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Gynecologist Health

Frozen embryo transfer – Necessary Precautions, Symptoms & the mechanism

Women today are career-oriented, and they do not consider getting pregnant at a time when they are supposed to focus on their careers. As per the saying of the gynaecologist in Punjab, “But yes, this fact cannot be denied either that there is a certain age at which the women’s reproductive system is responding actively and thus that is considered as the right time to conceive.” But medical science has introduced a way by which a woman can focus on her career without worrying about the deterioration of fertility. The frozen embryo technique, which is also supported by the IVF Centre in Punjab, is the one many couples are finding the best measure to preserve fertility. 

What happens on the day when the frozen transfer is done?

Although the procedure includes the placement of the embryos in the uterus with the use of a catheter, still this stratagem is not deemed as invasive as it does not tamper with any of the organs of your body. This procedure requires preciseness, therefore, ultrasound is used to have a clear picture of where the embryo is supposed to be placed. The doctors customarily do not let their patients go home or move from their place for approximately one hour to ensure that the embryo gets itself adjusted in the environment of the uterus.

What should the couples expect after taking up the procedure?

Couples can surely expect pregnancy, but they should not take up the pregnancy taste unless instructed by the doctor or a gynaecologist.

When should the pregnancy test be taken into account?

Almost all gynaecologists suggest waiting for at least 2 weeks after undergoing the procedure.

What would you feel after taking embryo transfer?

Once you have undergone embryo transfer, then you are sure to encounter the following mentioned symptoms:

  • Cramps
  • Feeling exhausted or tired
  • Nauseous feeling
  • Bloating stomach
  • Mood swings 
  • Cravings

Which precautionary measures are to be taken into account to increase the hit rate of the conception?

  • First of all, the conception can be healthily carried out to the delivery if the woman is refraining from stress.
  • For at least two weeks, the woman should not engage in any kind of strenuous activity.
  • Besides, you should take into account the following some necessary don’ts and those are:
  • Do not intake caffeinated products
  • Do not consume cigarettes or alcohol
  • Do not engage in sexual intercourse

Are all the pregnancy tests positive after the embryo transfer?

It quintessentially depends on the experience of the fertility expert from whom you have taken up the procedure. But do not always account for his responsibility for the conception, if the couple have not followed the necessary precautions, then obviously, it would lead to adverse consequences. 

The bottom line

Above all the precautionary measures, the role of diet can never be neglected in any case. So, one should prepare a healthy diet and lifestyle if one does not want to encounter any complications during pregnancy.

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Health Infertility

डॉक्टर सुचिता बत्रा से जाने क्या होता है महिला बांझपन और इसके प्रमुख कारण कौन से है ?

एमेरिटस हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सुचिता बत्रा ने अपने यूट्यूब चैनल में पोस्ट एक वीडियो में यह बताया कि उनके हॉस्पिटल में आये महिला बांझपन से पीड़ित मरीज़ों के मन में काफी सवाल होते है जैसे की महिला बांझपन क्या होती है, इसके प्रमुख कारण कौन-से है, फर्टिलिटी के दर को कैसे बढ़ाया जा सकता है, इनफर्टिलिटी होने के बाद इलाज के लिए कौन-से विकल्प मौजूद होते है, आईवीएफ क्या होता है और इसके माध्यम से महिला गर्भधारण कैसे कर सकती है ? 

तो अब अगर बात करें की इनफर्टिलिटी क्या होती है, जब एक दम्पति पिछले एक साल से प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने की कोशिश कर रहा होता है, लेकिन हर बार गर्भधारण करने में असमर्थ हो जाता है तो इस स्थिति को इनफर्टिलिटी की समस्या कहा जाता है | यह समस्या महिलाओं को भी हो सकता है और पुरुषों को भी | कई बार ऐसे भी मामले सामने आते है जिसमें महिला और पुरुष दोनों ही इनफर्टिलिटी के शिकार होते है | 

 

अब अगला सवाल यह है कि इनफर्टिलिटी के प्रमुख कारण कौन से है तो महिलाओं में इनफर्टिलिटी की समस्या होने का सबसे प्रमुख कारण है पीसीओएस, डायबिटीज, थायराइड, प्रोलैक्टिन, जिसकी वजह से हार्मोनल में असामान्यताएं जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है | इसके अलावा फैलोपियन ट्यूब में आए रुकावट के कारण भी महिलाओं में इनफर्टिलिटी की समस्या उत्पन्न हो जाती है |  

  

अब तीसरा सवाल यह आता है की फर्टिलिटी के दर को कैसे बढ़ाया जा सकता है तो यदि इनफर्टिलिटी से पीड़ित मरीज़ धूम्रपानं और शराब जैसी नशीली पदार्थों का सेवन कर रहा है तो उससे बिलकुल ही छोड़ दें | 

 

इससे जुड़ी अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें और इस वीडियो को पूरा देखें | इसके अलावा आप एमेरिटस हॉस्पिटल नामक यूट्यूब चैनल पर भी विजिट कर सकते है | इस चैनल पर इस विषय संबंधी संपूर्ण जानकारी पर वीडियो बनाकर पोस्ट की हुई है |   

 

यदि आप भी इनफर्टिलिटी की समस्या से गुजर रहे है और स्थायी इलाज करवाना चाहते है तो इसके लिए आप एमेरिटस हॉस्पिटल से परामर्श कर सकते है | इस संस्था के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सुचिता बत्रा आब्सटेट्रिक्स और गायनेकोलॉजी में स्पेशलिस्ट है, जो इस इनफर्टिलिटी का इलाज कर, गर्भधारण करने में आपकी पूर्ण रूप से मदद कर सकते है | इसलिए आज ही एमेरिटस हॉस्पिटल नामक वेबसाइट पर जाएं और अपनी अप्पोइन्मेंट को बुक करें | आप चाहे तो वेबसाइट में मौजूद नंबरों से भी संपर्क कर सकते है |   

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Health Hindi Pregnancy

प्रेगनेंसी के दौरान नॉज़िया या फिर वोमिटिंग क्यों होता है, जाने कैसे पाए इस समस्या से निजात ?

एमेरिटस हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सुचिता बत्रा ने अपने यूट्यूब चैनल में पोस्ट एक वीडियो में यह बताया की प्रेगनेंसी के शुरुआती कुछ हफ़्तों में नॉज़िया या फिर वोमिटिंग का अनुभव होना बेहद सामान्य बात मानी जाती है, लकिन कई मामलों में स्थिति गंभीर भी हो जाती है | अब अगर बात करें की ऐसा क्यों होता है तो प्रेगनेंसी के दौरान महिंलाओं के हार्मोन  बहुत तेज़ी से बदलते रहते है, जिस कारण नॉज़िया या फिर वोमिटिंग का अनुभव होना स्वाभाविक है | 

 

डॉक्टर सुचिता बत्रा ने यह भी बताया की वैसे नॉज़िया या फिर वोमिटिंग का प्रेगनेंसी के दौरान आना स्वाभाविक है लेकिन कुछ युक्तियों के अनुसरण से आप इस समस्या को कम करने की कोशिश ज़रूर कर सकते है | आइये जानते है ऐसे ही कुछ युक्तियों के बारे में :- 

 

  • कोशिश करें की अपने आप को हाइड्रेटेड रखें, एक बार काफी सारा पानी का सेवन बिलकुल भी न करें क्योंकि इससे वोमिटिंग आने का खतरा होता है, सिप-सिप करके ही पानी का सेवन करें |
  • पूरे दिन के तीन प्रमुख भोजन को छह भोजन में विभाजित कर दें | ऐसा करने से आप अपना भोजन पूरा खा सकेंगे और वोमिटिंग की समस्या भी कम होगी | 
  • कोशिश करें की न ही पेट को पूरा भर कर भोजन करें और न ही पेट को कभी खाली रखें, क्योंकि ऐसा करने से नॉज़िया या फिर वोमिटिंग आने का खतरा रहता है | 
  • सुबह उठने के बाद खाली पेट कुछ भी लिक्विड चीज़ों का सेवन बिलकुल न करें, कोशिश करें कि अपने दिन की शुरुआत ग्लूकोन-डी बिस्किट्स या फिर क्रैकर्स के सेवन से ही करें | 

 

इससे जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप दिए गए लिंक पर क्लिक करें और अपनी अप्पोइन्मेंट को बुक करें | इसके अलावा आप एमेरिटस हॉस्पिटल नामक यूट्यूब चैनल पर भी विजिट कर सकते है | इस चैनल पर इस विषय संबंधी संपूर्ण जानकारी पर वीडियो बनकर पोस्ट की हुई है | 

 

यदि आप भी प्रेगनेंसी से जुड़ी किसी प्रकार की समस्या से गुज़र रहे है तो इलाज के लिए आप एमेरिटस हॉस्पिटल से परामर्श कर सकते है |  इस संस्था के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर सुचित्रा बत्रा ऑब्स्टट्रिशन गयनेकोलॉजिस्ट में स्पेशलिस्ट है जो इस समस्या को कम करने में आपकी पूर्ण से मदद कर सकते है | इस लिए आज ही एमेरिटस हॉस्पिटल की वेबसाइट पर जाएं और अपनी अप्पोइन्मेंट को बुक करें | आप चाहे तो वेबसाइट पर दिए गए नंबरों से सीधा संस्था से संपर्क कर सकते है |  

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What is IVF? Is it a better option for infertility-related problems?

No doubt, the commencement of the IVF procedure can fill you with excitement. According to the gynaecologist in Ludhiana, “This procedure is deemed as the last resort of the infertility problems if all the other procedures have failed.” You should visit the Best IVF centre in Punjab in the first place if any of the treatments the following are needed

  • Need of the gestational carrier 
  • If the donated egg has to be used 
  • Blockage in the fallopian tubes 
  • Male infertility 
  • When the preserved eggs are to be used 

Let’s get to know about the IVF treatment: 

First of all, we shall understand the literal meaning of IVF. IVF stands for In vitro fertilisation. In vitro means the procedure carried out in the lab, and by fertilisation, we mean the conception. 

  • Mechanism of IVF 

The procedure aims to extract more than two eggs with the use of the transvaginal ultrasound-guided needle. The extracted eggs, along with the sperms, which are collected from the semen sample, are placed in the specialised petri dish. 

  • ICSI

There are several cases in which the sperm needs extra care in fertilisation. In those cases, the ICSI technique is usually counted on. This is one of the best assisted reproductive technologies to date to deal with sperm-related problems. 

  • Importance of the ovary stimulation 

Before the extraction of the eggs, the ovaries are to be stimulated. Because without stimulation, the ovaries can not mature more than one or two eggs. 

  • Success rates 

IVF usually comes out to be successful. In the rarest cases, when the couples show a negligent attitude toward post-operative care, only then can the results come out to be disheartening.

But there is no need to take tension in that case since repeated treatment cycles can help increase the chances of a successful conception. 

  • Costs

We know that owing to the COVID crisis, the financial condition of the people is not so good, and so the couple who is suffering from infertility issues are quintessentially worried about the costs. But the good news for the parents-to-be is that the cost of the Ivf is significantly low, which you may describe as inexpensive. 

 

The costs can only come out to be higher if you are willing to get the combined treatment, which may include the following with IVF: 

  • ICSI 
  • PGT 
  • Assisted Hatching 
  • An egg donor 
  • Gestational Carrier 

 

  • Risks

There is usually no risk associated with the IVF procedure. The initial conception process is done through manual effort, but the rest of the process is completely natural and does not require any manual interference. 

Bottom Line 

Weighing the pros and cons before taking up a certain procedure is a wise thing for couples to do. So, if you have got to know everything about IVF, then visit an infertility centre that is recognized to provide guaranteed results.

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What are the indications of male infertility? How do doctors treat it?

When it comes to male infertility, then males usually suffer from a wide variety of problems, which may either be related to the reproductive organs or the sperm. There is a famous IVF center in Punjab whose fertility experts always guide the people best about the fertility and IVF aspects. In the recent awareness campaign, they have informed people about the cost of a test tube for babies. Yesterday, in high demand, they took the initiative of alerting people about what happens when a male is infertile. 

So, in today’s article, we have put forward the extract of that information. 

TESTICLES MAY PAIN OR SWELL 

The pain and the swelling may come to origin if you are suffering from problems like testicular torsion, infection and epididymitis. It is suggested to see a reputed doctor whenever you see the symptoms of pain and swelling in the testicular region. If you keep on ignoring this, then it may take the shape of a tumour and affect other organs as well. 

CHANGES IN THE SEXUAL DESIRE 

If, even after the foreplay, the male partner does not feel the urge to engage in intercourse or is not getting excited, then it is a problem one condition and needs to be attended to at the earliest. 

Do you know? 

Usually, the males get excited with the kiss. But if they are not checking erection, then it is an indication of some of the infertility conditions. 

ERECTILE DYSFUNCTION 

Erectile dysfunction is the condition in which the male partner is not able to achieve an erection. When it is about erectile dysfunction, then the male partner must want to fo sex. But even if, after the foreplay or a strong desire to satisfy the female partner, he cannot get his penis straightened, then it’s high time to discuss it with the doctor, otherwise, the aggravation of the problem may come with severe complications. 

EJACULATION PROBLEMS 

Ejaculation is the discharge of the semen fluid from the penis after the intercourse act is over. The intercourse is not terminated if the ejaculation does not take place. Sometimes it happens that after the intercourse, the male feels like ejaculating, but the fluid is somehow getting interfered to come out of the penis. 

SMALL TESTICLES 

Usually, the size of the testicle does not tell whether you are suffering from infertility or not. Instead, what exactly is occurring inside the testicles is what matters a lot. 

WHAT SHOULD YOU DO? 

If you are suffering from the above-mentioned problems, then you should surely visit the best gynaecologist in Ludhiana. They would tell you the effective ways of how you can get rid of these infertility problems. 

DIAGNOSIS TESTS 

First of all, the diagnostic tests will be carried out. Based on diagnosis tests, the problem will be ascertained. 

MEDICATIONS 

The particular problem will be sought to be corrected with the help of medications. 

LESS INVASIVE TREATMENTS 

If the medications are not proving useful, then the less invasive techniques will be considered first of all. If these do not come up with the desired results, only then the ART will be considered.

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Why do women face incontinence problems when they are pregnant?

Some incidences of pregnancy can be extremely wonderful, while others are the ones that may make you feel quite embarrassed. But fortunately, the woman does not have to bear the issue for her whole life. This problem goes on its own as soon as the baby comes in your lap. 

What exactly is incontinence? 

Incontinence is a condition in which the individual loses control over the bladder muscles. These bladder muscles contract and relax on their own. It can also be described as the incapability to hold urine. 

Following are the conditions which you will surely experience as far as the incontinence is concerned: 

 

  • You may feel the urge to empty the bladder frequently. 
  • You may experience the leakage of urine when you put some stress on the bladder muscles when you are performing such activities as: 
    • Coughing 
    • Laughing 
    • Sneezing 
  • You may have to get up so many times in the night to go out and urinate. If you wake up more than 3 times in a single night to urinate, then this is a serious condition that is described as nocturia. 

How does pregnancy affect bladder control? 

During pregnancy, the female’s body experiences so many changes. When this happens, then all the organs of the start functionality strangely. Like the bladder. 

  • Normal Hormonal changes

As the baby grows in your womb, then owing to various hormonal changes, the following are experienced: 

  • Weakened ligaments 
  • Frequent Urination 
  • Constipation

 

  • Increased Pressure 

The bladder is situated just below the uterus. So when the baby keeps on growing, the pressure on the uterus also gets increased. This will give you the feeling of fullness and heaviness even after you have urinated. 

HATS OFF!

All the women deserve appreciation and tribute because of their sacrifices, which they do with their bodies to give birth to a baby. 

  • Urinary Tract infections 

To experience a UTI during pregnancy is quite common. The bay puts pressure on the bladder, which makes it easier for the bladder to get trapped. 

  • Certain medications 

The medication that may be described to you during the pregnancy will lead to bladder leaks. So do not worry! If your bladder leaks during the pregnancy. It is completely normal. 

How can you treat bladder-related issues during pregnancy? 

The bladder issues can be treated if you take the following into account: 

  • Pelvic Exercise  

The doctor will recommend some of the exercises which can strengthen your pelvic floor. The strengthening of the pelvic floor is essential to keep the bladder muscles in dominance. 

  • Get treated for constipation. 

Do not get constipated for more than 21 days. If this issue seems to be getting severe, then it is high time that you should consult the doctor. Constipation will increase the pressure on the bladder, which will make it too weak to hold even a small amount of urine. 

  • Please maintain a healthy weight. 

Both the conditions of being underweight and overweight are not good for pregnancy. Being underweight will cause negative effects on the baby, while being overweight will increase the pressure on the bladder, which will make it leak. The best gynaecologist in Punjab can help you with all pregnancy problems.

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Which stages of IVF does a couple have to go through for conception?

Each one of us has heard about the assisted reproductive technologies carried out at the IVF Centre in Punjab. There are so many fertility treatments available across the field. According to the gynaecologist in Punjab, The amelioration of IVF is done daily since whatever new research takes place gets incorporated into the characteristics of the particular procedure. This is probably the main reason why the belief of people in IVF and other fertility procedures keeps on getting increased. 

So, let’s try to learn about the procedure in depth: 

Basics of the IVF 

 

IVF is an acronym whose full form is In-vitro fertilization. It is one of the fertility treatments that is being relied on by many couples. It was earlier known as the test tube baby treatment. Even today, many couples denote this process as the test tube baby fertility treatment. It is because the egg becomes an embryo in the test tube. So this procedure involves the following steps: 

  • Step 1: Initial consultation

When the couples have thought about taking up the IVF treatment. First of all, the doctor calls them for a meeting in which both the doctor and the couple get to know each other. 

  • Step 2: Diagnosis

In this step, the cause of the fertility is aimed to be diagnosed with several fertility tests. When the cause is determined, then the type of fertility treatment that is to be taken into account for the conception is determined. 

  • Step 3: Changes in the lifestyle before the procedure 

When the procedure is determined, the next step involves the maintenance of health to ensure the success of the procedure. Before the procedure, the doctor provides several goals to the patients to achieve like: 

  • Putting on or losing weight 
  • Healthy changes in dietary habits 
  • Practising yoga or exercise during the day 

 

  • Step 4: Intake of ovary stimulation-oriented medications

For the generation of the eggs with the required characteristics. The female is instructed to take several medications to stimulate the ovaries. 

  • Step 5: Eggs are taken out 

When the eggs have been generated, they are supposed to be extracted from the body of the female. 

  • Step 6: A sperm sample is taken 

The semen is taken from which the sperms of the best quality are extracted. 

  • Step 7: Mixing of eggs and the sperms

In this step, the sperms are mixed with the eggs, which is known as fertilisation and the resulting outcome is known as the embryo. 

  • Step 8: the embryo is observed

Now, the prepared embryo is observed for 4 to 5 days, which is known as the incubation period. 

  • Step 9: Implantation 

The implantation of the embryo is done in the uterus. 

  • Step10: Pregnancy test 

No sooner than two weeks after the fertility treatment has passed, the patient takes the pregnancy test. 

Bottom Line 

The couple has to follow some precautions and preventions to make sure that the pregnancy is to be carried out till the end.

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Foods to eat and foods not to eat during In-Vitro-fertilisation treatment

The healthy characteristics of the egg and the sperm quintessentially depend on the type of food consumed. According to the gynaecologist in Punjab, some foods are highly rich in nutrients that are needed by our body, while others may consume some contents that are not fit to be consumed when a couple is determined to conceive. Heading to the IVF Centre in Punjab is not just enough if you eat to induce efforts to conceive; rather, taking care of your health is vital. 

It can be illustrated with the help of a simple example: A couple is trying to conceive, and they have approached an IVF centre so that they can get rid of the complications they are facing in getting pregnant. But the woman keeps on consuming the coffee 2 to 3 times a day and is taking alcohol after a day or two. So, do you think that she would be able to conceive without any complications?

So here we have created a list of foods that you should be taking while you are trying and have even gotten pregnant. 

What to eat during fertility treatment?

  • Zinc-rich foods

Maintaining hormonal balance during fertility treatment is indispensable; zinc-rich foods such as red meat, grains, nuts, etc. help in maintaining such balance.

  • Folic acid 

For the healthy growth of the baby and particularly his spinal cord, it is mandatory for the woman trying to get pregnant to consume good amounts of food rich in folic acid. 

  • Iron-rich food

Iron is crucial for carrying the pregnancy to the end, otherwise, the problems like early baby birth or late baby birth will come to an origin. So iron-rich foods like Pumpkin seeds and oysters should be consumed. 

  • Healthy fats

To generate healthy and good characteristic-oriented eggs, the consumption of food items like olive oil, walnuts and chia seeds are important which are rich in fats. 

  • Protein-rich food

Eggs and dairy products like milk, curd, etc, should be consumed by a woman to maintain the appropriate protein levels in the body. 

  • Keep your body hydrated.

The woman who is trying to get pregnant should keep her body hydrated all the time. Not only drinking plenty of water is crucial, but you can also make use of other healthy homemade shakes and nutritional beverages with the guidance of the doctor.

Do not eat the following during fertility treatment.

 

  • Raw eggs

Raw eggs are a huge source of getting afflicted with a virus that is responsible for causing food poisoning.

  • Artificial sweeteners

Artificial sweeteners are the major cause of lowering the chances of the success of fertility treatment. 

  • Refined sugars

Refined sugar is supposed to exert pressure on the liver or the generation of insulin. This sudden and extreme pressure will hurt the reproductive system.

Takeaway

We should try to grab all the nutrients from the food but make sure that we are not consuming any food that is rich in caffeine. Neither should you try seafood, cheese and particularly alcohol.

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What are Gastrointestinal Issues and How to Treat Them?

Gastrointestinal issues are one of the most common problems faced by women during pregnancy. Many women deal with gastrointestinal issues after they become pregnant, for which they consult a Gynaecologist in ludhiana. The gastrointestinal tract is affected due to gastrointestinal issues that impact the esophagus, small intestine, large intestine, stomach, and rectum, but it may also impact some other digestive organs such as the liver, pancreas, and gallbladder. 

For women who are already dealing with chronic gastrointestinal issues, pregnancy leads to worsening of the condition and might need to seek help from the best gynae doctor in ludhiana. Some women may often be diagnosed before pregnancy with gastrointestinal issues such as ulcerative colitis and Crohn’s disease. There is also a possibility that they might have been showing symptoms of gastrointestinal disorder; however, the condition was not identified until pregnancy. 

Symptoms of gastrointestinal issues

The symptoms of gastrointestinal issues vary as the conditions occur in a wide range. Symptoms of some of the most common types of gastrointestinal issues are: 

  • Nausea
  • Vomiting
  • Diarrhoea
  • Constipation
  • Gallstones
  • Hyperemesis gravidarum
  • Gastroesophageal reflux disease, also known as (GERD)
  • Colitis and irritable bowel syndrome, also known as (IBS)

What are the causes of gastrointestinal issues?

You may not have dealt with any gastrointestinal issues before pregnancy despite it being very common. The causes of GI can vary as the range of the condition varies. Some of the common causes or risk factors that impact Gastrointestinal issues during pregnancy include: 

  • Hormonal changes
  • Certain medications 
  • Poor diet
  • GI motility disorders
  • Obesity
  • Thyroid disorder
  • Internal physical changes due to the growth of the uterus
  • Stress
  • Lack of exercise or physical activity
  • History of excessive use of laxatives
  • Allergy or food intolerance
  • Taking calcium or aluminium-based antacid medications
  • Viral or bacterial infection. 

What measures can you take to treat gastrointestinal issues during pregnancy?

During the phase of pregnancy, experiencing gastrointestinal issues is very common, and moreover, they do not cause any serious health issues. However, it is essential to consult a gynaecologist in ludhiana in case you experience any symptoms of GI. Consulting a doctor would help you manage and prevent the situation from worsening, and in addition to this, they might also recommend a few treatments based on the requirements as the range of gastrointestinal disorders varies, which asks for precise treatment. 

Some of the lifestyle changes can help you manage the symptoms of GI. These lifestyle changes include: 

Healthy diet

Keeping track of your diet by taking care of what you eat, when you eat, and how much you eat can help you alleviate the symptoms of GI. You may need to avoid processed or sugary food, increase the amount of fibre in your diet as well as control the intake of caffeine and dairy products, depending on the type of Gastrointestinal disorder you are experiencing. 

Increase the intake of fluids.

Drink lots of fluids every day. Increase the amount of fluids by adding them into your diet in the form of water, different types of juices and soups. Drinking lots of fluids can ensure regular movement of your GI tract and also help in digestion. Certain Gastrointestinal issues can also cause dehydration; therefore, adding lots of fluids to your diet may also prevent any other health issue that might develop due to dehydration. 

Exercise

Exercising on a daily basis helps the organs to get more oxygen as the body’s movement boosts blood circulation, which also ensures a smooth and efficient movement of the bowels. Make an aim to exercise regularly and set a target of working out for at least 2 and a half hours a week or 30 minutes per day for 5 days. Before working out, be sure to consult the best gynae doctor in ludhiana who would suggest the exercise suitable for you. 

Medication

In case your symptoms of GI do not show any relief from these lifestyle changes, your doctor may recommend some medications that may help to manage them, such as antacids, GI stimulants, digestive enzymes, antidiarrheals, antiemetics, etc. 

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What Are the Major Causes Which Lead To Abdominal Pain, and How Is It Treated?

The abdominal area holds a significant place in performing regular activities every day. But sometimes, due to various reasons, Pain occurs in the abdomen. That can be a sign which indicates a serious disease. Sometimes it is a minor pain, but in some cases, it needs surgery to cure it.

Here are some reasons that lead to abdominal Pain:

Infection in the urinary tract.

Experienced Pain in the lower abdomen while urinating or bloating, which causes pressure and Pain in the bladder as the bacteria that cause infections attack the bladder the most, sometimes resulting in cloudy urine.

Maybe you are facing a chronic condition.

A chronic condition like Gastroesophageal reflux disease can be caused by Pain in the upper abdomen as it causes reflux, an acid in which the substance in your stomach gets back to the esophagus, leading to cramps that cause chronic abdominal Pain. To correct this condition, you need the assistance of the Best Urologist , who can quickly cure the situation and help you get back to normal activities.

Stomach flu can be the reason.

In clinical words, it is known as Gastroenteritis, caused by eating spoiled food. Nausea, Abdominal cramping, Vomiting, Bloating, and it also causes Pain in the center of the abdomen are some of the symptoms of stomach flu. Minor medications are required in extreme cases; otherwise, they resolve independently.

The most common one is Food intolerance.

It happens when the food is not adequately digested and gets built up then it causes bloating, which results in abdominal Pain. Some people experience it after consuming coffee, as it is also the reason for the discomfort in the stomach.

Excessive alcohol can be the cause of Gastritis

Excessiveness of anything can be dangerous. This fact is intact with the situation of Gastritis. It is caused due to overdose of alcohol as it results in bloating, abdominal Pain, and a painful gnawing feeling in the stomach which can turn to be chronic over time if you do not immediately control your alcohol consumption.

Another common reason is constipation.

According to an American study, this is the most common digestive issue individuals repeatedly face when they do not have enough fiber in their diet, as that can cause the build-up of waste in the bowels that leads to Pain in the abdomen. These are some of the common ways advised to you by the Best Urologist to get rid of abdominal Pain. Firstly, they will recommend you stay hydrated and not unnecessarily consume food that disturbs your stomach.

  • To give you relief from indigestion, they suggest you take antacids; also, they help in coping with the situation of reflux or GERD. 
  •  Antibiotics are suggested, To correct infections due to bacteria, 
  • Painkillers are advised to reduce the intensity of the Pain in the abdomen. 
  • Doctors advise you to perform daily exercises and help you make a diet plan which reduces the chances of abdominal Pain.
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जानिए एक्सपर्ट की जुबानी की क्या, एसिडिटी बन सकता है तेज सिर दर्द का कारण ?

बहुत से लोगों को एसिडिटी की समस्या होती है, जोकि कोई बड़ी बात नहीं है आज के समय में प्रदूषित खान-पान को लेकर। वहीं इसकी वजह से हमारा असामयिक और अस्वस्थ्य खानपान और दिनचर्या भी काफी प्रभावित होती है। लेकिन कई लोगों को एसिडिटी के चलते अन्य परेशानिया भी होने लगती है, जैसे एस‍िड‍िटी होने पर स‍िर में तेज दर्द का उठना भी आपस में सम्बन्धित है ;

क्या वाकई एस‍िड‍िटी के कारण स‍िर दर्द होता है ?

  • एसिडिटी आमतौर पर सिरदर्द और माइग्रेन से जुड़ी होती है। यह आंत-मस्तिष्क अक्ष के कारण होता है। आंत और मस्तिष्क के बीच एक संबंध होता है। कई अध्ययनों ने गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स रोग और सिरदर्द के बीच एक मजबूत कड़ी की पहचान भी की है।
  • वहीं एसिड रिफ्लक्स तब होता है जब पेट का एसिड अन्नप्रणाली में वापस चला जाता है, इसके बाद सीने में जलन होती है। यह एक क्षणिक या लगातार स्थिति हो सकती है। एसिड रिफ्लक्स के साथ सिरदर्द या माइग्रेन का संबंध हो सकता है। एक अध्ययन के अनुसार, जो लोग माइग्रेन से पीड़ित होते है उन्हें एसिड रिफ्लक्स होने का खतरा अधिक होता है। 
  • इसके अलावा, जो लोग लगातार सिरदर्द का अनुभव करते है, उनमें एसिड रिफ्लक्स की चिंता उन लोगों की तुलना में अधिक देखी जाती है, जिन्हें कम सिरदर्द होता है।
  • कुछ अनुभवी एक्सपर्ट के मुताबिक सिरदर्द की गोलियां, नॉन-स्टेरायडल, एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं या पेन किलर्स जैसी दवाएं वास्तव में एसिडिटी बढ़ा सकती है। सिरदर्द एसिडिटी का कारण बन सकता है और इसके विपरीत और माइग्रेन इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) जैसी अन्य स्थितियों से भी जुड़ा हुआ हो सकता है।

एसिडिटी के कारण सिर दर्द होता है या नहीं इसके बारे में जानने के लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए। 

एसिडिटी को किस तरीके से ठीक किया जा सकता है ?

  • एसिडिटी  को ठीक करने के लिए आपको विशेष रूप से रात में मसालेदार, फैटी या फिर भारी भोजन करने से बचना चाहिए।
  • किसी भी ऐसे भोजन को आहार से हटा दें जो ऐसिडिटी को बढ़ाता है और जिसके परिणामस्वरूप सिरदर्द होता है।
  • धूम्रपान और शराब का सेवन कम करें या फिर बंद ही कर दें तो ही अच्छा है।
  • रात का खाना जल्दी खा लें, शाम 7-8 बजे तक, जिससे रात के खाने और सोने के बीच कम से कम दो से तीन घंटे का समय मिल जाए। यह लेटने के कारण होने वाले एसिड रिफ्लक्स को कम करने और सिरदर्द को कम करने में मदद करेगा।
  • अतिरिक्त किलो वजन कम करने से एसिडिटी और सिरदर्द से संबंधित समस्याओं को दूर करने में भी मदद मिलती है।
  • अगर किसी दवाई के कारण आपको एसिडिटी की समस्या बढ़े तो इससे बचाव के लिए आपको एक बार डॉक्टर से जरूर सलाह लेना चाहिए। 

एसिडिटी की समस्या किसके कारण बढ़ती है !

  • पेट में एस‍िड‍िटी होने पर आपको अनहेल्‍दी फैटी फूड का सेवन नहीं करना चाह‍िए। क्युकी फैटी फूड में नमक, म‍िर्च, मसाला ज्‍यादा होता है, ज‍िससे स‍िर और पेट दोनों में दर्द हो सकता है।
  • अपनी डाइट को हल्‍का रखें। आपको पानी का सेवन ज्‍यादा से ज्‍यादा करना है, क्युकी पानी पीने से एस‍िड‍िटी तो दूर होगी ही साथ ही ब्रेन में ऑक्‍सीजन पहुंचने से स‍िर का दर्द भी ठीक हो जाएगा।
  • आपको तंबाकू का सेवन भी कम से कम करना चाह‍िए बल्‍क‍ि न ही करें तो बेहतर है, तंबाकू कई तरह से आपकी सेहत के ल‍िए हान‍िकारक है इसल‍िए इससे बचें। 
  • ज‍िन लोगों का वजन ज्‍यादा होता है उन्‍हें भी एस‍िड र‍िफ्लक्‍स की समस्‍या होती है, इसलि‍ए आपको वजन कम करने के उपाय जानकर उन्‍हें अपनाना चाहि‍ए।

अगर आपकी एसिडिटी की समस्या बार-बार बढ़ते जा रही है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में कोलोनोस्कोपी से अपने पेट की जाँच को जरूर करवाना चाहिए।

निष्कर्ष :

पेट व दिमाग दोनों का हमारे शरीर में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, इसलिए जरूरी है की इनमे किसी भी तरह की समस्या आने पर आपको जल्द डॉक्टर के संपर्क में आना चाहिए और साथ ही उपरोक्त बातों का भी आपको खास ध्यान रखना चाहिए।

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What is lactose intolerance? Types, causes, and symptoms.

Lactose intolerance occurs when your small intestine cannot make a digestive lactose enzyme called lactase. Lactase helps to break down lactose in food after your body can absorb nutrients and protein. Lactose intolerance happens when your body can’t break down sugar lactose. It is mainly shown in dairy products and milk when consumed. These symptoms show when you suffer lactose intolerance, such as gas, belly pain, and diarrhea. If you are allergic to regular cow milk, choose A2 milk , which is completely free from A1 beta-casein and does not cause digestive issues.

Type of lactose intolerance

Primary lactose intolerance 

When a baby is born, he needs a lactase enzyme for digestion. Most people are born with enough enzymes. In these conditions, our body is unable to make lactose. Then lactase level decreases, you can not take a milk product, and when you take milk, you feel sick such as nausea, vomiting, stomach pain, etc. 

Secondary lactose intolerance

injury, surgery, and intestine disease can be causes lactose intolerance 

Developmental lactose intolerance

This type of lactose shows in premature babies. Because premature babies do not make enough lactose, they suffer from digestive lactase. After 34 weeks, he showed less symptoms.  

Causes 

  • Premature babies are not able to make proper lactose. Then they suffer from digestive problems.
  • After injuries and infection, or small intestine stops making a lactose
  • People born with the inability then suffer from making lactose. That case rarely shows in people. 

Symptoms 

If you have lactose intolerance, you cannot digest milk. If you take dairy milk products, then you suffer from 

  • Gas
  • Abnormal cramps 
  • Nausea 
  • Diarrhea 
  • Bloating 

How to diagnose 

You’re suffering from nausea, diarrhea, and abnormal pain when you drink and eat milk products. You can check with your doctor. Your healthcare reviews your past medical history. After symptoms and diagnosis. They find lactose intolerance through some tests, such as 

  • Lactose tolerant test
  • Hydrogen breath test 
  • Stool acidity test 

Lactose tolerant test 

This test is like a blood test measuring your body’s reaction after taking a liquid. Because it contains a high level of lactose intolerance 

Hydrogen breath test

Hydrogen breath test in which the doctor measures the hydrogen in your breath when you consume a high quantity of liquid in lactose. Your body is unable to digest the lactose. Or high levels of hydrogen in your breath mean you have a lactose intolerance. 

Stool acidity test 

The stool acidity test is in which the doctor measures the amount of acid in the stool. Mainly this test applies to children. When he does not digest lactose, their stool will have lactose acid, glucose, and other acids. 

Treatment 

In this treatment, your healthcare suggests avoiding milk products in your diet. It helps to decrease the level of lactose intolerance. And also recommend trying other dairy products if they show fewer symptoms than if you take a small quantity of milk. You can buy Cow milk because cow milk is full of nutrients, protein, and minerals essential to our body. After taking milk to show those symptoms, you can take calcium, vitamin D, protein, and riboflavin supplements. Those supplements help to get enough calcium.   

Tips for managing lactose in your diet 

  • You can start by taking a small quantity of milk product into your diet after measuring your body’s reaction. 
  • You can take a milk or milk product with your meal, showing fewer symptoms. 
  • You can ask your doctor about lactose. They provide some pills then you relive those symptoms after taking a milk product. 
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Health Hindi

महिलाओं को अपने शरीर में होने वाले दिक्कतों को क्यों नहीं करना चाहिए नज़रअंदाज़ ?

महिलाएं जो अक्सर घर के काम-काज में इतना व्यस्त हो जाती है की उन्हें कई दफा अपने शरीर में आए बदलाव का भी ध्यान नहीं रह जाता है जिसके चलते उन्हें आगे चल के काफी परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है, तो वहीं कुछ महिलाओं को पता ही नहीं होता की उन्हें किस तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा आज के लेख में हम बात करेंगे की कौन-सी समस्याएं महिलाओं के शरीर में उत्पन्न होती है जिन्हे वे अकसर नज़रअंदाज़ कर देती है ;

महिलाओं के शरीर में बीमारियां कौन-सी हो सकती है ?

निम्न में हम कुछ ऐसी महिलाओं की बीमारियां के बारे में बात करेंगे, जिससे वो अक्सर नज़रअंदाज़ रहती है, जैसे-

  • एनीमिया की समस्या। 
  • पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम या पॉलीसिस्टिक ओवरी डिजीज की समस्या आम-तौर पर तब होती है, जब कोई महिला गर्भवती होने की कोशिश कर रही होती है, और वही ये एक हार्मोनल इंबैलेंस है, जिसका प्रभाव मेटाबोलिक हेल्थ पर पड़ता है। 
  • मेनोपॉज एक महत्वपूर्ण हार्मोनल चेंज है, जो सभी महिलाओं में होता है, इसमें फीमेल हार्मोन यानी एस्ट्रोजन कम हो जाता है। जिससे दिल की बीमारी के खिलाफ इसकी प्रोटेक्टिव एक्टविटी भी कम हो जाती है। 
  • महिलाओं में हड्डियों का स्वास्थ्य यानी बोन हेल्थ 30 के दशक में बिगड़ना शुरू हो जाता है, इसलिए हड्डियों की मजबूती बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम के सेवन के साथ-साथ एक्सरसाइज करना जरूरी है। वही डेयरी प्रोडक्ट कैल्शियम का सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है, जैसे दूध, दही, पनीर आदि।

अगर आपको अपने शरीर में इस तरह की बीमारियां नज़र आ रहीं है, तो इससे बचाव के लिए आपको बेस्ट गायनोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

कौन-सी दिक्कतों को महिलाएं न करें नज़रअंदाज़ !

  • पीरियड्स के दौरान दर्द का होना, तो कुछ महिलाओं को पीरियड्स के दौरान बहुत तेज दर्द होता है, इसे डिसमेनोरिया कहा जाता हैं। यदि इस दर्द की वजह से महिलाएं अपना काम नहीं कर पा रही हैं और इससे उनके जीवन में काफी परेशानियां हो रही है, तो उन्हें इसकी जांच करानी चाहिए। वही इलाज शुरू करने से पहले इसके लिए क्लीनिकल जांच और पेल्विक सोनोग्राफी की आवश्यकता होती है। 
  • दूसरी दिक्कत वेजाइनल इंफेक्शन या वेजाइना के मुख के पास की त्वचा में फोड़े होने के कारण हो सकता है, वही यह समस्या कभी-कभी वेजाइनल डिस्चार्ज या खुजली भी हो सकती है। 
  • कई दफा मूत्र रिसाव की परेशानी के कारण महिलाएं काफी शर्मिंदगी महसूस करती है, यही वजह है की, अधिकांश महिलाओं को मूत्र रिसाव के बारे में खुल कर बात करने में कठिनाई होती है। यह आमतौर पर खांसते या छींकते या एक्सरसाइज करते समय होता है।
  • सेक्स के दौरान ब्लीडिंग या तेज दर्द का होना जिसे महिलाओं के द्वारा अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, जो बाद में चल कर उनके सेहत पर काफी बुरा प्रभाव डालती है।

यदि महिलाएं इन समस्याओं को ध्यान में रखें तो उन्हें आगे चल कर किसी भी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता वही गर्भावस्था के दौरान उनकी पेनलेस नार्मल डिलीवरी भी होती है।

सुझाव :

 इसके अलावा महिलाओं को अपनी समस्या को महिला डॉक्टर के सामने खुल कर बताना चाहिए ताकि उन्हें किसी भी तरह की समस्या का भविष्य में चल कर सामना न करना पड़े।  

निष्कर्ष :

महिलाओं को अपनी समस्या को खुल कर बताने में शर्माना नहीं चाहिए फिर चाहें डॉक्टर महिला हो या पुरुष।

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हॉस्पिटल की कौन-सी 5 सुविधाएं आपकी डिलीवरी को बनाएगी सफल!

 गर्भवती होने के बाद जो डिलीवरी का समय होता है वो हर महिला व उसके परिवार जनो के लिए खुशी का मंजर होता है, इसलिए इस खुशी में किसी भी तरह की बाधा न आए इसके लिए आपको महिला के डिलीवरी से पहले ही हॉस्पिटल की जाँच पड़ताल कर लेनी चाहिए और जिन डॉक्टरों ने डिलीवरी करनी है उनके अनुभव के बारे में भी जानकारी हासिल करना चाहिए। इसके अलावा आज के लेख में हम बात करेंगे की डिलीवरी के दौरान इमरजेंसी के वक़्त हर हॉस्पिटल में कौन-सी पांच चीजे होना बहुत ही महत्वपूर्ण है ;

डिलीवरी से कितने दिन पहले हॉस्पिटल की जाँच करना शुरू करें !

  • जब आपको पता चल जाए की महिला के डिलीवरी को कुछ हफ्ते या महीने रह गए है तो आपको हॉस्पिटल की जाँच शुरू कर देनी चाहिए, और आपको इस बात का ख़ास ध्यान रखना है की आप उस ही हॉस्पिटल का चयन करें जहा वह सब सुविधाएं मौजूद हो जो डिलीवरी के बाद जच्चे और बच्चे दोनों को जरूरत होती है।

इसके अलावा डिलीवरी के दौरान या उससे पहले महिला को कोई परेशानी आ जाए तो इसके लिए महिला को बेस्ट गायनोलॉजिस्ट के सम्पर्क में आना चाहिए।

डिलीवरी के लिए हॉस्पिटल या नर्सिंग होम में कौन-सी पांच सुविधाएं मौजूद होनी चाहिए ?

  • अगर आप हॉस्पिटल चुनने जा रहें है, तो इसके लिए सबसे पहले आपको ये देखना चाहिए की हॉस्पिटल में “मेड‍िकल सुव‍िधा” है या नहीं, क्युकी हॉस्‍प‍िटल में सही मेड‍िकल सुव‍िधा ही जच्चे और बच्चे दोनों को सुरक्षित रख सकती है। इसके अलावा हॉस्‍प‍िटल में साफ-सफाई का प्रबंधन अच्छे से है या नहीं, इस बात का भी ध्यान रखें।
  • आपको हॉस्‍प‍िटल चुनने से पहले उस जगह की “मेड‍िकल टीम” के बारे में भी जानना चाह‍िए। क्युकि बहुत से ऐसे अस्‍पताल भी है, जहां डॉक्‍टर उतने ट्रेन्‍ड में नहीं होते, ज‍िसके चलते ड‍िलीवरी के समय कई तरह की समस्‍याओं का सामना महिलाओं को करना पड़ता है।
  • आप ज‍िस हॉस्‍प‍िटल का चयन करें उसमें इस बात का खास ध्यान रखे की वहां पर “एनआईसीयू” की फैस‍िल‍िटी जरूर हो, क्‍योंक‍ि जन्‍म के बाद नवजात श‍िशु में कई तरह की समस्‍याएं होती है, जैसे सांस लेने में द‍िक्‍कत, प्रीमैच्‍योर ड‍िलीवरी के कारण लो बर्थ वेट आद‍ि।
  • ड‍िलीवरी की स्‍थि‍त‍ि में “हॉस्‍प‍िटल की लोकेशन” बहुत ही ज्यादा मायने रखती है, क्‍योंक‍ि ड‍िलीवरी के समय क‍िसी भी वक़्त अस्‍पताल जाने की जरूरत पड़ सकती है। तो ऐसे में अगर अस्‍पताल दूर है तो आपको परेशानी हो सकती है। इसलिए जरूरी है की आप अपने आसपास के नर्स‍िंग होम और हॉस्‍प‍िटल के संपर्क में रहें।
  • हॉस्‍प‍िटल का चयन करने से पहले इस बात का ध्यान रखें की उस हॉस्पिटल में “हाई र‍िस्‍क प्रेगनेंसी” की सुव‍िधा जरूर होनी चाह‍िए। वही हाई र‍िस्‍क प्रेगनेंसी की स्‍थ‍ित‍ि में इमरजेंसी ब्‍लड की जरूरत पड़ सकती है इसके अलावा हाई र‍िस्‍क प्रेगनेंसी के वार्ड नॉर्मल वॉर्ड से बिल्कुल अलग होते है।

अगर आप उपरोक्त बातो का ध्यान रखे है, तो आपकी पेनलेस नार्मल डिलीवरी होने की संभावना और ज्यादा बढ़ जाती है।

सुझाव :

  • यदि आप डिलीवरी के लिए किसी अच्छे सेंटर या हॉस्पिटल का चयन कर रहें है तो इसके लिए आप लुधियाना गेस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन कर सकते है। वही आपको बता दे की इस सेंटर में “हाई र‍िस्‍क प्रेगनेंसी वार्ड” और अन्य “वार्ड” भी मौजूद है।
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Health Hindi Shuchita Batra Weight Loss

डिलीवरी के बाद बढ़े हुए वजन को कैसे किया जा सकता है कम ?

डिलीवरी के बाद कैसे वजन को घटाएं इसको लेकर हर महिला के मन में ये सवाल गूंजता रहता है। इसके अलावा अक्सर आपने देखा होगा की जिन महिलाओं की डिलीवरी होती है उनके पेट का निचला हिस्सा लटक जाता है जिसके कारण उन्हें कई बार काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है

तो वही कुछ महिलाएं इस समस्या से निपटने के लिए मालिश का सहारा लेती है, तो कोई डाइटिंग करके अपने आप को इस समस्या से छुटकारा दिलवाना चाहती है पर अब आपको तरह-तरह के उपायों को करने की जरूरत नहीं है बल्कि आपको हम कुछ उपाय बताएंगे जिसका सहारा लेकर आप इस समस्या से खुद का बचाव कर सकती है, तो चलते है और वजन कम करने के आर्टिकल की शुरुआत करते है ;

डिलीवरी के बाद बढ़े हुए वजन को कैसे करें कम ?

  • डिलीवरी के बाद महिलाओं को भूख अधिक लगती है जिस वजह से वह कुछ भी खाना शुरू कर देती हैं। ऐसे में जरूरी है कि भूख लगने पर केवल हेल्दी खाने को प्राथमिकता दे साथ ही क्रैश डाइट का सहारा न लें। वही अगर आप हेल्दी चीजे खाते है तो आप दिन की केवल 500 कैलोरी कम करके एक हफ्ते में आधा किलोग्राम वजन कम कर सकती है।
  • आजकल ज्यादातर महिलाएं आत्म निर्भर (सेल्फ डिपेंडेंट) होने की वजह से वह आफिस के काम में व्यस्त रहती हैं। जिस कारण उन्हें थोड़ी-थोड़ी देर में बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने का समय नहीं मिल पाता, जिसका नतीजा वेट गेन या ब्रेस्ट प्रॉब्लम हो सकती है। इसलिए जो महिलाएं डिलीवरी के बाद अपना वेट कम करना चाहती हैं तो उन्हें अपने बच्चे को ब्रेस्टफीड कराना चाहिए। 
  • डिलीवरी के बाद आपको ध्यान रखना है कि आप अधिक कैलोरी वाला भोजन न करें। 
  • दिनभर डिलीवरी के बाद महिलाओं को एक्टिव रहना चाहिए और एक्टिव रहने के लिए आप दिनभर में जितना काम खुद से कर पाएं उतना करें। डिलीवरी के बाद शरीर कमजोर हो जाता है इसलिए आपके शरीर में जितना बल है उसके हिसाब से आप रोजाना 10 से 15 मिनट का वॉक जरूर करें। वही अगर आपको नहीं पता चल रहा है कि वजन कम करने के लिए किन बातो का ध्यान रखना चाहिए तो इसके लिए आपको लुधियाना में गायनेकोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

डिलीवरी के बाद किन बातों का रखें ध्यान ?

  • आमतौर पर डिलीवरी के बाद वजन कम करने के लिए खाने के साथ-साथ हेल्दी स्नैक्स को लेते रहें।
  • दिनभर पर्याप्त मात्रा में पानी जरूर पिएं। 
  • अपने खानपान में एडेड शुगर और सोडा कम ले। 
  • फलों के जूस पीने के बजाय सादे फल (Fruits) खाने की कोशिश करें। 
  • तला-भुना खाने से बिल्कुल परहेज करें। तो वही तला-भुना खाने से अगर आपके पेट में दिक्कत हो जाती है तो इसके लिए आपको गैस्ट्रो डॉक्टर लुधियाना से मिलना चाहिए।

सुझाव :

अगर डिलीवरी के बाद आपका वजन भी बहुत ज्यादा बढ़ गया है तो इससे निजात पाने के लिए आपको उपरोक्त बातों को ध्यान में रखना है और इसके लिए आप लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से सम्पर्क करें और यहाँ के डॉक्टरों के द्वारा बताए गए वजन कम करने वाले नियमों के बारें में अच्छे से जानकारी हासिल करें।  

 

निष्कर्ष :

उम्मीद करते है कि आपको पता चल गया होगा की कैसे डिलीवरी के बाद आप अपने वजन को कम कर सकते है पर इन उपायों या किसी भी तरह की दवाइयों को प्रयोग में लाने से पहले डॉक्टर से जरूर सलाह ले।

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Health Kartik Goyal

Myths And Facts: 4 Things You Should Need To Know About Cirrhosis

The liver is one of the primary internal organs in the human body and the primary blood filter that narcotics and detoxifies alcohol and other potentially dangerous combinations. It is an essential element of the digestive system because it generates bile, which aids in breaking fatty foods. It is also a crucial part of the immune system since it helps to remove germs and viruses from the blood. But many people live very unhealthy lives, exacerbating liver diseases like cirrhosis and requiring liver transplant surgery. Additionally, most people have yet to discover many cirrhosis myths and realities. If you fall into that category, you should read this blog.

  1. Myth: No symptoms mean that the person does not have cirrhosis. A person may suffer from liver cirrhosis without any prior symptoms. The liver performs adequately to maintain the human body’s daily functioning despite many people having liver cirrhosis. In such conditions, fatigue is an easy and significant symptom of cirrhosis. When the liver becomes dysfunctional, a person experiences other severe symptoms like swelling of the legs, bleeding, confusion, fluid build-up in the body, and more.
  2. Myth: Cirrhosis does not impact those who do not consume alcohol. Though alcoholism is a potent reason that causes liver cirrhosis, it is not the only reason. Extreme scarring of the liver can be caused by different injuries made to the liver. Inappropriate diet, congenital infections, iron or copper overload, hepatitis B or C, jaundice, and other prevalent causes of liver cirrhosis. They can affect a person who does not even take alcohol.
  3. Myth: The liver will regenerate itself after cirrhosis. The liver is a highly regenerative organ but can only regenerate itself when the scar tissue is not extensive. Also, the liver has to be always healthy to perform well and recover from the severity of the disorder. Once the liver is affected by cirrhosis, the regeneration process of the liver becomes entirely restricted. Therefore, in most conditions, cirrhosis cannot be changed. However, maintaining proper precautions and a healthy diet can improve your situation.
  4. Myth: Gaining weight during cirrhosis is good. A person with cirrhosis might gain weight owing to fluid retention in the body, which is a reason to worry about. Similarly, if the person eats too many calories, it leads to depositions of fat on the liver and can further injure the liver. Both signs and situations testify that gaining weight during cirrhosis is not good.

 Staying under a good liver surgeon, maintaining a proper medical check-up, and dietary measures will help the person avoid the disease’s severity. At Ludhiana Gastro & Gynae Centre, Liver Cirrhosis is conducted by the most efficient and skilled doctors. Here, we have a team of the best medical staff who will assist you from the time of your diagnosis till you have entirely recovered

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Why it is essential to consume nutritional supplements during IVF treatment

According to many studies and health professionals, a balanced diet and proper intake of all necessary vitamins is a key to getting positive outcomes of in vitro fertilisation treatment. To start a successful pregnancy journey, you can get consultancy from a Gynaecologist In Ludhiana at Gastro and Gynae Centre. And experts of this centre will help you with Painless Normal Delivery in Punjab.

Moreover, if you are facing problems like low milk production, then you can take shatavari for breast milk. However, if you will consume all the necessary ingredients, then you do not need to worry about it.

These are the main benefits of consuming supplements or a proper diet

  • Promote production

If you are taking vitamins A, D, E, and K or a properly balanced diet, then chances are high that it will enhance fertility and egg production in your ovaries. But, you should avoid overconsumption of any supplement because it can cause side effects rather than giving positive outcomes. So before starting to take any supplement, make sure to get advice from an expert about the intake of doses because that will help to get your desired results without confronting any health issues.

  • Ovarian follicle survival

When you will take vitamin d supplements or will take them in a natural

process, then it will help to improve the survival rates of ovarian follicles.

Additionally, it will improve not only your health but also the health of your

baby. But, if you are unable to maintain a good level of vitamin d, then

Chances are high that your in vitro fertilisation treatment will not be successful.

  • Prevent problems like miscarriage

In some cases, when women do not consume a good amount of folic

acids so, at that, they can face some issues like early birth, miscarriage, and birth defects. So you need to make sure to consume folic acids writer

in the form of supplements or diet. But before taking any supplement,

get a consultation from an expert because that will provide assistance in making better selections of supplements.

  • Improve the quality of eggs

When your body is getting proper nutrition in any form, such as supplements or natural substances, then it helps to improve the quality of eggs, and ultimately that increases the success rates of in vitro fertilisation treatment. When you take a proper diet and nutrition so, then your body produces more DHEA, and that helps to make eggs stronger.

 

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Gastroenterologist Health Kartik Goyal

How are modern medicine and Ayurvedic medicine different from each other?

The improved and technologically updated medical system is nothing less than a blessing in disguise for everyone around us. The approach to health care keeps on getting better, and the individual struggling with a specific health issue gets the perfect treatment plan. The medical system is exceptionally vast as there are:

  • Modern medicine
  • Ayurvedic medicine

The availability of the latest treatment plan does create confusion in the person’s mind. Whether to choose the Gastrologist in Punjab or any other medical expert.

Please Note!

The blog is not intended to take down any system of medicines and has no intention to force somebody to choose a particular option. The only motive is to highlight the difference between the two.

Difference: Modern and Ayurvedic Medicine

Difference 1: Approach for health care

Physically if you have any health issues, modern medicine provides the utmost relief. The reason to seek assistance at one of the Gastroenterology Hospital in Ludhiana is how the doctor handles the problem. Suppose if you have severe heartburn, then you need gastrologist help.

With Ayurveda, the approach is different as treatment includes a holistic approach. The Ayurvedic doctor emphasizes the treatment plan by including all three other aspects.

Difference 2: Evidence-based treatment

When you visit the Gastro doctor in Ludhiana, only after performing a detailed diagnosis and knowing the reason behind the digestive problem; will you get the treatment. No matter which treatment you get, it’s an evidence-based approach. So, modern medicine gets an approval after trials and errors.

With Ayurveda, the approach is scientific, and they have its principles for treating a health issue.

Difference 3: Giving importance to diet and lifestyle

Undoubtedly, modern medicine has transformed a lot compared to the past. Modern medicine emphasizes changing diet and lifestyle as your treatment plan continues.

On the other hand, an Ayurvedic practitioner tells you to focus on balancing diet and lifestyle.

One thing that no one can deny is the limelight that the SUPPLEMENTS get for the health benefits to improve/reduce the chances of health concerns. These are all-natural approaches that eliminate the worry of being toxic or unsafe. But, still, you have to take the supplements under medical assistance every time.

Difference 4: Treatment for chronic and acute disease

If you look deep into both the systems, Ayurvedic and modern medicine give treatment for both situations. But sometimes, if the problem is worse or extremely severe, a surgical approach is required. And that is why the modern medicine path gets attention.

What to choose?

Both of the options follow a different approach. It’s all about getting assistance from medical experts to take the best care of your well-being. All in all, it’s like choosing the healthcare system that has the necessary answer for your condition. The ultimate goal is to feel good about yourself and address the issue.

Are you dealing with a gastric problem?

Schedule an initial consultation at Ludhiana Gastro & Gynae Centre, Don’t delay the situation; otherwise, it can be something profound in the future. Book your initial appointment to make an informed decision for your overall health.