

Some factors that may indicate that a gastric balloon is a good option for you include:

  • If you have a BMI of 30 or higher, then yes, a gastric Balloon is something that your doctor must prescribe you.
  • If you are tired of losing weight through diet and exercise but have been unsuccessful, gastric balloon treatment can help you achieve your goals.
  • If you are ready to make significant lifestyle changes with the help of which you can lose weight and lead a healthy life, then a gastric Balloon is something you should opt for.
  • If you do not have any medical conditions that would make the procedure unsafe, then you should go for gastric balloon treatment for weight loss.
  • Most people do not go through diagnostic tests that can let them know if gastric balloon treatment is appropriate for them or not.
  • If you are not pregnant or planning to become pregnant soon, you can also opt for this weight loss treatment. However, those planning to get pregnant in the coming future should not move forward with this treatment option.

Although you should get in touch with your doctor, who can help you decide whether to go not for gastric balloon treatment for weight loss.

Conclusion:

A gastric Balloon is one of the most effective treatments for weight loss, but there are various things to remember about this treatment method. In this blog, we have covered everything you need to know about gastric balloon weight loss treatment.

Contact Ludhiana Gastro & Gynae Centre for gastric Balloons and other treatment methods.

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Painless Delivery Painless Normal Delivery Shuchita Batra

अब डिलीवरी के दौरान सिजेरियन ऑपरेशन से महिलाओं को दर्द से मिलेगा आराम

बिना दर्द के नॉर्मल डिलीवरी:

आज के इस विषय में हम महिलाओं को डिलीवरी के दौरान जो भी मुश्किले आती है उसके बारे में बात करेंगे और जहां तक हो सका उस मुश्किल को हल कैसे किया जाए उसके बारे में भी चर्चा करेंगे |

इसके साथ ही बता दे कि डिलीवरी में प्रसव पीड़ा के दौरान होने वाले लेबर पेन से महिलाओं को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं.पर अगर सोचो की इस मुश्किल से महिला को निज़ात मिल जाए तो?

एनेस्थीसिया विधि से महिला को इस दर्द से मिलेगा निज़ात….

अब आप ये सोच रहे होंगे कि एनेस्थीसिया विधि क्या है,तो बता दे की ये ही वो विधि है जो हमें डिलीवरी के दौरान दर्द से निज़ात दिलवाती हैं,

तो चलिए एनेस्थीसिया विधि जानने के लिए शुरू करते हैं आज का विषय..

एनेस्थीसिया विधि वह विधि है जिसमें डिलीवरी के दौरान होने वाले दर्द से हम निज़ात पाते हैं

  • बता दे कि एनेस्थीसिया विधि का शाब्दिक अर्थ होता है- बेहोशी या फिर शारीरिक अचेतना
  • इस विधि में मरीज की सर्जरी या फिर कोई ऐसी मेडिकल प्रक्रिया जिसमें टांके लगाने की नौबत हो और मरीज़ को तकलीफ भी कम महसूस हो तो इसके लिए कुछ दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है और इस दवाइयों के इस्तेमाल की प्रक्रिया को ही एनेस्थीसिया कहते हैं |
  • यहाँ ये भी बता दे कि अगर हम इस उपचार का इस्तेमाल किसी प्राइवेट हॉस्पिटल से करवाते हैं तो हमारा खर्चा तक़रीबन 50 से 60 हज़ार तक का आ जाता हैं
  • वही अगर इस विधि का उपचार अगर हम मान्यता प्राप्त किसी ऐसे कॉलेज से करवाते है जहा इसका इलाज़ निःशुल्क हो रहा हो तो हमारे ज़ेब पर असर भी कम पड़ेगा और हमारा काम भी आसानी से हो जाएगा पर इसके लिए हमें थोड़ी जानकारी एकत्र करनी पड़ती हैं कि ये इलाज किस कॉलेज में निःशुल्क करवाया जा रहा हैं उसकी |

 एनेस्थीसिया विधि का इस्तेमाल डॉक्टर्स कैसे करते हैं…..

  • बता दे कि किसी भी तरह की सर्जरी से पहले डॉक्टर मरीज़ को बेहोशी की दवा देते हैं जिसे अंग्रेज़ी में एनेस्थीसिया कहते हैं और ये दवा लेने के बाद मरीज़ को एहसास ही नहीं होता कि उसके शरीर पर कौन सा ट्रीटमेंट किया जा रहा हैं |
  • और यहाँ ये बात भी गौरतलब है कि एनेस्थीसिया विधि से मरीज़ और डॉक्टर दोनों को फायदा हैं,क्युकि इस विधि के दौरान मरीज़ को बेहोश कर दिया जाता हैं जिससे कि डॉक्टर अपना ट्रीटमेंट आसानी से कर पाते हैं |
  • तीसरी बात डॉक्टर मरीज़ को बेहोश करने के बाद उसके रीढ़ की हड्डी पर टिक्का लगाकर इस प्रक्रिया की शुरुआत करते हैं |

अब यहाँ कुछ व्यक्तियों के मस्तिष्क में ये बात भी घूम रही होगी कि अगर इस विधि से हमे दर्द से राहत मिलती हैं तो क्या इसके कुछ नुकसान भी हैं क्या…..

जी मिचलाना या उल्टी आने की संभावना

  • चक्कर आना
  • मुंह सूखना
  • गले में खराश का होना
  • ठंड लगना या फिर कंपकंपी सा महसूस होना
  • मांसपेशियों में दर्द होना
  • खुजली

निष्कर्ष….

अंतत आपको यही कहा जा सकता हैं की डिलीवरी के दौरान असीमित दर्द हो तो एनेस्थीसिया विधि का इस्तेमाल जरूर करे पर डॉक्टर से सलाह जरूर ले और इसके बारे में जानकारी ज़रूर हासिल करे और अगर मौजूदा हालात में आपको कोई ऐसा हॉस्पिटल नहीं पता जहा इसका इलाज़ किया जाता हैं तो आप Ludhiana Gastro & Gynae Centre जरूर जाकर देखे और बिना दर्द के नॉर्मल डिलीवरी करवाए ||

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Hemorrhoids hemorrhoids treatment Kartik Goyal

You Should Know the 5 Easy Ways To Avoid Hemorrhoids

If you have hemorrhoids, there are several various treatments that you can try. On the other hand, if you already have hemorrhoids, you probably advise others to completely avoid them.

Hemorrhoids in the anal canal are swollen, inflamed venous cushions that can occasionally bleed, hurt, itch, and be painful. But these irritating symptoms can be prevented with a few simple lifestyle changes. Vein swelling or inflammation around the anus is a common symptom of hemorrhoids or piles. Even lumps might be left behind by the piles in and around the anus region. There’s a chance it will get better on its own, but some folks might need medical help for the Piles Treatment in Ludhiana.

Explains five easy methods for avoiding hemorrhoids and how changing your lifestyle can have a massive effect.

Can hemorrhoids be prevented?

Hemorrhoids affect everybody. There are a variety of internal and external blood arteries close to your anus that supply the entire region with blood. These blood vessels don’t typically cause problems that can be very painful until they start to swell and get irritated. Here are some steps you can take to stop the enlargement of those blood vessels.

  1. Whenever necessary, use the restroom.

Even though it sounds like common sense, many people choose to ignore it. Delaying your bathroom visit may cause your stool (poop) to dry out and solidify in your digestive tract, making it more difficult to move. If you have trouble passing your feces, your risk of developing hemorrhoids increases.

  1. Avoid turning the restroom into a reading space:

Instead of treating your visit to the bathroom as a lengthy vacation, think of it as a necessity. If there are magazines or books stacked on the water tank of your toilet, you might want to consider relocating them. Don’t use your phone in the bathroom to play games, browse Facebook, Instagram, Snapchat, or Twitter.

  1. Check your diet

Your stool needs to be soft and easy to travel through to prevent hemorrhoids. Choose a healthy diet, and stay hydrated by drinking plenty of water, to obtain the ideal consistency.

The primary factor is a lack of fiber. For instance, if you get constipation, try increasing your intake of fiber from fruits, whole grains, and leafy green vegetables. Fiber can prevent constipation, which increases straining and increases the risk of hemorrhoids.

  1. Continue to exercise to keep your body active.

Hemorrhoids are among the bowel and digestive diseases that moderate exercise helps to treat or avoid. Everything slows down when you are inactive, even your bowel movements.

Exercise keeps the waste in your intestinal tract moving. You can avoid constipation and dry, hard stools as a result of this. Choose an active lifestyle whether it involves a bike, yoga, short-distance running, walking, or any other activity.

  1. See a doctor

Visit Doctors for Haemorrhoids in Ludhiana and have your symptoms assessed if your symptoms change or your bleeding worsens. There are non-surgical methods of treating hemorrhoids as well. To rule out other diseases, you might need a diagnosis.

Other lifestyle recommendations to avoid hemorrhoids

Some activities you can take each day will also help, such as:

  • Drink more water. Fiber without water makes stools hard.
  • Avoid long periods of sitting.
  • Ask your gastro doctor about taking fiber supplements.
  • When you go to the restroom, elevate your feet on a low stool or chair to reduce pressure and move your stool without additional effort.
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Gynecologist Painless Normal Delivery Pregnancy Shuchita Batra

Painless Delivery: Benefits of Painless Regular Delivery

The beginning of a great journey is becoming a mother. With the arrival of your bundle of joy, the incredible bond you have enjoyed with your unborn child for the past nine months comes to a head. However, the birthing process that occurs when someone crosses over is frequently terribly painful. New women frequently experience fear during natural birth. Although an elective C-section was previously the only option, modern science has made some ground-breaking strides that may help reduce labor pain to a manageable degree. Epidural analgesia, sometimes known as painless birth, is only an option for regular deliveries.

What is Painless Delivery?

It is possible to have a painless birth by using a form of localized anesthesia that reduces discomfort during natural labor. The mother’s lower back is injected to administer the epidural anesthetic. It takes the drug 10 to 15 minutes to begin working. For women who would otherwise opt for a C-section but have a lower pain threshold, this is a potential alternative.

How is anesthesia administered during an epidural?

While getting the epidural, you might have to sit still with your back slightly arched. By putting a tiny tube into the lower portion of your spinal cord, the Painless Normal Delivery Doctors in Punjab will catheterize your lower back. To deliver epidural anesthesia during labor, the needle is taken out and the catheter is taped into place. When you are in active labor, your gynaecologist will give you an epidural, which numbs your pelvis and everything below it while you’re still conscious. You should be warned that it does not completely relieve pain, though.

The Benefits of an Epidural

  • Women who have painless delivery have a chance to give birth naturally with only a few interventions. It has contributed to a decrease in the number of elective C-sections performed in India.
  • A woman can choose to receive an epidural during labor if she believes she can’t manage the pain, is exhausted from pushing, or has an emergency that might need an urgent C-section.
  • It enables the mother to concentrate on giving birth by reducing pain. It is a relaxing aid and can minimize the tiredness and irritability that most women experience during childbirth, lowering the likelihood of post-partum problems.
  • It helps the baby descend naturally by relaxing the pelvic and vaginal muscles.
  • It also helps to lower the mother’s blood pressure, which would otherwise rise during labor to riskily high levels.

Epidural Side Effects or Risks

  • While obtaining an epidural is completely safe for both the mother and the unborn child, some people may feel fever, breathing problems, nausea, dizziness, back pain, and shaking.
  • The new mother may experience severe headaches that resemble migraines as a result of some epidural leakage into the spine.
  • The duration of labor may be extended if an epidural is used.
  • The woman could develop urine incontinence following birth. Then, a catheter might be used.
  • It may take some time before you can walk because it makes your entire lower body numb.

Conclusion: Using Entonox, which is nitrous oxide and oxygen delivered through a breathing mask, and water delivery are two additional options for painless deliveries. Many women have had wonderful natural birth experiences thanks to painless delivery techniques like epidurals. Only after carefully assessing the advantages and downsides and discussing the procedure with Painless Normal Delivery in Ludhiana should you decide to proceed.

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Gastroenterology Hemorrhoids Kartik Goyal

What Are Hemorrhoids? Symptoms, Causes, Diagnosis, and Treatment

Hemorrhoids are enlarged, swollen veins in the rectum or around the anus. They are usually brought on by pressure on the veins, similar to the pressure that results from trying to expel a bowel movement. They may have been referred to as piles.

Blood vessel tissue is a typical component of our anatomy. It is believed to hold stool in when we are not having a bowel movement and to cushion muscles when we do. Hemorrhoids typically go undetected until they swell.

Hemorrhoids are a very common condition that gets worse with age. The majority of people will eventually experience hemorrhoids, even if they may not show any symptoms. Hemorrhoids are estimated to be visible in 50% of all persons over the age of 50.

Hemorrhoids are frequently experienced by pregnant women, although they usually go away after childbirth.

Hemorrhoids come in two main variants:

  • Internal: Inside the rectum hemorrhoids. Typically, they go unnoticed.
  • External: Hemorrhoids in the anus-region tissue.

What causes hemorrhoids?

Hemorrhoids could be the result of anything that puts strain on the veins in and around the rectum and anus. Your risk of having them increases as you age.

Common cause include:

  • Sitting for too long
  • Straining with bowel movements
  • Chronic constipation or diarrhea
  • Obesity
  • Pregnancy
  • Regular, heavy lifting
  • A diet lacking fiber
  • Anal intercourse
  • Liver disease
  • Family history of hemorrhoids

Hemorrhoid Symptoms

There could be several varieties, and each type could have a different set of symptoms. A vicious cycle of symptoms can start with itching brought on by edema. Scratching, incorrect cleaning or no cleaning at all may make ititch worse. The itching could lead to more bleeding and irritation.

Internal hemorrhoids are typically not noticeable unless they emerge from the anus. Itching or scratching might potentially cause the veins to become strained or broken, which could lead to apparent bleeding. If you have bleeding hemorrhoids, you may notice blood in the toilet bowl, on the toilet paper, or in your stool.

External hemorrhoids may cause:

  • Irritation
  • Itching
  • Pain or discomfort
  • Protrusion or hard lump near the anus
  • Rectal bleeding
  • Swelling around the anus

Prolapsed hemorrhoids may cause:

  • Pain or discomfort
  • Bulging that you can feel outside the anus

How to Diagnose Hemorrhoids

Some hemorrhoid symptoms can also be brought on by other, more serious illnesses like colon cancer. It’s crucial to discuss your symptoms with your healthcare physician to rule out any potential reasons. Sometimes your symptoms and a physical examination can detect hemorrhoids, but you could also need additional tests.

  • Physical exam 
  • Digital rectal exam (DRE)
  • Anoscopy or proctoscopy
  • Sigmoidoscopy 
  • Colonoscopy

Home Remedies

With simple lifestyle changes and over-the-counter medicines, mild symptoms can frequently be successfully treated at home. Before beginning any treatment, it’s essential to receive a diagnosis, especially if you are bleeding or have never had hemorrhoids before.

  • Eat high-fiber foods
  • Fiber supplements
  • Good personal hygiene
  • Hemorrhoid Cream
  • Warm Sitz Bath
  • Laxatives
  • Pain Relievers
  • Use a step stool

Minimally Invasive Treatments

Pain relief and other hemorrhoid-related symptoms may not always be fully achieved by using home remedies. It is necessary to remove hemorrhoids that are prolapsed or that bleed excessively. In-office removal techniques are possible in some cases.

Hemorrhoid banding

A special applicator is used to pinch the root of the hemorrhoid in a small rubber band during hemorrhoid banding, also known as band ligation.

Endoscopy

Endoscopy: A little, flexible tube will be inserted into your rectum by your doctor. Hemorrhoids can be removed using the tube, which has a tiny camera and is compatible with small tools.

Laser, infrared, or bipolar coagulation

Hemorrhoids are reduced with these procedures using infrared radiation, heat, or a laser. The hemorrhoids will gradually stiffen, shrivel, and fall off following treatment.

Sclerotherapy

A chemical solution is injected into the hemorrhoid during sclerotherapy, causing it to contract and leave behind a scar.

The doctors for hemorrhoids in Ludhiana may recommend a hemorrhoidectomy if home remedies and minimally invasive office procedures are ineffective. Piles Treatment in Ludhiana reduces extra tissue that contributes to bleeding Although it usually works, it can be painful.

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Painless Normal Delivery Pregnancy Shuchita Batra

Top 8 Pregnancy Exercises for a Painless Normal Delivery

Exercise has turned into an important part of our daily routine to maintain a healthy and balanced lifestyle. Pregnant women are continuously looking for safe, effective activities that will enable them to deliver their baby normally and return, after the baby is born, to their pre-pregnancy habits and work.

Are pregnant exercises for a Painless Normal Delivery available to all women?

Exercise is recommended for mothers with particular medical conditions to ensure a Painless Normal Delivery in Ludhiana. These mainly include

  • Moms with diseases including diabetes, heart problems, or asthma.
  • Moms who had preterm births, hemorrhage, or earlier miscarriages during their pregnancies.

Are all types of exercise safe during pregnancy?

Even while the majority of workouts and sports can be used as pregnant exercises for normal delivery, there are a few that must be avoided:

  • Such as football and volleyball, are contact sports.
  • Exercises that call for excessive breath holding.
  • Jumping, hopping, and other bouncing-related activities

What pregnancy exercises are recommended for a healthy delivery?

How at ease you are with a fitness regimen is something only you can decide for yourself. But make sure to always talk to your doctor in advance about your intended fitness routine or pregnant yoga for a normal birth!

Moms of all ages can do the following general exercises:

  1. Walking During Pregnancy: Walking has been shown to provide incredible health benefits. Walking calms you down improves digestion and its related health issues, and also controls blood pressure for pregnant women.
  1. Squats During Pregnancy: Any woman who warms up with squats is aware of how effective this seemingly basic workout is. Squats during pregnancy help your pelvic region contract and relax to reduce the pain of delivery.
  1. Kegel Exercises for Pregnancy: Kegel exercises are designed to strengthen the muscles in your pelvic floor. This is essential for both a healthy delivery and after recovery.

Look up the following evergreen poses:

  • Stick Pose – Yastikasana
  • Twisted pose – Vakrasna
  • Butterfly pose – Bhadrasana
  • Chair pose – Utkatasana
  • Mountain pose – Parvatasana
  1. Pelvic Tilts During Pregnancy: Now is the time to use your yoga mat. Pelvic tilts will help strengthen your back muscles and are also quite helpful during labor. Simply stoop down and place your knees on the ground.
  1. Forward Leaning During Pregnancy: This exercise, which can be done up to the seventh or eighth month of pregnancy, is said to help gently move your baby into the proper position for birth.
  1. Opening Hips Squat During Pregnancy: This deep squat is a crucial exercise for a healthy birth and will help you release energy through your pelvic region. Stand with your feet shoulder-width apart and flex your knees to complete a normal squat.
  2. Swimming While Pregnant: Swimming keeps you in shape while assisting your body in adjusting to pregnancy. During the third trimester, it is very beneficial for pregnant women to unwind in a pool to ease the pressure on their backs.

What are you still holding out for? Start the journey to a Painless Normal Delivery now!

The following activities should inspire you to exercise while pregnant to have a healthy baby. Always exercise sensibly and with guidance from a knowledgeable friend or coach.

Top Painless Normal Delivery Doctors and Gynecologist in Punjab is here to guide you through the exciting early stages of pregnancy, from week-by-week expert guidance on the pregnancy calendar to tips for taking care of a new baby.

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Painless Delivery Pregnancy Shuchita Batra

Do You know? the Benefits of Almond Milk while Pregnancy!

When you find out you’re pregnant, the first thing you should do is make sure you’re eating a healthy, balanced diet for the baby’s best nutrition. There are many options to choose from, including various milk varieties, if you are reconsidering your eating options to make healthier decisions.

Almond milk has been around for a very long time, but recently it has become more and more popular. For individuals who are lactose intolerant, want to add diversity to their diet, or just like the consistency and flavor of almond milk, it’s a great healthy drink option.

How many calories does almond milk contain?

Almond milk has fewer calories in comparison to cow milk. You must therefore include it in your diet if you want to keep a healthy balance. It also contains calcium, zinc, phosphorus, and riboflavin.

Antioxidants: Almond milk contains a lot of vitamin E, an antioxidant that lessens oxidative stress during pregnancy.

Healthy Heart: A respectable level of omega-3 fatty acids are present, which helps to maintain the health of the heart.

Good for Bone Health: Almond milk is a great source of calcium, which will help to fulfill the rise in calcium requirements and so keep your bones healthy and strong.

Prevents High Blood Pressure: Preeclampsia can be brought on by high blood pressure, which is a severe worry during pregnancy. In addition to being high in calcium, almond milk also contains magnesium, which aids in regulating blood pressure.

Helps manage Gestational Diabetes (GDM):  Almonds have a low glycemic index, making them a perfect choice for controlling blood sugar levels during pregnancy. 

Good for Vegans: Almond milk is a good choice if you’re a vegan and you’re not allowed to consume any dairy products. You may use it as milk, in smoothies, and gravies.

Healthy Skin: Almond milk’s vitamin E helps to maintain healthy skin by reducing pigmentation and pimples.

Long shelf life: Almond milk does not require refrigeration for storage. As a result, taking it with you while traveling, working, or waiting for scans, exams, etc., is a great and easier alternative.

How Should You Make Your Almond Milk?

You can add more flavor with a little cinnamon or cocoa powder to boost the flavor. If at all possible, prepare your almond milk, but if not, it is also easily found at grocery stores. It is available in various flavors, sugar-free varieties, calcium-enriched varieties, etc. Nevertheless, preservatives will be present.

How much almond milk is acceptable to drink while pregnant?

Almond milk is generally considered safe to consume while pregnant, except for people who have a history of allergies. However, it is advised to consume it in moderation to prevent any gastrointestinal issues. Make sure to go by the recommendations for a healthy, balanced diet so that you can take pleasure in the best aspects of your life.

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Hymenoplasty Shuchita Batra

Hymenoplasty: 5 Things You Need To Know To Revive Your Virginity

Medical science is advancing. Certain surgical and non- surgical treatments have the power to improve patients’ self-confidence in addition to treating diseases and injuries. One of them is hymenoplasty.

What is Hymenoplasty?

The surgical intervention known as hymenoplasty is frequently chosen by women to repair their damaged hymens and, in some circumstances, to produce one for those who were born without one. It is believed that a woman’s hymen, a thin membrane in the lower part of the vagina, attests to her virginity. With more women participating in sports and fitness, the hymen is regularly ruptured even before sexual activity.

Why do females have hymenoplasty?

A hymen serves no real role anatomically. The hymen may even rupture during physically demanding activities like sports and workouts, although it has important psychological and physical benefits for women. Many factors influence a woman’s decision to undergo a hymenoplasty, including:

A Fresh start: when a woman has a strong desire to get over her past to begin over. Many women view the opportunity to start over presented by their revirginization.

Cultural beliefs: According to some cultural beliefs, some women wish for an intact hymen for their husbands before they get married.

Enhanced sexual experience: The Vaginoplasty surgery frequently done with hymenoplasty operation tightens muscles that may have gotten slack with age or childbirth, combined with vaginal rejuvenation. A more fulfilling and increased sexual experience is the result.

Medical causes: In some females, the hymen is excessively thick and completely encloses the vaginal opening. In these circumstances, a small hole is made in the membrane to let blood flow.

PTSD from sexual assault: In this case, the treatment not only restores the hymen physically but also offers psychological consolation. It gives women the impression that they can lose their virginity to anyone they want.

What time should You go for the procedure?

The choice of a time frame is influenced by the anticipated timing of the intercourse. Women who need the hymen to be cosmetically intact and who need structural integrity should have the surgery done three months before the wedding. But when the timing of a sexual act is precise and the patient wants to bleed, visual integrity is not required. Three weeks before the occasion, the operation is arranged.

Is it safe?

The operation of hymenoplasty is risk-free, and most complications are minor. Postoperative symptoms include discomfort, occasional discharge, unusual bleeding, disorientation, or severe itching can occasionally occur. These cases require immediate medical attention. The process takes about 30 minutes in all. Additionally, it takes between 4 to 6 weeks for full recovery after the treatment. The next day, women can return to their jobs, but they should avoid any stressful situations.

To know more about Hymenoplasty in Ludhiana and consultation, book an appointment with Revirginization surgery in Punjab.

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Kartik Goyal Stool blood

The Reasons You Should Never Ignore Blood in Your Stool

What Is the Cause of Bleeding While Passing Stools?

 

The cause of bleeding while passing stool is blood flowing through the anus. Both bright crimson blood in the stool and brownish, dark, or black feces are symptoms of bleeding. Potentially, the bleeding might be covered up. Rectal bleeding may also be evident in cases of gastrointestinal bleeding from the stomach, duodenum, small intestine, or Meckel’s diverticulum. Although rectal bleeding may not cause pain, it can nevertheless cause additional symptoms including diarrhea and abdominal cramps due to irritation from blood in the stool.

However, you can’t be certain of the reason for your rectal bleeding without a professional checkup, like one conducted by Blood In Stool Treatment in Ludhiana. The best chance of recovery from a more serious medical condition, such as colon cancer, is early detection. Therefore, if you discover blood in your stools, visit a gastro doctor nearby as soon as possible.

Five Different causes of stool in blood

Hemorrhoids can cause discomfort, pain, and swelling as well as swelling that might bleed. These swollen blood vessels are what cause the bright crimson blood that covers the feces or that is visible when wiping.

Anal fissures, which are tears in the anus’s lining, might give the impression that your anus is ripping while you  pass stools. Another sign of an anal fissure is burning per rectally.

Blood in the stool can also be an indication of colon issues. Possible reasons include colitis, diverticulitis, colon cancer, colon polyps, and colon polyps. Your digestive system might become so irritated by Crohn’s disease and ulcerative colitis that it bleeds.

It can also be a sign of bleeding if your feces is black. This coloring normally occurs when there is bleeding high up in the digestive tract, like in the stomach or small intestine. It’s not always concerning, though, because you can have a black hue to your stool if you take iron supplements or a prescription for diarrhea.

Tests to identify the Reasons of bleeding through anus

Dr. Kartik Goyal conducts a physical examination to look for fissures or hemorrhoids. For these painful but mostly benign illnesses, he can provide pain relief. He can also discuss with you how to avoid them in the future.

You might need extra comprehensive tests if a physical examination or rectal examination is unable to promptly pinpoint the cause of your rectal bleeding. During an anoscopy in Ludhiana or sigmoidoscopy in Ludhiana, Dr. Kartik Goyal can examine your lower rectum and anus. This test is done in-office without sedation. 

Depending on the type of bleeding you are experiencing, your family history, and your current symptoms, Dr. Kartik Goyal could recommend getting a colonoscopy. This test, which is performed while you’re sedated, looks at your entire colon.

Why having blood in your stool is a Problem

Rectal bleeding can be an indication of cancer or a precancerous condition, while there are other more compelling causes as well. If you have polyps (precancerous growths) close to the bottom of your colon, your bleeding may look like hemorrhoids. It is critical to have polyps removed as soon as they are discovered to prevent the development of cancer, which can take years before they are removed.

As you approach 40 or 50 years old, your chance of getting polyps and colon cancer rises. As a result, it is even more important to perform a comprehensive physical and to be particularly cautious about any indications of blood in your stool.

If you see even the slightest hint of rectal bleeding, get in touch with Treatment for Rectal bleeding in Punjab or make an appointment online. Rectal bleeding should never be disregarded because it could produce complications that could be fatal. Being careful is preferable to being regretful.

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Bariatric Surgery endoscopic balloon Kartik Goyal

What’s the difference between an endoscopic balloon and bariatric surgery?

Are you looking for a weight loss procedure?

Weight loss can be challenging to deal with in different cases. Usually, individuals look for methods that are known for offering the finest results without any complications and ones that do not require any surgical intervention. But is it possible for binge eaters to reduce weight without any surgery? Well, to give you better clarity, there’s often confusion in making a choice between bariatric surgery and Intragastric Balloon for Weight Loss Ludhiana. So, how do these work for weight loss? To make an informed decision, you should get the supervision of one of the best Gastrointestinal Endoscopists in Punjab.

Difference between gastric sleeve (bariatric surgery) and gastric balloon

The selection of the procedure as the best method for weight loss improves overall health in a significant manner. The expertise of weight loss experts will suggest the most appropriate method to address the situation and ensure all the complications are well-addressed. The given below table gives you a better representation of both methods:

Bariatric Surgery (Gastric Sleeve)Endoscopic Balloon (Gastric Balloon)
Procedure typeBariatric Surgery in Punjab is performed as a surgical methodIntragastric balloon is referred to as non-surgical method
Facility requiredHospital or operating roomOutpatient procedure is done in-office
Anesthesia/SedationPerformed under general anesthesiaRequires mild sedation
Does It Involve Incisions?Yes – 4 to 5 incisionsNo
Procedure Length2 hoursTakes between 20 to 30 minutes
Is thereYes 1-3 daysNo, patients return home on the same day
Procedure LongevityThe procedure requires permanent alterations to the stomach.

 

 

The intragastric procedure is a temporary method. That means the gastric balloon is required to be kept in the stomach for 6 months only and then removed after that.
RecoveryBody needs 4 to 6 weeks to recover.Body needs 3 days to 1 week to get back to normal.

Permanent and temporary results

The end goal of the patients looking for weight loss surgery is the need for permanent results and to make sure the results are effectively noticed. To see the permanent results of the endoscopic balloon and gastric sleeve surgery, you need to consider the approach and the way it works.

The choice of gastric balloon is removed after six months, and after that, it’s the journey to take the best care of yourself. Here the major consideration is regarding the approach to learning about:

  • Portion control
  • Make eating habits healthy
  • Live a lifestyle that focuses on balancing everything

The small factors will make a huge difference and make it easier for you to live a lifestyle that’s healthy and better in the long run.

Are you confused about which type of weight loss procedure suits you the best?

If you are having second thoughts on what to do or what should be done, then discuss the same with the doctor.

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Kartik Goyal Piles

Know the difference between piles and fissures

Piles and Fissures Treatment in Ludhiana, Punjab

Piles and Fissures Treatment in Ludhiana, Punjab: An itchy and irritable anal cavity, discomfort when sitting for a long time, and bloody or difficult-to-pass stools? You have likely come across similar circumstances at some point in your life. It’s not just you! In India, hemorrhoids affect 50% of the population. According to reports, 20% of cases had both piles and fissures. However, since both piles and fissures have comparable symptoms, many of us frequently fail to recognize the essential distinction between the two.

A famous Gastro Doctors for fissure treatment in Punjab describes the difference between piles and fissures in this article.

What Distinguishes a Fissure from a Pile?

Inflamed veins in the rectal or anal region may extend outside, resulting in piles or hemorrhoids, which are uncomfortable.

On the lining of the anal cavity, a small cut is called an anal fissure.

Piles vs Fissures

Here are some factors that will explain the differences between piles and fissures.

PilesFissure
Swollen veins in the rectum, anus or anal canalAnal skin cut or torn
Initial pain is minimal, but it soon becomes more intense as the swelling increases.Extremely uncomfortable and painful with mild to moderate bleeding
Long-term constipation, pregnancy, a chronic cough, and physical strain can cause piles.

 

This happens during pregnancy, as a result of obesity or an injury to the anal cavity, in people with Crohn’s disease, who pass hard stools and have persistent diarrhoea, and in people with other conditions.

 

Piles and Fissure Overview

Piles and fissures usually remain misdiagnosed because of overlapping signs and symptoms. Here is a full overview of pile fissures to further your understanding.

Piles Overview

The symptoms and potential treatments are based on the type of hemorrhoid you have and how severe it is. When detected early enough, you can even treat it at home with simple lifestyle changes and natural remedies. There are usually three types of piles:

  1. Internal Hemorrhoids

Internal Hemorrhoids occur as solid lumps in the rectal cavity’s back tube. Since there are not many pain-sensing nerves in that area, you might not initially feel them. However, if your bowel movements are difficult or prolongedly constipated, this may occasionally result in blood and pain.

  1. External Hemorrhoids

External hemorrhoids are more apparent and painful because they form on the outside of your anal canal. Usually, they are covered in regular skin and have pain nerves all around them. This type of pile is not only more painful, but it also carries a high risk of blood clots, skin tags, and other skin infections.

  1. Thrombosed Hemorrhoids

Having thrombosed hemorrhoids is characterized by a blood clot that prevents blood flow. The additional blood might cause temporary hemorrhoids to rupture and start bleeding. If you are confused as to whether these bleeding hemorrhoids are dangerous, do not be alarmed. The majority of thrombosed hemorrhoids are benign, even though they can be highly painful and uncomfortable.

Fissures Overview

Anal fissures, in contrast to piles, can be extremely painful immediately away. Anal sphincter spasms and intense itching might result from a small tear in the moist tissue of the anal region.

Fissures come in different levels of severity and can be classified as

  1. Acute Fissures

Acute fissures are easy to treat because they have only recently formed. One can help these fissures to heal on their own with simple home remedies.

But if left untreated, they might later turn into chronic fissures.

  1. Chronic Fissures

These are fissures that require medical attention to heal and last longer than 8 to 12 weeks.

Chronic fissures include an anal rip, a skin tag-like enlargement, and an additional tissue growth known as a hypertrophied papilla.

  1. Fissure Symptoms

Anal fissures usually involve a searing ache at the bottom. However, there are other fissure signs and symptoms you could encounter:

  • Periodic bleeding, especially after urinating
  • A sharp spasm, and tightness of the anus were both present.
  • Painful boils that may be pus-filled
  • Smell of mucus-like discharge

Best treatment for fissures and piles

A common fissure or hemorrhoid is simple to treat and will heal entirely in at least 6 to 8 weeks.

The best treatments for treating piles and fissures to promote quicker healing include the ones listed below:

  • The stools may become more bulky and soft by increasing your intake of fiber and liquids. This would alleviate any discomfort and make it simpler to pass through.
  • The best way to treat piles and fissures is with ice packs and a cold compress that can help with pain relief.
  • A frequently recommended and effective at-home treatment for piles and fissures is a sitz bath, which is a warm bath with salts.
  • The discomfort can be reduced by using loose cotton garments that won’t further rip the injured area.
  • On an empty stomach, consume 500–600 ml of water to assist trigger the gastrocolic reflex (a contraction of your colon to release stools).
  • It is best to seek medical advice if the symptoms last longer than a week.

What Should you avoid in Fissures and Piles?

You would certainly understand the distinction between fissures and piles treatment in Ludhiana. However, you can manage their symptoms by making a small change to your way of life.

Here are some recommendations you need to follow to if you have piles and fissures:

  • Avoid spicy food
  • Avoid fried food
  • Restrict the consumption of caffeinated beverages
  • Avoid drinking alcohol

Conclusion

Discussing anorectal diseases can be uncomfortable for many people, which prevents them from receiving the proper care. But if these problems aren’t resolved right away, they can get worse. It’s essential to remain informed about your disease to receive the proper care. Therefore, it is important to understand the main difference between piles and fissures. One must seek medical guidance as soon as possible to prevent further health issues.

 

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Pregnancy Shuchita Batra

What are the risk factors related to obesity during pregnancy?

There is no doubt that having a high body mass index during the time of pregnancy can badly impact the health of you and your baby as well. So you should make sure to stay away from problems like obesity during the pregnancy period. If you want to take some precautionary tips, then you can get in touch with a Gynecologist In Ludhiana at Ludhiana Gastro and Gynae Centre.

Moreover, they have completed more than ten thousand Painless Normal Delivery in Punjab. And according to the experts of that clinic, pregnant mothers should consume shatavari for breast milk as it promotes the prolactin hormones, which helps to improve breast milk production.

Can high BMI affect pregnancy?

According to some scientific studies, having a high body mass index can cause issues with fertility when a woman is obese, so at that time, chances are higher that she will take a long time to get pregnant. Additionally, a higher body mass index can also make your in vitro fertilization treatment unsuccessful.

How can high BMI affect pregnancy?

As having a high BMI can lead to many complications during pregnancy, and those are:

  • Higher chances of Miscarriage
  • Gestational diabetes can occur
  • High blood pressure can damage your organs and affect pregnancy very badly
  • Heart problems can occur
  • Sleep apnea
  • Risk of C-section complications, such as wound infections

How could obesity affect a baby?

Having a high body mass index can create several types of health complications for a baby, and those are:

  • Congenital disorders
  • fetal macrosomia can occur where the size of the baby is significantly larger than average at birth time
  • Physical Growth problems
  • Childhood asthma can occur
  • Childhood obesity is also common
  • Delays in the development of body parts can occur

How much weight should you gain during pregnancy?

You can consider checking your body mass index before the pregnancy because that will give you an idea about how much weight you need to gain during your pregnancy period. And make sure to get help from a professional doctor to know about the dietary plans that can manage your body weight and the health of your organs.

  • Single pregnancy

According to health professionals, your body mass index is around thirty while carrying a baby. So at that time, you need to gain about eleven to twenty pounds. In other words, five to nine kilograms.

  • Multiple pregnancies

If your body mass index is around thirty or higher than this and you are carrying twin or multiple babies at a particular time, you have to gain around twenty-five to forty-two pounds ( about 11 to 19 kilograms).

However, you have to keep in mind that you do not need to gain excessive weight because that can cause issues with your pregnancy.

Final words

Ludhiana Gastro and Gynae Centre provide you with excellent precautionary tips to stay away from the common issues during pregnancy such as obesity.

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Fatty Liver Kartik Goyal liver disease

Non-alcoholic Fatty Liver Disease and Obesity

Non-alcoholic Fatty Liver Disease and Obesity

It is commonly known that drinking alcohol excessively harms the liver. There is a widespread perception that this is the primary cause of cirrhosis and other serious, usually fatal liver diseases. Obesity is an important contributing factor as well. Fatty deposits develop in the liver as a result of both excessive drinking and obesity. NAFLD, standing for non-alcoholic fatty liver disease, is the diagnosis.

How does NAFLD impact the body?

The liver is one of the body’s most important organs. It helps improve digestion, produces proteins that rebuild and repair damaged cells, stores the iron the body needs, turns food into energy, and aids in the body’s capacity to fight off diseases. A small amount of fat is present in the liver’s normal composition. NAFLD is present when obesity causes the quantity of fat in the liver to rise to 5% to 10% of the total weight of the liver.

In many cases, NAFLD may not show any symptoms, making it difficult for people to identify their condition. In other cases, the liver swells, damaging the surrounding tissue. It’s also referred to as Non-Alcoholic SteatoHepatitis ( NASH). Cells are damaged as a result of this harm, and scar tissue develops as a result, reducing the liver’s ability to function. Cirrhosis is a disorder that develops when the level of scar tissue is excessive and can result in liver cancer and liver failure.

How does obesity cause fatty liver disease?

NAFLD may occasionally appear out of nowhere. Stated that the following are some frequent reasons for the condition:

  • Obesity is one of the most common causes. Modern eating habits, lifestyles, inactivity, and genetic predispositions are the main causes of obesity.
  • Type 2 diabetes
  • Diabetes syndrome
  • Taking some prescription medication

What symptoms are present in fatty liver disease?

NAFLD patients usually don’t exhibit any symptoms until the disease has progressed to the cirrhosis stage. In other circumstances, the symptoms could be:

  • Abdominal pain or a feeling of fullness
  • Nausea
  • Appetite loss
  • Weight loss
  • Eyes and skin with yellow undertones (jaundice)
  • Extreme fatigue
  • Mental confusion
  • Swollen legs and abdomen

Which treatment is most effective for NAFLD?

The first step in treating NAFLD brought on by obesity is weight loss. Under medical supervision, a controlled, progressive weight loss that doesn’t fluctuate could halt the disease’s course. This requires maintaining a tight diet and doing lots of exercises. A Gastro Doctor may also prescribe medication to treat NAFLD. If all other treatment options fail and the condition gets bad enough to risk one’s life, the only option left is a liver transplant.

If you have NAFLD or think that you could have it, consult with a fatty liver treatment in Punjab. Despite popular belief, a transplant surgeon won’t always prescribe one. The surgeon always places the patient’s best medical needs first. If there are no other options, a liver transplant specialist will recommend a transplant after carefully weighing all available options. Although NAFLD and other major liver problems. they are discovered and treated, the better the chance of recovery.